उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
सायंकाल चाय के समय प्रकाशचन्द्र ने मां से कहा, "मुझे अपने संसदीय कार्य के लिए अपना आफिस खोलना है। उसके लिए नी चे की मन्जिल पर सूरदास वाला कमरा खुलवा दिया जाए।"
''क्यों कमला?'' चन्द्रावती ने पूछ लिया, "क्या विचार है?''
"मां! वह कमरा नहीं मिलेगा।"
''क्यों?''
"मैं कारण नहीं बता सकती। यह तो भैया को स्वयं ही समझ जाना चाहिये। उस कमरे के साथ मेरी एक भावना सम्बन्धित है।"
"तो इसका मतलब यह हुआ कि मैं अब इस घर में नहीं रह सकता?''
"देखो प्रकाश!" चन्द्रावती ने कहा, ''ड्यौढ़ी में एक ओर चौकीदार रहता है और दूसरी ओर का कमरा टूटे-फूटे सामान के लिए रखा गया है। वह कमरा खाली हो सकता है। उसमें सफेदी इत्यादि करवा लो, फरनीचर लगवा लो।"
"मां! उस कमरे के सामने के कमरे में चौकीदार रहता है उसकी बीबी और बच्चे मैले-कुचैले धूमते रहते हैं। उस कमरे में लोग मुझसे मिलने आया करेगें क्या?''
उत्तर कमला ने दिया, "वह तो आपके सेक्रेटरी का कमरा होगा जहां बैठ वह आपकी चिट्ठी-पत्री लिखा करेगा, परन्तु मुलाकात के लिए तो नीचे की मन्जिल पर ड्रायग रूम है। वह प्रयोग किया जा सकता है।"
"नहीं मां! यह नहीं होगा.। पिताजी कब आ रहे हैं?''
"उनका पत्र कई दिन से नहीं आया। हम उनके आने की आशा कर रहे हैं।"
"माँ! मैं व्यापार से बाहर कर दिया गया हूँ और अब मकान से भी बाहर किया जा रहा हूँ।"
"मकान से बाहर नहीं किए जा रहे। एक बात और हो सकती है। ड्रायंग रूम के साथ वाला कमरा खाली किया जा सकता है। सुन्दरदास वाला कमरा, जब वह सूरदास के साथ रहता था और उसके बगल वाला कमरा जो आजकल खाली पड़ा है, दोनों मिलाये जा सकते हैं और एक बड़ा कमरा बनाया जा सकता है।''
"नहीं मां! मैं तो सूरदास वाला कमरा ही लूँगा।"
''तो सेठजी को आने दो। जैसा वह कहेंगे, वैसा कर लिया जायेगा।"
अगले दिन सेठजी का टेलीफोन आया। टेलीफोन प्रकाश ने उठाया तो पता चला कि उसके पिता बम्बई से बोल रहे हैं।
"हां, पिताजी। मैं प्रकाश बोल रहा हूं।"
"तो तुम आ गये हो?"
"जी।"
''अच्छा, टेलीफोन कमला को दो।"
विवश प्रकाश ने कमला की ओर टेलीफोन भिजवा दिया। दो
मिनट में कमला आयी और बोली, 'पिताजी ने मुझे बम्बई बुलायाहै।"
'किसलिए?"
"बताया नहीं। कहा है कि अत्यावश्यक काम है। तुरन्त चली आओ।"
''तो।"
"पिताजी इस बार अपनी गाड़ी बम्बई ले गये हैं। इस कारण आप अपनी गाड़ी दिल्ली तक पहुँचाने के लिये दे दें। मैं शाम सात बजे का हवाई जहाज पकड़ने का यत्न करूंगी।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :