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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


माँ नहीं है! अब मेरी माँ की भाषा ही, माँ की तरह मेरी देखभाल कर रही है। जिस भाषा में मेरी माँ मेरा लाड़-प्यार करती थी, जिस भाषा में मेरी माँ मेरे लिए रोती थी; जिस भाषा में, मेरी माँ, अपनी गोद में, मुझे दुबारा लौट आने के लिए गुहार लगाती थी। अपनी भाषा से मैं बेहद निविड़ भाव से अपने गले लगाती हूँ, मन ही मन में। अपनी माँ को आवाजें देती हूँ। भाषा के बदन से मुझे माँ की खुशबू आती है। माँ के पास धन-दौलत नहीं थी। जो थोड़ी-बहुत, मामूली-सी थी भी, वह अब सड़-गलकर नष्ट हो चुकी है। बस, अब भाषा ही बच रही है, प्रतिदिन जीवन्त! प्राणमय!

मैं अपनी माँ को उच्चारण करती हूँ, माँ को उच्चारण करती रहती हूँ। मैं उच्चारण करती हूँ तुम्हें, मेरी भाषा। मैं तुम्हें ही उच्चारण करती रहना चाहती हूँ। जब तक मेरी साँस में साँस है, मैं तुम्हें ही प्यार करती रहूँगी, जब तक मैं जिन्दा हूँ। मैं लौट आऊँगी। बार-बार, तुम्हारे ही पास! मैं तो चिरकाल से निराश्रित हूँ। भाषा, तुम मुझे आँखों-आँखों में रखना। इन्सानों की मार खाते-खाते, घृणा पाते-पाते, जब मैं बिलकुल ही झुक जाऊँ, भाषा, तुम मुझे साहस देना भाषा, तुम मुझे शक्ति देना जैसे मेरी माँ मुझे शक्ति देती थी।

अब मैं प्रतिवाद लिखती हूँ, रास्तों के पत्थर हटाती हूँ, ताकि राहें, राह जैसी बनें। हमारा प्राप्य तो खल-पुरुष लूट-पाटकर खा गये। आज हम औरतें गूंगी हो चुकी हैं, भाषाहीन! जितनी बार मैं कुछ बोलने को जुबान खोलती हूँ, उतनी बार वे लोग मेरा मुँह दबोचकर बन्द कर देते हैं। हमारे गले में ज़हर उँडेल देते हैं। जितनी बार मैं

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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