लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
पुरुष जिस दिन यह विश्वास करेगा कि नारी का भी बराबरी का हक़ है, जिस दिन पुरुष, नारी-स्वाधीनता को शर्तहीन सम्मान दे कर धन्य होगा, जिस दिन पुरुष अपने कुत्सित पौरुष का विसर्जन दे कर, तमाम पुरुषजनित नृशंसता-कायरता त्याग कर, इन्सान बनेगा, मानवीय होगा, प्रेम से नारी को स्पर्श करेगा, जिस प्रेम के साथ श्रद्धा भी समाहित होगी, उसी दिन नारी-पुरुष में सच्चा सेक्स-सम्पर्क होगा। इससे पहले तक, वही एक ही घटना-एक जन भोग करता है और दूसरा भोगता है।
नारी-स्वाधीनता का मतलब है-'सेक्स-स्वाधीनता'। अधिकतर लोगों की यही धारणा है। इस जुमले में व्यंग्य छिपा होता है, लेकिन बात सच है। सेक्स-स्वाधीनता के बिना, नारी कभी भी सच्चे अर्थों में स्वाधीनता अर्जित नहीं कर सकती, कभी कर भी नहीं पायी। जिस नारी की देह, उसके अपने अधिकार से बाहर चली जाती है, वह नारी किसी भी अर्थ में 'स्वाधीन नारी' नहीं कही जा सकती। शिक्षित और स्वनिर्भर होने के बावजूद, इस नारी-विरोधी समाज में, नारियाँ ‘सेक्स-गुलामी' से हरगिज मुक्ति नहीं पा सकतीं। इस दासत्व से मुक्त हो कर, इस कैद से रिहा हो कर नारी अगर सेक्स-स्वाधीनता पूरी-पूरी तरह भोग कर पाये, तभी उस नारी को मैं 'स्वाधीन' मानूँगी। सेक्स-स्वाधीनता का मतलब यह नहीं है कि पुरुष को पाते ही, उसके साथ सो जायें, पुरुष के साथ न सोना भी सेक्स-स्वाधीनता है। चारों तरफ़ बलात्कारियों की भीड़ लगी है। ऐसे में बलात्कारी लोगों के आह्वान और आदेश का जवाब न देने की जो सेक्स-स्वाधीनता है, उसका होना हर नारी के लिए ज़रूरी है। जो पुरुष होठ काटकर, स्तन बकोटकर अपने पौरुष का धौंस जमाने की कोशिश करते हैं, वे लोग चाहे जो भी क्यों न हों, उन लोगों को धकेलकर हटा देने की यौन-स्वाधीनता अगर न मिले, तो नारी की मुक्ति नहीं, जो पुरुष केवल अपने यौन-सुख में मग्न रहते हैं, नारी यौन-सुख में जिनकी कतई, कोई दिलचस्पी नहीं है, ऐसे पुरुषों को पूरे जोर के साथ इनकार करने की यौन-स्वाधीनता, चाहे जैसे भी हो, नारी को अर्जित करना ही होगी।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं