लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 150 पाठक हैं |
औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
नारी वर्ग अगर समकामी होता तो बच जाता। असमकामी होने की असुविधा यह है कि अनादर, अवहेलना. अपमान. असन्तोष को एक तरह से अपना चिर-संगी बनाकर, ज़िन्दगी गुजारने को लाचार होना पड़ता है। पुरुष, नारी को कोमल पंखों की तरह, समूचे अंग-प्रत्यंग को स्पर्श करेगा और नारी कली से चटक कर फूल बनने की तरह, खिलकर, निखर आयेगी। बाघिन की तरह कामात आँखों से देखेंगी, हिरण की तरह कातर आँखों से नहीं। पुरुष के विश्वास, स्पर्श, पसीने, गन्ध, सेक्स, कामना-वासना की छुअन से तीखा-उग्र प्रेम उमड़ आयेगा। लेकिन क्या सच ही उमड़ता है? नहीं! बल्कि राक्षस की तरह जाग उठता है। बलात्कार की तीखी चाह! मेगालोमेनिया! माचिसमो! नारी को पीस-कुचलकर, रेशा-रेशा बना देने में ही पुरुष-सुख छिपा है।
यह दुनिया पुरुषों की है। भारत तो और ज़्यादा पुरुषों का है। पुरुष नारी की कामना करता है, जब चाहे तब काम कर बैठता है। लेकिन औरतों में कामना-वासना नहीं होनी चाहिए। अगर हो तो व्यक्त नहीं करनी चाहिए। नारी की देह कभी न जागे। अगर जाग भी जाए, तो उसे नींद में सुलाये रखने में ही मंगल है। नारी को बढ़कर सामने नहीं आना चाहिए। उसे चुम्बन नहीं लेना चाहिए। सेक्स में नारी प्रधान भूमिका नहीं ले सकती। नारी यौन-प्रभु नहीं है, यौन-दासी है। पुरुष ने यही चरित्र बड़े जतन से नारी को उपहार दिया है। सेक्स में नारी अगर संगिनी की भी भूमिका निभाती है, फिर भी पुरुष की छाती दहल जाती है, पुरुषांग शिथिल पड़ जाता है। जब तक नारी यौन-दासी की भूमिका में नहीं उतरती, उतनी देर तक पुरुष का उत्थान अनिश्चित है।
जो औरत कामवासना से तड़प उठती है, वह बुरी औरत होती है। पुरुष अगर कामवासना से व्यग्र होता है तो वह वीर्यवान है, शौर्यवान है। इस विषमता के साथ क्या नारी-पुरुष में कभी सच्चा और स्वस्थ यौन सम्पर्क हो सकता है? नहीं! नाकामी मिलती है। घर-घर में नारी-पुरुष मिल कर जो यौन सम्पर्क करते हैं उसके लिए कहा जाता है-पुरुष, नारी से यौन सम्पर्क कर रहा है। जुबान की भाषा में ही व्यक्त हो उठता है, विषमता का बीभत्स चित्र। वे दोनों सेक्स कर रहे हैं।' इसकी जगह कहा जाता है। वह सेक्स कर रहा है।' एक जन काम करता है और दूसरा बैठा रहता है-मामला कुछ ऐसा ही है। सेक्स में नारी की कोई भूमिका नहीं होती, होनी नहीं चाहिए-यह सर्वमान्य राय है।
दुनिया नीचता से भरी हुई है। हालाँकि देखने भर से समझने का कोई उपाय नहीं। नहीं, किसी को शर्म महसूस नहीं होती, उन लोगों का सिर भी नहीं झुकता, कोई दुश्चिन्ता भी नहीं होती। निकृष्ट लोगों का सिर उठा रहता है। जो नारियाँ निकृष्ट पुरुषों का शिकार होती हैं, वे लोग ही सिर झुकाये-झुकाये दिन गुज़ारती हैं। दुःसह रातें व्यतीत करती हैं। नारी सेक्स में तृप्ति महसूस करे, निकृष्ट लोग क्या दिल से ऐसा चाहते हैं? अगर चाहते, तो अपने को सुधार लेते, सेक्स के नाम पर दिन-पर-दिन नारियों पर अत्याचार नहीं करते।
|
- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं