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			 लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
 मूसलाधार बारिश और वज्रपात! 
 इन्हीं सब में पिछले दिनों घर से निकल पड़ी। क्यों? बारिश में भीगने।
 
 क्यों? भीगोगी क्यों? 
 
 इच्छा हो रही है! 
 
 इच्छा? 
 
 जीऽऽ, इच्छा! 
 
 लोग क्या सोचेंगे? 
 
 क्या सोचेंगे? 
 
 सोचेंगे, दिमाग़ खराब हो गया है!
  
 सोचने दो! 
 
 बारिश में भीगोगी तो बीमार पड़ जाओगी। 
 
 कैसी बीमारी? 
 
 सर्दी-बुखार! 
 
 होने दो! 
 
 इस उम्र में शोभा नहीं देता! 
 
 किस उम्र में शोभा देता है? 
 
 सोलह-सत्रह की उम्र होती, तो ठीक था।
 
 बहुतेरे लोगों की नज़रों में यह भी ठीक नहीं। किस उम्र में क्या करना ठीक है, क्या ग़लत, किसने बनायी है यह लिस्ट?
 
 समाज ने!
 
 समाज के लिए हम हैं या हमारे लिए समाज? नियम-कानून आखिर इन्सान ही बनाता है न! इन्सान ही उन्हें तोड़ता भी है। कोई भी नियम ज़्यादा दिनों तक नहीं रहता।
			
						
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- इतनी-सी बात मेरी !
 - पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
 - बंगाली पुरुष
 - नारी शरीर
 - सुन्दरी
 - मैं कान लगाये रहती हूँ
 - मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
 - बंगाली नारी : कल और आज
 - मेरे प्रेमी
 - अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
 - असभ्यता
 - मंगल कामना
 - लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
 - महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
 - असम्भव तेज और दृढ़ता
 - औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
 - एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
 - दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
 - आख़िरकार हार जाना पड़ा
 - औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
 - सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
 - लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
 - तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
 - औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
 - औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
 - पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
 - समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
 - मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
 - सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
 - ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
 - रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
 - औरत = शरीर
 - भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
 - कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
 - जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
 - औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
 - औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
 - दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
 - वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
 - काश, इसके पीछे राजनीति न होती
 - आत्मघाती नारी
 - पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
 - इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
 - नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
 - लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
 - शांखा-सिन्दूर कथा
 - धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं
 

 
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