लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
कोई धर्माचरण करके औरतों को सचमुच कोई लाभ नहीं होता, इस बात से अनजान होने के बावजूद, उन लोगों ने कुछ तो ऐसा कर डाला जो समाज में निषिद्ध है। औरतों की राह ऐसे हज़ारों-हज़ार निषेध के कूड़ा-करकट से भरी हैं। अपनी राह पर चलने के लिए औरत की अहम जिम्मेदारी है कि पहले इन तमाम निषेधों को कूड़े के ढेर में फेंक दे। यह सच है कि गाँव की औरतें कभी-कभी अक्खड़ बन जाती हैं समझ-बूझ कर या नासमझी में बग़ावत कर बैठती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गाँव में जो अशिक्षा या कुशिक्षा थी, अब नहीं है। कहीं नारी-निर्यातन नहीं है। आज भी वह सब कुछ मौजूद है। बाल-विवाह, दहेज प्रथा, स्त्री-हत्या, बलात्कार, खून-कत्ल वगैरह बहाल तबीयत से विराज करते हैं। इसके बावजूद अन्दर ही अन्दर इन कुछेक सालों में गाँवों की कुछ तस्वीरें कहीं से बदल भी गयी हैं। आजकल पहले के मुकाबले ज़्यादा तादाद में लड़कियाँ स्कूल जाने लगी हैं। मुमकिन है, बीच में ही किसी समय स्कूल छोड़ने को लाचार हो जाती हैं, लेकिन स्कूल जाने की लहर नयी-नयी है। स्कूल न जाने की एक बहुत बड़ी वजह है-दरिद्रता! स्कूलों का मिड-डे मील यर बात साबित करता है। चूंकि वहाँ खाना मिलेगा इसलिए स्कूलों में पढ़ाकुओं की संख्या बढ़ गयी है। अगर आहार नहीं मिलता है, तो कहीं और येन-केन प्रकारेण आहार जुटाने में लग जाते हैं। अ-आ, क-ख के ज़रिए पेट की भूख तो शान्त नहीं होती। स्कूल छोड़ने के कई और कारण भी हैं मसलन, लड़कियों का घर-गृहस्थी का काम करना, विवाह हो जाना वगैरह। जिनके सामने ये सब झमेले नहीं होते, वे लड़कियाँ आराम से स्कूल की पढ़ाई पूरी करती हैं और पढ़ने के लिए कॉलेज तक पहुँच जाती हैं। मज़े से साइकिल चलाते हुए एक गाँव से दूसरे गाँव तक सड़कों को आलोकित करती हुई आती-जाती हैं। शहर की कितनी लड़कियाँ साइकिल की सवारी करती हैं? अब तक कलकत्ते में मैंने किसी एक भी लड़की या औरत को साइकिल चलाते नहीं देखा।
चूँकि शहर की तुलना में गाँवों की संख्या अधिक है. शहरी लड़कियों की तुलना में ग्रामीण लड़कियों की तादाद अधिक है इसलिए गाँवों में नारी-शिक्षा में तेजी से वृद्धि और विकास करना चाहिए। महज़ दस्तखत करके शिक्षित होने का नाम दे कर स्वांग रचने का काम अर्से से होता आया है। अब इसे बन्द कर देना चाहिए। शिक्षित का मतलब महज़ दस्तखत करने की योग्यता अर्जित करना नहीं हैं; इतिहास. भूगोल, विज्ञान पढ़ कर डिग्री अर्जित करना भी नहीं है। शिक्षित होने का मतलब है अपने अधिकारों के बारे में जानकार होना। औरत किसी के भी हाथों का खिलौना नहीं है, गुड़िया भी नहीं है, वस्तु भी नहीं है, मशीन भी नहीं है-इस बारे में पूरी तरह जागरूक होना ही सबसे बड़ी शिक्षा है।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं