लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
अगले दिन इलाके के लोगों ने पुलिस के ख़िलाफ़ जुलूस निकाला। पुलिस ने उस जुलूस पर गोलियां चलाईं। जिसमें सात ग्रामवासियों की जान चली गयी। अगले दिन सरकारी रिपोर्ट कुछ यूँ छपी-'यास्मीन चरित्रहीन औरत थी। पुलिस ने जो किया, सही किया। इस किस्म की घटनाएँ, हर बांग्लादेश में ही घटती हैं? अन्यत्र नहीं घटती हैं? हम सब जानते हैं कि इस किस्म की घटनाएँ, हर जगह घटती हैं, रक्षक हमेशा ही भक्षक बन जाता है। भक्षक बने क्यों नहीं? नारी-भक्षण तो कोई गुनाह नहीं है। कहाँ लिखा है कि यह जुर्म है? औरत तो भोग्या है, भोज्या है, भक्षणीय है। यह बात सभी जानते हैं और मानते हैं। पण्डित-पुरोहित से ले कर पाँच वर्ष का बच्चा भी जानता है कि पुरुष सर्वशक्तिमान होता है और उन लोगों को सर्वमय अधिकार है कि वे लोग जैसे चाहें, औरत को कुचलें, पीसें-दबायें। उन्हें सर्वमय अधिकार है कि वे लोग जब चाहें बलात्कार करें, जला कर मार दें या फूंक दें।
यह जानना-मानना जिस दिन बन्द हो जायेगा, उस दिन शायद दुःसमय हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो जायेगा। इस समाज में नारी को सम्मान देने का रिवाज़ नहीं है। सम्मान की जो संज्ञा पुरुषों ने तैयार की है, उससे औरतों के असम्मान के अलावा और कुछ नहीं होता।
विख्यात नारीवादी पत्रिका 'एम एस के सम्पादक. रॉबिन मॉर्गन ने बलात्कार के बारे में कई अहम बातें कही हैं। उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ कहा है-'जिस यौन-सम्पर्क की शरुआत करने वाली अगर औरत न हो. अगर इसमें सचमच सेक्स-इच्छा से शुरू न हो, ऐसे सेक्स-सम्पर्क का मतलब है-बलात्कार!'
पुरुषतान्त्रिक परिवेश में पुरुष की इच्छा से, पुरुष की दखल में किये जाने वाले सेक्स-सम्पर्क में सिर्फ़ विषमता ही नहीं है, प्रत्यक्ष रूप से अकथ्य अत्याचार न होने की कोई वजह नहीं है। जहाँ सर्वत्र वैषम्य और पुरुष का आधिपत्य हो, वहाँ तो यह सब होगा ही। बन्द कमरे में बीभत्सता की हरकत को 'लव मेकिंग' नाम देने से ही, मानो सात खून माफ़ हो जाते हैं।
रॉबिन मॉर्गन का कहना है, 'रेप इज़ द परफेक्टेड ऐक्ट ऑफ मेल सेक्सुअलिटी इन ए पेट्रिआर्कल कल्चर! इट इज़ द अल्टिमेट मेटाफर फॉर डॉमिनेशन, वायलेंस, सब्जुगेशन ऐंड पोजेशन।'
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- इतनी-सी बात मेरी !
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- बंगाली पुरुष
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- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
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- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
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- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं