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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


इसके बाद, उत्तरी यूरोप की कड़क ठण्ड में ठिठुरता जीवन! मेरे अंग-अंग में एकाकीपन की सूइयाँ चुभती हुईं। वर्ष-दर-वर्ष उदास हवा में उड़ते हुए! एक देश से दूसरे देश! प्रसिद्धि के सागर में ऊब-डूब करती हुई। लेकिन दिल की गहराइयों में सूखा! अकाल! समूचे बदन पर काई जमी हुई! वह काई पड़ी देह, किसी निर्जन स्थल पर असहनीय एक रात, किसी मर्द के स्पर्श से बेतहर थरथरा उठा। मामूली सी घनिष्ठता और हमारा एकत्रवास शुरू! लेकिन चन्द दिनों में ही मुझे अहसास हो गया कि मैं मर्द नहीं चाहती, मैं प्यार चाहती हूँ! प्यार की तलाश पूरी होते-होते, पूरा साल गुज़र गया! फ्रांसीसी नौजवान! विमानचालक! उम्र में छह साल छोटा! हम दोनों ही उत्ताल प्यार में डूब गये। उन दिनों मैं पेरिस में थी, प्रेम के शहर में। उन दिनों, मेरी उम्र तीस के अन्तिम चरण में थी। मेरा फ्रांसीसी प्रेमी, छुट्टियों में तूलूज़ शहर से भागता-भागता पेरिस आ पहुँचता था। हम दोनों एक-दूसरे को चूमते हुए, सेइन नदी तट को स्निग्ध किया करते थे। विमान में, गाड़ी में, बस में, नाव में, बार-रेस्तरां में, रास्ते-घाट पर, एक-दूसरे को प्रगाढ़ आलिंगन में लिए हुए गहरे-गहरे चुम्बन में बेसुध रहते थे। नहीं, यह सब किसी को दिखाने के लिए नहीं होता था। हमारे इर्द-गिर्द कोई और भी है, हमें इसका होश कहाँ रहता था? हम तो दीन-दुनिया भूले रहते थे। प्यार ऐसा ही होता है! बिलकुल अंधा बना देता है। बंगाली पुरुषों से प्रेम का जो पाठ पढ़ा था, मेरे फ्रांसीसी प्रेमी ने यह साबित कर दिया कि वह सही नहीं था। मेरा वह प्रेमी जितने प्यार और श्रद्धा से मेरा अंग-अंग स्पर्श करता था, वह देख कर मैं मुग्ध रह जाती थी। प्यार इतना खूबसूरत होता है, इतनी समता और गौरव का एहसास देता है, यह मैं पहले नहीं जानती थी। उसके चुम्बन, उसके आलिंगन, उसके पूर्वराग ने मुझे प्यार की किसी और ही दुनिया से पहचान करायी। जिस दुनिया के दायरे में कोई बंगाली पुरुष मुझे कभी नहीं ले गया। सेक्स एक असाधारण कला है, इसकी तालीम मुझे पहले कभी नहीं मिली थी। मेरी निर्जनता तोड़ कर, उसे चकनाचूर करते हुए, मेरे उस फ्रांसीसी प्रेमी ने सच ही मुझे एक आकाश दिया था। मुझे सच्चा शारीरिक प्रेम का पाठ पढ़ाया। लेकिन मुश्किल यह आन पड़ी कि मेरा प्रेमी मुझे माँगता था! वह चाहता था, मैं सिर्फ उसकी बनी रहूँ। वह चाहता था कि मैं उसके साथ एकत्रवास करूँ! हाँ उसका प्यार 'पैशन' से भरपूर था, प्रबल-प्रचंड प्रेम था उसका! उसका कहना था, अगर मैं उसे न मिली तो वह आत्महत्या कर लेगा। उसके जीवन का और कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। मैंने उसे 'ना' कह दिया। मैंने उसे बता दिया कि मैं पेरिस छोड़ कर, सिर्फ उसके साथ रहने के लिए, तूलूज नहीं जाऊँगी। मैंने उसे समझा दिया कि मेरे तुलूज जाने के बजाय, खुद वही पेरिस चला आये या इसी तरह अलग-अलग रह कर प्यार जारी रहेगा। लेकिन प्रेमी जनाब यह मानने के लिए तैयार नहीं थे। उसे लगा, मैं उसे छोटा किये दे रही हूँ! उसने इल्ज़ाम लगाया कि वह मेरे हाथों का 'ट्वाय-ब्वाय' यानी खिलौना है, और कुछ नहीं! वह आकुल-व्याकुल मुद्रा में रोता रहा–'तुम तो मशहूर हस्ती हो, मुझ जैसे अनाम बन्दे को भला क्यों प्यार करने लगी?'

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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