कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
"हूं। ओह, तो आप हैं मार्टिन राम! बैठिए।"
मार्टिन राम बैठ गए। वह अधिकारी इस बार किसी को फोन करने लगा। मार्टिन राम
बेचैन होने लगे। पर उपाय कोई नहीं था। थोड़ी देर बाद उसने फिर कहा, “जी, तो
आप ही मार्टिन राम हैं! चर्च है न अपका?"
मार्टिन राम ने कहा, “सर, एक बच्चे की जान खतरे में है और आप ही उसे बचा सकते
हैं।"
इसके बाद जितनी तेजी से संभव हो सकता था, उन्होंने सारी बात उस अफसर को बता
दी। अफसर सचमुच गंभीर हो गया। कुसी की पुश्त से पीठ टिकाकर बोला, "आप जानते
हैं, यह मामला कितना संवेदनशील है। आखिर यह धर्म का मामला है। किसी दूसरे
धर्म में आप दखलंदाजी क्यों करना चाहते हैं?"
मार्टिन राम आहत हुए, फिर भी उन्होंने तर्क करने की कोशिश की, "सवाल एक
मनुष्य की जिंदगी का है।"
वह अधिकारी मेज पर झुका और सीधे उन्हें घूरता हुआ वोला, "देखिए, मैं तो नहीं
चाहता था, पर अब बता ही दूं। हमारे पास कई लोगों ने रिपोर्ट की है कि आप
आसपास के गरीब लोगों को जोर-जबर्दस्ती ईसाई बनाते हैं। ईसाई बनाने के लिए
उन्हें लालच भी देते हैं।"
"जोर-जबर्दस्ती मैं ईसाई बनाता हूं?" मार्टिन राम ने प्रतिवाद किया, “आसपास
के कहीं किसी एक व्यक्ति को भी..."
अफसर ने टोका, “बात सुन लीजिए पहले। लोगों ने यह भी रिपोर्ट की है कि आपका
चर्च राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का अड्डा है।"
"मगर ये रिपोर्ट..."
"ये रिपोटे लगातार आ रही हैं। मैंने इन पर कोई कार्यवाही तो नहीं की! आपसे
कभी कोई पूछताछ भी नहीं की। खैर, अब आप वो सब छोड़िए। मैं देखता हूं, उस
लड़के के बारे में क्या कर सकता हूं।"
पुलिस थाने में मिली सूचना से उन्हें ज्यादा उलझन हुई। इतने समय से उनके
विरुद्ध यह सब हो रहा है! वे गाड़ी पर बैठे और वापस लौट पड़े। वे यह भी समझ
गए थे कि उस लड़के के साथ मंदिर में जो कुछ हो रहा था, उसे लेकर पुलिस कुछ
नहीं करेगी। थाने से लौटकर वे चर्च नहीं आए। शायद मंदिर की घटना से कतरा जाना
चाह रहे हों। वे चांदगंज के अपने मित्र पी.के. दास के यहां चले गए। दास के
यहां उन्हें खासी देर हो गई। दास की पत्नी ने बहुत अच्छे स्टीक्स तैयार किए
थे। मार्टिन राम काफी हद तक अपनी उलझनें भूल भी गए। वे वापस लौटे तो मंदिर
में पूरी तरह सन्नाटा था। शायद सब लोग चले गए थे। उन्हें लगा, शायद अच्छा ही
हुआ कि जो कुछ भी घटा, उसके वे गवाह नहीं बने। नाले के किनारे की उस मैली
बस्ती में भी खासी खामोशी थी। एक जगह कुछ लोगों के खड़े होने की हलकी-सी झलक
उन्हें मिली, पर अब वे उस तरफ से फिलहाल पूरी तरह असंपृक्त हो जाना चाहते थे।
चर्च के सामने पहुंचकर उन्होंने गाड़ी रोकी और एक क्षण में समझ गए कि वहां
क्या हुआ है।
जिस वक्त नोखे के लड़के को भीगे हुए कपड़ों सहित तेज तपते हुए लोहे के तवे पर
बैठाया जा रहा था, थाने के दो सिपाही मंदिर में आए। मंदिर के बाहर खड़े
युवकों में से एक ने पूछा, "क्या बात है?"
“यहां क्या हो रहा है?" एक सिपाही ने पूछा।
"यहां क्या हो रहा है, मतलब?"
"थाने में रपट लिखाई गई है कि यहां किसी लड़के की जान को खतरा है। बात क्या
है?"
युवक चौंक गया, “थाने में रिपोर्ट! किसने लिखाई है?"
सिपाही ने बता दिया कि रपट पादरी साहब ने लिखाई है। मोटर पर आया था।
"हमें तफ्तीश तो करनी ही है।" दूसरा सिपाही बोला।
"हद हो गई! यहां मंदिर में अनुष्ठान हो रहा है। अब हिंदुओं की यह हालत हो गई
कि हम अपने मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान भी नहीं कर सकते! और तुम लोग चले आए
यहां तफ्तीश करने?"
सिपाही चुपचाप वापस लौटने के लिए पहले से ही तैयार होकर आए थे। वे लौटने लगे।
युवक बोला, “थोड़ी देर में आना, प्रसाद ले जाना।"
सिपाहियों के जाते ही उत्तेजित युवकों की एक भीड़ मार्टिन राम के चर्च की तरफ
दौड़ पड़ी थी।
मार्टिन राम ने देखा, चर्च का दरवाजा शायद कुल्हाड़ी से फाड़ दिया गया था।
अंदर की हर चीज बुरी तरह तोड़कर नष्ट कर दी गई थी। छत के बल्ब, पंखे तक तोडे
गए थे। तभी उन्हें एक उन्माद-भरा शोर फिर सुनाई दिया। उन्हें लगा, वे चर्च से
बाहर आएं, पर तभी बाहर उनकी मोटर तोड़ी जाने लगी। टूटी खिड़कियों से उन्होंने
देखा, कुछ लोग उछल-उछलकर जलती हुई लुकाठियां हिला रहे थे।
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