कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
मार्टिन राम यह सुनकर दहल गए कि नोखे के लड़के को जुर्म कुबूल कराने के लिए
एक धार्मिक आदिम विधि निभाई जा रही है।
मंदिर में जो कुछ हो रहा था, उसे मंदिर की ही भाषा में वहां शायद ही कोई समझ
पाया हो। उन्हें उस कार्यवाही का नाम भी नहीं मालूम था, पर उन गतिविधियों का
सारांश आसपास के सभी लोगों तक पहुंच चुका था।
जो लोग नोखे के लड़के को ले गए थे उन्होंने उसके साथ कोई जोर-जबरदस्ती या
मारपीट नहीं की थी। उनकी आवाज में वह सख्ती जरूर थी, जिसके सामने नोखे की
बीवी और उसका बेटा दोनों ही बेबस हो गए थे। उन लोगों ने बिना आवाज ऊंची किए
कहा था, "देखो, हम इस मामले में पुलिस को बीच में नहीं लाना चाहते। तुम्हें
मालूम है कि किसी ने अपराध किया हो या न किया हो, अगर पुलिस वाले इस छोकरे को
ले गए तो क्या करेंगे! हम यह नहीं कहते, इस लड़के ने हार चुराया है, पर जानकी
वल्लभ जी का कहना है कि उनकी बहू का सोने का हार उस समय गायब हुआ जब ये उनके
यहां रद्दी अखबार लेने गया था। हमलोग जानकी वल्लभ जी की बात का भी विश्वास
नहीं करते। पर इस लड़के को मंदिर चलकर परीक्षा देनी होगी। फैसला हम नहीं,
धर्म करेगा। क्या धर्म पर विश्वास नहीं है? परीक्षा में ये सच्चा साबित हुआ
तो सबके सामने जानकी वल्लभ जी को क्षमा मांगनी पड़ेगी और अगर यह चोर साबित
हुआ तो सजा पाएगा।"
दूसरा बोला, “और सजा भी हम नहीं, धर्म स्वयं देगा। कुसूरवार नहीं है तो इसका
कोई बाल बांका नहीं कर पाएगा।"
तीसरे ने अचानक सवाल किया, “तूने बहू जी का हार देखा था?" "जी, देखा था। वो
पहने थीं।" लड़के ने कहा।
वे युवक चुप होकर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। उनकी निगाहों का भाव वह लड़का
समझ गया।
तीसरे ने कहा, “देखो, हार लिया है तो चुपचाप लौटा दो। कोई कुछ नहीं कहेगा।"
लड़के को लगा, गले का हार देखने की बात कुबूल करके उसने अच्छा नहीं किया। वह
हार वहां जानकी वल्लभ की युवा, सजी-धजी, गोरी और सुंदर बहू के गले में देखना
उसके लिए एक अद्भुत अनुभव था। वह युवती जब अखबारों के बंडल उसके सामने झुककर
रखती थी. तो उसका वह चमकीला हार उसकी चिकनी गोरी ठोढ़ी छूने लगता था और थोड़े
खुले गले वाले नीले रंग के ब्लाउज से उसकी बहुत सफेद छातियां बहुत उत्तेजक
ढंग से दिखने लगती थीं। उस वक्त वह तराजू में डंडी मारना भी भूल गया था। उसकी
निगाह कई बार उन छातियों की तरफ गई। शायद जानकी वल्लभ की बहू ने भी देखा होगा
कि उसकी आंखें बार-बार कहां टिक रही हैं। नोखे के लड़के की आंखों में वही
तस्वीर, हार के सवाल पर फिर उभरी और शायद इसीलिए उसने हार देखने की बात कबूल
भी कर ली थी।
जब वह मंदिर लाया गया, तीनों युवक उसे नीचे सीढ़ियों के पास छोड़कर ऊपर आ गए।
हरिप्रकाश याज्ञिक मंदिर के दरवाजे पर खड़े थे। युवकों में से एक बोला,
"पंडित जी, ये कह रहा है कि इसने गले का हार देखा था, पर इस बात से इनकार कर
रहा है कि इसने वह हार चुराया है।"
"अपने काम से काम रखो। फैसला अब धर्म करेगा। इसे पीछे माली की कोठरी में ले
जाओ। इसे नहाने का पानी दिलवा दो। सूर्यास्त से पहले जो खाए, खिला दो। इसके
बाद परीक्षा तक इसे उपवास करना है। हां, नहाने के बाद न यह किसी का स्पर्श
करेगा, न किसी से बात करेगा।" याज्ञिक ने फैसला दिया और अंदर चले गए।
गर्भगृह के सामने बिछी चटाइयों पर मंदिर के प्रबंधक यज्ञदत्त शर्मा और
राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगम के चार-पांच दूसरे लोग बैठे थे। शर्मा ने पूछा,
"क्या हुआ? वो आया?"
"हां, आ गया है। स्नान और उपवास के लिए पीछे माली की कोठरी में भिजवा दिया
है।" याज्ञिक ने बताया।
वे लोग थोड़ा आश्वस्त हुए। शर्मा ने पूछा, "दिव्य कौन-सा सोचा है?"
राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगम का एक व्यक्ति बोला, “घट सर्प दिव्य कैसा रहेगा?"
याज्ञिक कुछ नहीं बोले। शर्मा ने ही उत्तर दिया, “घट सर्प संदिग्ध है।"
"वो कैसे?"
"घट सर्प व्यवहार में स्त्रियों के पातिव्रत की परीक्षा के लिए मान्य दिव्य
रहा है। महामंडलेश्वर कीर्तिवीर्य का अभिलेख है-'संप्रात्पा घट सर्पजात विजयं
लक्ष्मीधर प्रेयसी। लक्ष्मीधर की रानी ने अपने पातिव्रत को सिद्ध करने के लिए
उस घड़े में डाली गई अंगूठी निकाल ली, जिसमें सांप था। वह पतिव्रता थी। सांप
ने डसा नहीं था। शूद्रों के लिए जल, विष या अग्नि के दिव्य ठीक होते हैं।
क्यों याज्ञिक जी?" शर्मा बोले।
याज्ञिक ने कहा, "इसमें विवाद कैसा? यह वर्षा ऋतु प्रारंभ हो गई है। नारद
स्मृति के अनुसार वर्षा ऋतु में अग्नि का दिव्य ही उचित होता है।"
"हां। शर्मा जी, किसी से एक बड़ी अंगीठी मंगाकर पीछे मंदिर के बगीचे में सुबह
से ही सुलगवा दीजिएगा। उसके ऊपर गर्म करने के लिए एक बड़ा तवा भी चाहिए।
शोध्य को उस पर बीस पल के लिए बैठाया जाएगा। इसके बाद दोनों हथेलियां रखी
जाएंगी और तवे पर जिह्वा से पांच बार स्पर्श करना होगा। अगर वह शोध्य जलता
नहीं है तो वह पवित्र है। उसने चोरी नहीं की है।" याज्ञिक ने कहा।
शर्मा बोले, “प्राश्निक? उस समय धर्मवेत्ता न्यायाधिकरण के अलावा प्राश्निक
भी तो होते हैं। हमारे संगम के परिसंवाद में तीन बड़े विद्वान आए हुए हैं।
क्या हम उन्हें बुला लें?"
"बुला लीजिए," याज्ञिक ने कहा, “पर उन्हें अलग बैठाने की व्यवस्था करनी होगी,
क्योंकि दिव्य में या तो न्याय समिति के सदस्य और अध्यक्ष आचार्य बृहस्पति
रहेंगे या फिर पांच पवित्र मन के साक्षी।"
"उन्हें हम ऊपर की दीर्घा में तो बैठा सकते हैं?"
"कर लीजिएगा।"
इस सारे कार्यक्रम की कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई। इसको किसी ने प्रचारित भी
नहीं किया, पर अगले दिन तक उस सारे इलाके में यह बात फैल गई कि जानकी वल्लभ
की बहू के हार की चोरी का पता लगाने के लिए नोखे के बेटे के साथ
क्या किया जाने वाला है। किस तरह उसे जलते तवे पर बैठाया जाएगा। इसकी चर्चा
हर कहीं हो रही थी।
मार्टिन राम को सारी स्थिति समझने में थोड़ा वक्त लगा। सहसा उनकी समझ में
नहीं आया कि वे क्या करें। उन्होंने इंजन चालू किया और धीमी गति से गाडी
चलाते हुए आगे बढ़ गए। वे समझ रहे थे कि इसमें हस्तक्षेप इतना आसान नहीं था।
उनका चर्च कोई खास चर्च जैसा नहीं था। वह एक छोटा-सा पुराना मकान-भर था,
जिसमें उन्होंने नाले के किनारे चिपक गए घरों के कुछ बच्चों को पढ़ाना शुरू
किया था। चूंकि वे रात को लोगों को सस्ती होम्योपैथी की दवाएं भी देते थे,
इसलिए कुछ लोग अपने बच्चे भेजने लगे थे। वैसे न तो उस बस्ती वालों की पढ़ने
में कोई रुचि थी और न बच्चों में कोई खास उत्साह था। वे या तो पतंग उड़ाना,
कंचे खेलना और एक-दूसरे को गालियां देना पसंद करते थे या कोई छोटा-मोटा काम
करना। बाद में मार्टिन राम ने स्कूल में बच्चों को बंद-मक्खन देना शुरू कर
दिया। उनका खयाल था कि इसके लालच में बच्चे जरूर जाएंगे और उनकी तादाद भी
बढ़ेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दरअसल इस तरह का लालच इन बच्चों में से बहुत
कम को ही प्रभावित करता था। ज्यादातर बच्चों ने अपनी पसंद की चीजें खाने के
इंतजाम कर रखे थे। अक्सर वे सिगरेट या पान मसाले के पैकेट के लिए भी साधन
जुटा ही लेते थे।
स्कूल के प्रति रुचि पैदा करने की उनकी इस कोशिश से एक दिन एक तकलीफदेह
स्थिति पैदा हो गई। उस दिन बच्चे पढ़ने आए तो बोले, "फादर जी, बाहर किसी ने
एक कागज चिपकाया है। उस पर आपका नाम भी लिखा है।"
मार्टिन राम समझ नहीं पाए कि चिपकाया गया कागज क्या हो सकता है।" बच्चे
ज्यादा कुछ तो नहीं समझ पाए थे, पर उन्हें यह जरूर लग गया था कि कागज पर जो
लिखा है, उसमें कुछ गड़बड़ी है। एक क्षण के लिए उन्हें लगा कि इस कागज की
सूचना की उपेक्षा करनी चाहिए, मगर फिर वे उठकर बाहर आ गए। कागज पर लिखी इबारत
पढ़कर वे खासे ही खिन्न हो गए। एक बड़े पोस्टर के आकार के पीले कागज पर लिखा
गया था-"ईसाई कुत्ते मार्टिन राम, ईसाइयत का घृणित जाल फैलाकर हिंदू धर्म को
चोट पहुँचाना बंद कर। लालच देकर हिंदुओं को ईसाई बनाना हम सहन नहीं करेंगे।"
एक क्षण के लिए उनके हाथों में हलकी-सी जुबिश हुई। शायद उन्होंने उसे फाड़ना
चाहा, पर उसे ज्यों का त्यों छोड़कर वे लौटने लगे। उनके स्कूल के कछ बच्चे भी
उनके साथ बाहर आ गए थे। उनमें से एक बोला, "फादर, इसे फाड़ दें?"
मार्टिन राम ने कोई जवाब नहीं दिया। बच्चों ने जल्दी ही उस पोस्टर की
चिंदियाँ कर दी, पर मार्टिन राम को लग रहा था, वह पोस्टर वहां दीवार पर नहीं,
उनकी छाती के भीतर चिपका दिया गया। है।
उस दिन उन्होंने बच्चों को पढ़ाया, पर मन नहीं लगा। उन्होंने उन्हें जल्दी ही
छोड़ दिया। कुछ देर कमरे में टहलते रहे, फिर बैठ गए। मौसम में बेहद उमस थी।
निरुद्देश्य ही उन्होंने बाइवल खोल ली-“यीशु आत्मा में व्याकुल हो उठे और एक
साक्षी दी। मैं तुमसे सच-सच कहता हूं कि तुममें से एक मुझे पकड़वाएगा। शमोन
पतरस ने संकेत करके उससे कहा, “प्रभु, वह कौन है?"
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