उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
कमला मोटर से उतरी और सीधी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ गयी। दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी थी। उसने उस ओर ध्यान नहीं दिया। वह सीधी सूरदास के कमरे में जा पहुंची। वहां मां-पुत्र गम्भीर बातचीत में लीन थे। तारकेश्वरी की पीठ कमरे के द्वार की ओर थी और सूरदास जो द्वार की ओर मुख किये बैठा था, देख नहीं सकता था। कमला ने कमरे में प्रवेश कर झुककर सूरदास के चरण स्पर्श किये और फिर हाथ जोड़ सामने खड़ी हो गयी। सूरदास ने चरण स्पर्श होते अनुभव किया तो समझ गया। उसका मुख खिल उठा और उसने पूछ लिया, "कमला हो?''
"'जी।"
तारकेश्वरी इस प्रकार कमला के आ जाने से कुछ अटपटा सा अनुभव करने लगी।
सूरदास ने आवाज़ की ओर मुख उठाकर कहा, "बैठो!"
"नहीं प्रभु! हम आज हवाई जहाज से दिल्ली जा रहे हैं। मैं तो केवल कुछ काम रह गया था, वह करने आयी थी।''
''तो हो गया है वह काम?"
"हां; केवल इतना और है कि नवरात्रों में राम कथा का बृहत आयोजन कर रख्गी। आप यहां से किसी? के साथ आ सकेंगे अथवा सुन्दरदास को भेज दिया जाये?"
''यदि तब तक मैं वहां न आया तो सुन्दरदास को भेज देना।''
अब कमला ने तारकेश्वरी को भी हाथ जोड़ नमस्ते कही। वह उठ खड़ी हुई और उसके साथ ही बाहर लिफ्ट तक आते हुए बोली, "विवाह के विषय में निश्चय नहीं हो सका। इसी कारण टेलीफ़ोन नहीं किया गया।"
''मैं यही आशा करती थी, परन्तु क्या संसार में सबके विवाह ही होते हैं? माता जी, आप भी अपने पुत्र के साथ दर्शन दें तो बहुत ही आभार मानूंगी।''
वे लिफ्ट तक पहुंच गयी थीं। कमला लिफ्ट में घुसी तो तारकेश्वरी ने हाथ जोड़ कह दिया, "इच्छा तो बहुत हो रही है। शेव भगवान के अधीन है।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :