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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


"चाहें तो मैं एक स्लिप दे देता हूं।"

“जी, शक्रिया। मगर जिस काम से मैं जनाब गवर्नर साहब हुजूर से मिलना चाहता हूं-मेरा मतलब है, मुझे दरअसल कुछ अर्ज करना है।"

“किस सिलसिले में? आप मुझे बताएं।" उस आदमी ने कहा।

हमदम साहब को थोड़ा संकोच हुआ, फिर वे धीरे-धीरे बताने लगे, “हुजूर, बात ये है कि मैं मलियाना का रहने वाला हूं-जी हां, वही मलियाना, जहां आजकल कयूं लगा हुआ है। बल्कि जनाब, मैं क्या कहूं, मैं उन दो लोगों में से एक हूं, जिन्हें बाकी सौ-डेढ़ सौ लोगों के साथ गाजियाबाद ले जाकर पी. ए. सी. ने गोली मार दी थी।"

"क्या?" सहसा वह आदमी बौखला गया, "मतलब आप...यानी आपको... मेरा मतलब है..."

“हुजूर, मैं उन्हीं लोगों में से एक हूं। अल्लाह का शुक्र है, मैं बच गया।"

मगर वह आदमी अब आगे की बात सुन नहीं रहा था। बेचैनी से करवट बदलकर उसने कहा, "सुनिए, आप जरा-सा इंतजार कर लें, मैं बस अभी हाजिर हुआ।"

“बेहतर है हुजूर, बेहतर है।"

“आपको चाय भिजवाता हूं।"

"जी नहीं। शुक्रिया। एक गिलास पानी मिल जाता-"

“पानी?" उस आदमी ने किसी को बलाकर उन्हें पानी और चाय देने को कहा और कोठी के अंदर चला गया।

दुबारा वह काफी देर में ही वापस आया। तब तक पानी तो आ गया था, चाय नहीं आई थी। उस आदमी ने आते ही कहा, “महामहिम जाने वाले हैं, लेकिन वे दो मिनट आपसे मिलना चाहते हैं।"

"या खुदा!" उन्होंने छत की तरफ देखकर कहा, "तेरी मेहरबानी!"

गवर्नर साहब अपने दफ्तर में थे। उन्होंने हमदम साहब को बहुत इज्जत से अपने करीब की सेटी पर बैठा लिया। हमदम साहब का गला भर आया, जिस सरकार के सबसे बड़े हाकिम ऐसे रहमदिल और मेहरबान हों उस सरकार के खिलाफ लोग ऐसी-ऐसी बातें करें? वे देर तक बिना कुछ बोले डबडबाई आंखों से उन्हें घूरते रहे। गवर्नर उनकी मानसिक स्थिति समझ गए। थोड़े क्षणों के बाद बहत नरमी से उन्होंने पूछा, “कैसे हैं?"

"जी, आपकी दुआ है हुजूर, जिंदा हूं। वैसे हुजूर, मैं इसे भी खुदा की मर्जी मानता हूं कि उसने मुझे जिंदगी के चंद दिन और बख्शे हैं ताकि मैं फिरकापरस्तों और मुल्क के दुश्मनों के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकूँ। जनाब, अब देखिए, यह जो गाजियाबाद वाला हादसा हुआ है इसकी जिम्मेदारी भी सरकार पर डाली जा रही है। जबकि सब जानते हैं कि इस वक्त हमारे वतन के लीडरान के खिलाफ खुलेआम साजिश हो रही है जनाब!"

गवर्नर ने उनके सामने धीरे से एक अखबार रख दिया। अखबार में गाजियाबाद के हादसे की सफाई में मुख्यमंत्री का बयान छपा था। उनका कहना था कि छिहत्तर आदमियों की हत्या सरासर झूठ है।

पढ़ते-पढ़ते हमदम साहब जोश में आ गए, “यह ठीक किया जनाब! इस साजिश का ऐसे ही जवाब देना चाहिए था।"

"आपने आगे पढ़ लिया?" गवर्नर ने पूछा।

हमदम साहब बाकी खबर भी पढ़ने लगे। पढ़ते-पढ़ते वे बेचैन होने लगे। खबर पढ़ना खत्म करके वे फटी आंखों से गवर्नर को घूरने लगे। काफी देर बाद ही उनकी आवाज फूटी, “जनाब...मैं...खुदा कसम जनाब, ये सब झूठ है। सफेद झूठ। मैं...मेरा मतलब दो बरस पहले पाकिस्तान से शोअरा आए थे, उनसे जरूर मिला था, मगर खुदा गवाह है, मेरा किसी पाकिस्तानी जासूस से ताल्लुक...मगर हुजूर सुनिए, क्या आप भी इस बयान पर यकीन करते हैं? मैं तो जनाब, रऊफ को भी खूब जानता हूं। वो साइकिल का पंचर ठीक नहीं बना पाता, गैरकानूनी असलहा क्या बनाएगा-जनाब...मैं...ये तो हद है हुजूर, ये तो ठीक है कि...मगर हुजूर, आप तो मुझे जानते हैं जनाब, कौमी यकजहती पर पिछले बरस मेरी नज्म पर आपने खुद दाद दी थी हुजूर, यकीन मानिए, ये सब झूठ है जनाब, सफेद झूठ।"

गवर्नर ने हाथ बढ़ाकर धीरे से उनका कंधा दबाया। और कोई वक्त होता तो हमदम साहब इस अनुग्रह से गद्गद हो उठते और इस गौरव और सम्मान का बखान वे महीनों करते, पर इस वक्त वह हाथ वहीं पड़ा था, जहां जख्म था और इस स्पर्श से उन्हें गौरव नहीं, एक गहरा दर्द महसूस हुआ, जो उनके कलेजे तक उतर गया।

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