लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 150 पाठक हैं |
औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
नारी के लिए शिक्षा की ज़रूरत की बात कही जाती थी। वह शिक्षा आदर्श स्त्री और आदर्श माता के रूप में रचने-गढ़ने की शिक्षा होती थी। सन् 1942 में एक किताब प्रकाशित हुई थी-'नारी-धर्म-शिक्षा'। इस किताब में नियम-शृंखला, साफ-सफाई, नम्रता से सिर झुकाये रहना ये सभी बातें नारी में ढूंस-ठूंस कर भरी गयी हैं। इस किताब में आदर्श गृहिणी की तस्वीरें भी दी गयी हैं। पहली तस्वीर में नारी जगमगाती-चमचमाती रसोई में बैठ कर चरखा कात रही है। दूसरी तस्वीर में नारी एक सुव्यवस्थित कमरे में बैठी 'नारी के कर्तव्य' नामक किताब पढ़ रही है। तीसरी में नारी उसी कमरे में एक चटाई पर बैठ कर, एक शिशु के साथ खेल रही है। उस किताब में कुछेक नियम भी दिये गये हैं और नारी से यह अपेक्षा की गयी है कि वह इन नियमों का पालन करे-
1. सुबह नींद से जाग कर और रात को सोने जाने से पहले भगवान का नाम लें।
2. सूर्योदय से पहले जागे जायें और जिस दिन ऐसा न कर सकें, उस दिन
उपवास रखें।
3. नहा कर सूर्य-पूजन करें।
4. एक हजार पाँच सौ बारह बार 'हरे राम' का मन्त्रोच्चार करें।
5. हर घंटे, कम-से-कम एक बार भगवान को स्मरण करें।
6. बड़े लोगों का चरणस्पर्श करें।
7. कभी भी क्रोध में न आयें।
8. ईश्वर की पूजा करें।
9. कभी भी अतृप्ति या असन्तोष न दिखाएँ।
10. अगर अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष पर नज़र पड़ जाये तो तत्काल ईश्वर का नाम-जाप करना।
11. कभी किसी की आलोचना न करना।
12. खिलाते वक़्त किसी के साथ विश्वासघात न करना।
13. कभी निष्ठुर न बनना।
14. कभी हँसी-मज़ाक न करना।
15. कभी किसी के दिल को चोट न पहुँचाना।
16. सदा सत्य वचन बोलना।
17. कभी कुछ छिपाना नहीं।
18. अगर तुम नियम भंग करो, तो एक सौ आठ बार 'हरे राम' मन्त्र का जाप करो।
|
- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं