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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

चन्द्रावती को पुत्र के मन की भावना समझ आ गयी। उसे उसकी यह बात पसन्द नहीं आयी। इस पर भी उसने कुछ कहा नहीं और गम्भीर हो मौन रही। वह स्वयं भी विचार कर रही थी कि यह सूरदास की माता कौन है? वह माता कैसे है? माता है तो इतने दिन तक कहां रही है और यदि सूरदास को विश्वास हो गया है कि वह मां है तो कमला सूरदास से विवाहकर अपने ससुराल जाएगी। वहां उससे क्या व्यवहार होगा, कहा नहीं जा सकता। इसी अनिश्चित भविष्य पर वह चिन्तित थी।

परन्तु इसी विषय पर श्रीमती और प्रकाशचन्द्र में और भी रुचि कर बात हुई।

श्रीमती भी अपनी सास द्वारा दी गयी सूचना सुन रही थी। उस समय तो वह एक शब्द भी नहीं बोली परंतु रात जब पति-पत्नी दोनों अपने कमरे में गये तो बात श्रीमती ने आरम्भ कर दी। उसने पूछ लिया, "तो सूरदास के मिल जाने से आपको प्रसन्नता नहीं हुई?"

"मेरी तो, समाचार सुनकर, हंसी निकल गयी थी। क्या वह अप्रसन्नता का लक्षण नहीं था?''

''मुझे वह हंसी तो व्यंगात्मक प्रतीत हुई थी।''

"क्या व्यंग था उसमें?''

''व्यंग यह प्रतीत हुआ था कि सूरदास की बला फिर बदायूं में आएगी। फिर यहां कथा-कीर्तन होगा और आपका परिवार राम भक्त सिद्ध होगा, जिससे आपकी प्रतिष्ठा कांग्रेस में और कम हो जायेगी। आप अपने दुर्भाग्य पर हैसे थे।"

प्रकाश गम्भीर हो विचार करने लगा कि क्या सत्य ही वह अपनी दुर्दशा पर हंसा था और वास्तव में वह अपने भाग्य को कोस रहा था? उसे क़ुछ समझ आया कि आज की सब बातों की भांति यह बात भी श्रीमती की श्रेष्ठ सूझ-बूझ को ही प्रकट करती है। वह अनुभव करने लगा था कि उसने सत्य ही वह हंसी अपनी दूषित मानसिक अवस्था को छुपाने के लिए की थी। इस पर भी उसने यहां भी वही बात कह टालने का यत्न किया जो उसने अपनी माता के सामने कही थी। उसने कहा, "नहीं, श्रीमती! मैं इस कारण हंसा था कि वह स्त्री सूरदास की मां बन रही है और कमला सूरदास से विवाह करना चाहती है। अत: यह स्वाभाविक ही है कि कमला अपने ससुराल में जाएगी और व्यापार में मेरा स्थानापन्न, मक्खन में से बाल की भांति निकल जायेगा।"

"सम्भव तो यह है कि आपके व्यापार का कार्यालय बदायूँ से बदलकर बम्बई चला जाये। सेठजी आपकी बहन के साथ ही वहां चले जायें।''

इस पर तो प्रकाश को चिन्ता लग गयी। श्रीमती की आशंका सम्भव प्रतीत होती थी। इससे वह चिन्ताग्रस्त हो गया।

रात उसे भली-भांति नींद नहीं आयी। उसको अनेकानेक प्रकार के दुखद् स्वप्न दिखायी देते रहे थे। वह संसद सदस्य नहीं रहा। उसके विपरीत पटीशन सफल हो गयी है। ज्योतिस्वरूप ने पुन: निर्वा- चन लड़ा है और वह जीत गया है। इस बार उसकी सहायता उसके श्वसुर और सूरदास ने की है। उन्होंने अब उसके पक्ष में कार्य किया है। ज्योतिस्वरूप के जिताने में इन दोनों का बहुत बड़ा हाथ रहा है।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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