लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
'क़ानून, क़ानून की तरह किताबों में ही बन्द पड़ा रहेगा, प्रयोग के क़ाबिल भी नहीं रहेगा'-जिन लोगों ने ऐसा कहना शुरू किया था, उन लोगों को खारिज करते हुए, कानून बनने के अगले दिन ही तमिलनाडु के जोज़ेफ़ नामक एक शख्स को अपनी बीवी को पीटने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। बीस हज़ार रुपये जुर्माना चुकाने के बाद ही उसकी रिहाई हुई। जोज़ेफ़ जैसे लोग इतने लम्बे अर्से से यह सोचा करते थे कि बीवी को वे लोग अपनी इच्छा मुताबिक पीटेंगे, जलाएँगे मगर ऐसा अब नहीं होने वाला! प्यार-मुहब्बत अगर शान्तिपूर्ण सहवस्थान का माहौल रचता तो वह आदर्श सहवस्थान होता। लेकिन अगर ऐसा न हो, तब तो भय ही एकमात्र भरोसा होता है। भय दिखाकर ही शान्ति स्थापित करना होगी। यह जाति, धार्मिक जाति है। नरक का भय है इसलिए थोड़ा-सा ही सही, नरम रहती है।
जब भूख लगे, हिंसा की मानसिकता जागे, क्रोध आये, गुस्सा चढ़े तो दूसरे को मारने-काटने, खून कर डालने की प्रवृत्ति इन्सान नामक दो पैरों वाले जीव में न जागे, इसकी कोई वजह नहीं है। लेकिन जन्म के बाद से ही वह नैतिकता की शिक्षा, न्याय-अन्याय-बोध की तालीम भी अर्जित करता रहता है, इसलिए बहुत सारी इच्छाओं का दमन भी करता रहता है। अब अगर औरतों के खिलाफ़ किये गये अन्याय को वह अन्याय न माने और इस समाज में इसी मानसिकता के साथ बड़ा हो, तो उन्हें नये सिरे से शिक्षा देने का इन्तज़ाम इसी ढंग से करना होगा। इसी तरह, क़ानून बनाकर!
दूसरों पर आघात मत करो, दूसरों का नुक़सान मत करो, दूसरों पर हाथ मत उठाओ, दूसरों की जान न लो-दूसरों की सुरक्षा के लिए तो एक सौ एक क़ानून बने हैं, लेकिन इन 'दूसरों' में औरत को शामिल करने की आदत किसी में भी नहीं होती। औरतों की सुरक्षा के लिए औरतों को बचाने के लिए क़ानून क्यों न बने? खासकर उन औरतों के लिए, जो रिश्तों के नाम पर पुरुषों के साथ रहने को लाचार हैं। मसलन पत्नी, प्रेमिका, माँ, बहन, बेटी के रिश्ते से...!
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं