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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''आज्ञा करिये।"

''वहीं चलो, जहां विश्वम्भर है।"

दोनों श्रीमती के कमरे में जा पहुंचे। विश्वम्भर को श्रीमती टोस्ट दूध मै डाल खिला रही थी। प्रकाश उसे देख हंस पड़ा।

''क्योंजी, हंसे क्यों हैं?''

''तुम्हें कुछ काम करते देख।"

"हां, जब काम हो तो करना भी होता है। जब काम ही नहीं था तो किया क्या जाता?"

''ठीक है! कैसे लगा है यह बिट्टू?''

''बहुत प्यारा लग रहा है। आपके घर की अमावस्य में यह दूज का चांद प्रतीत हो रहा है।"

''बहुत खूब। श्रीमती, मैं तुममें अब रुचि लेने लगा हूं।"

''अपनी रुचि आप इस छोकरी पर ही रखिये। मुझे अपने संसार

में रहने दिया जाये।"

''बताओ विमला! तुम यहां क्या करती हो?"

''प्रात: कमला बहन अपने हाथ से मन्दिर धोती हैं। मैं वहां पूजा करती हूं और आरती उतारती हूँ। यह सब कुछ प्रात: छ: बजे तक समाप्त हो जाता है। तब ठाकुरजी के दर्शन और चरणामृत लेने वाले आते हैं और सुन्दरदास वहाँ रहता है। मैं अल्पाहार के उपरान्त शील बहन से संस्कृत पढ्ने लगी हूँ। दस बजे तक उनसे पढ़ती हूं और तदनन्तर स्वाध्याय करती हूँ।

''ग्यारह बजे अन्न क्षेत्र खुल जाता है। उसको देखने चली जाती हूं। वहाँ से एक बजे अवकाश मिलता है। डेढ़ बजे मध्याह्न का भोजन होता है, तदनन्तर एक घण्टा विश्राम होता है।

''तीन बजे मैं माताजी के लिये बाजार से आवश्यक सामान लेने चली जाती हूं। साथ हवेली का कोई नौकर जाता है।

''पांच बजे सायं की चाय लेकर कमला बहन और मैं शील से अंग्रेजी तथा अर्थशास्त्र पड़ती है। रात को थक कर सो जाती हूं।"

"मैं यह जानना चाहता था कि तुम्हारे विचारों में क्या अन्तर आया है अथवा अभी नहीं?"

''किस विषय में पूछ रहे हैं?"

''मेरे साथ सम्बन्ध हरा-भरा करने के विषय में मैं जानना चाहता हूँ। क्या विचार है?"

''वह तो जड़ तक सूख निर्जीव हो चुका है। उसमें अब हरियाली आने की सम्भावना नहीं है।"

"अच्छी बात है। मुझे किसी अन्य स्थान पर यत्न करना पड़ेगा।"

"तो अब मैं जाऊं?''

प्रकाशचन्द्र चुप रहा। विमला उठ कमरे से निकल गयी।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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