| उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''अप्रसन्नता में कोई कारण प्रतीत नहीं हो रहा; परन्तु पिताजी! बदायूं में भी माताजी का तथा आपका स्नेह विस्मरण नहीं हो सकता। वह जीवनान्त तक मस्तिष्क को आन्दोलित करता रहेगा।" "तो वहा चलोगे?''
"प्रकाशबाबू से डर लगता है। और फिर....।"
''हा, कहो न। चुप क्यों कर गये हो?''
''कमला का कहीं विवाह कर दीजिए। मैंने इस विषय पर बहुत विचार किया है और इसी परिणाम पर पहुंचा हूं कि मुझे उसके किसी धनी-मानी भले पुरुष के साथ विवाह की कामना करनी चाहिए।'' इस समय तारकेश्वरी आ गयी। धनवती ने उसे बता रखा था कि बदायूं के सेठजी आये हैं। उनसे एकाएक मैरिन ड्राइव पर भेट हो जाने की बात भी बता दी थी।
तारकेश्वरी कमरे में आयी और हाथ जोड़ नमस्कार कर सामने बैठते हुए क्षमा मांगने लगी। उसने कहा, "सुना है कि आपको प्रतीक्षा करते हुए पन्द्रह मिनट से ऊपर हो गये हैं। पर मैं एक अन्य कार्य में व्यस्त थी और उस कार्य से निपटने पर ही आपके यहां होने की सूचना मिली है।''
''कृछ हानि नहीं हुई। इतने में मैं राम के इतने दिन तक लापता रहने की कथा खुनता रहा हूँ।
''जबसे राम हमारे घर में आया था, तब से घर में प्रकाश द्विगुण हो गया था और अब वहां अन्धकार छा रहा अनुभव होता है। इसलिए बद्री नारायण के मन्दिर से लेकर कन्या कुमारी तक इसकी खोज करवा रहा हूँ।
''एकाएक यह मैरिन ड्राइव पर मिल गया। मैं समझता हूं कि अब यह मेरे साथ पुन: चल सकेगा। मेरी पत्नी और लड़की हुसकी अति उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही हैं।"
''देखिये सेठजी!" तारकेश्वरी ने कहा, "मैं इसे जन्म देकर बहन धनवती के पास छोड़ने पर विवश हो गयी थी। मुझे न तो इसके पेट में आने के समय और न ही इसके जन्म के समय यह किसी प्रकार से अरुचिकर हुआ था। इसके जन्म के उपरान्त मैं पन्द्रह दिन इसके साथ रही थी और उस समय थी, मुझे भली भाँति स्मरण है कि मैं अति आनन्दित अनुभव करती थी; परन्तु पिताजी का आग्रह थे टाल नहीं सकी और इसे बहन धनवती के पास छोड़ चली आयी थी।
"पिताजी ने इसके पालन-पोषण तथा शिक्षा-दीक्षा का अच्छे से अच्छा प्रबन्ध कर रखा था, परन्तु उस सब प्रबन्ध के लिये मुझसे यही शर्त थी कि मैं इससे न मिलूँ। यह प्रतिबन्ध उनके जीवन काल के लिए ही था।
"पिताजी के देहावसान के पूर्व ही संत माधवदास का देहान्त हो गया और राम आपके घर में जा पहुंचा। पिताजी के देहान्त के उपरान्त मैने राम की खोज आरम्भ की। यह तो घटनावश ही था कि कि धनवती को यह गंगा घाट पर बैठा मिल गया।"
''मैं भी कुछ इसी प्रकार की बात की आशा करता था, परन्तु यह तो विचार भी नहीं कर सकता था कि कोई माता अपनी अवैध सन्तन के लिए इतनी परेशान होगी।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :

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