लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
कुछ बोलना चाहती हूँ, उतनी बार वे लोग हमारे मुँह सी देते हैं, जुबान पर काँटे चुभो देते हैं। हम औरतें कैसे और किसे बतायें कि हम लोग सकुशल नहीं हैं। हज़ारों-हजारों वर्षों से हमारी पीठ पर नील के निशान पड़े हुए हैं; आँखों में नींद नहीं है; हज़ारों वर्षों से हम भाषाहीन हैं। अब तो औरत की जुबान से भाषा उभरे। वह भाषा चिनगारी बन जाये, चारों तरफ़ आग बनकर बिखर जाये, औरतें तप-तपकर फ़ौलाद बनें। औरत शक्तिवान बनें।
भाषा तुम माँ हो।
भाषा तुम मैं हो।
भाषा तुम बहन हो।
आज औरत की जुबान पर भाषा है! आज औरत की जुबान पर प्रतिवाद है। आज उसकी आवाज़ में तीखी-प्रखर भाषा है। आज औरत की जुबान पर, औरत के लिए औरत का प्यार है।
मैं और मेरी भाषा आज खुलेआम घूम-फिर रहे हैं। सुनो, अब हमारे पाँवों में कोई बेड़ियाँ पहनाने मत आना, हमारे मुक्त-कण्ठ को कोई अवरुद्ध करने मत आना; हमारे प्यार की छाती पर कोई छुरा बिठाने मत आना।
क्षमता, तुम दूर रहो।
क्षमता, तुम पत्थर मत बरसाओ।
क्षमता, तुम राह मत रोको।
क्षमता, तुम प्यार करना सीखो।
क्षमता, अगर हो सके, तो इन्सान बनो।
क्षमता, तुम इन्सान बनो, मानवीय बनो।
मुझे अपने ढंग से रहने दो, निर्विवाद, भाषा की प्रीति-प्यार में! मुझे अपनी माँ के पास रहने दो। मेरी माँ के आँसू मेरे बदन की धूल-मिट्टी धो देंगे। मेरे लिए होगी मेरी माँ की गोद। मैं सुख या दुख में लौट जाऊँगी, उसी गोद में। मेरी माँ तो हमेशा ही मुझे बुलाती रही, अपनी गोद में समेटने को अकुलाती रही।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं