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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


एलिजाबेथ, पेन क्लब की प्रेसीडेंट और पेन की ही चंद और सदस्याएँ मुझे जहाज पर छोड़ने आईं। उन सबसे मेरी दोस्ती हो गई थी। जहाज में सुरक्षा का फिर वही सर्कस शुरू हो गया। फिनलैंड के सुरक्षा कर्मियों का दल मेरे साथ स्वीडन तक जाएगा। उन लोगों ने स्वीडन सूचना भेज दी थी कि मैं उड़कर नहीं आ रही हूँ, बहकर आ रही हूँ। जहाज में पुलिस की उछल-कूद शुरू हो गई। बाकायदा धूम-धाम! लंबा-चौड़ा कांड! जब तक मैं जहाज में सवार नहीं हो गई, किसी भी दूसरे को चढ़ने नहीं दिया गया। मेरे सूट के आस-पास किसी की छाया तक पड़ने की मनाही! जहाज के मैनेजिंग डायरेक्टर खुद आकर मुझसे भेंट कर गए और कह गए कि मैं उनकी मेहमान हूँ। इसका मतलब यह हुआ कि वाइकिंग लाइन जहाज की लक्जरी सूट के लिए कोई पैसा नहीं लगेगा।

"आपके साथ, आपकी कोई सहेली भी है?"

"जी-हाँ!"

"आपकी सहेली को भी हम एक सूट देना चाहते हैं। बगलवाला सूट!"

मैंने छूटते ही मना कर दिया, "नहीं-नहीं, वह मेरे साथ ही रहेगी। यहाँ का बिस्तर तो काफी बड़ा है।''

माइब्रिट ने फौरन मेरा हाथ दबाते हुए जहाज के मालिक या मैनेजर से कहा, "नहीं, कोई असुविधा नहीं होगी। ड्रॉइंगरूम में सोफा है न! मैं वहाँ सो जाऊँगी।"

मैंने माइब्रिट का हाथ पकड़कर करीब खींचते हुए कहा, "क्यों? सोफे पर क्यों सोओगी? बिस्तर पर सोना! इतने बड़े बिस्तर पर मैं अकेली क्यों सोने लगी?"

उस लड़की ने टेढ़ी-मेढ़ी मुद्रा में अपने को मेरे आलिंगन से मुक्त कर लिया। मैनेजर पथराया-सा सामने खड़ा रहा। पीछे पुलिस! बगल के कमरे में भी कई एक

पुलिस वाले मौजूद थे। दरवाजे के सामने भी पुलिस गश्त लगा रही थी।

"डिनर आप कमरे में ही कीजिएगा या रेस्तराँ में?" मैनेजर ने विनीत मुद्रा में पूछा।

मेरे पीछे-पीछे पुलिस फौज रेस्तराँ तक जाए और सब लोग अचरज से मुँह वाए मेरी सूरत निहारते रहें, यह ख़याल आते ही मुझे उबकाई आने लगी।

"कमरे में ही!" मैंने जवाव दिया।

मैनेजर के विदा होते ही माइब्रिट बोल उठी, "यह क्या किया तुमने, तसलीमा?"

"क्यों? क्या किया मैंने?"

"उन सब लोगों ने सोच लिया कि हम लेस्वियन हैं।"

"क्यों?"

"तुमने एक ही बिस्तर पर सोने की जो बात कही..."

"एक ही बिस्तर पर सोने से कोई लेस्बियन हो जाती है, यह तुमसे किसने कहा?"

"हाँऽ, लेस्बियन हो, तभी एक विस्तर पर सोते हैं। देखा नहीं, पुलिस कैसे आपस में एक-दूसरे की तरफ आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगी। उस मैनेजर के बच्चे ने तो पक्की राय बना ली कि हम दोनों लेस्बियन हैं।"

"मेरे देश में तो लड़कियाँ एक ही बिस्तर पर सोती हैं। सब सहेलियाँ-सहेलियाँ होती हैं। बिल्कुल सगे रिश्तेदारों की तरह! इसीलिए मैंने कह दिया।"

“और तुमने मेरा हाथ पकड़कर खींचा, इससे तो सौ प्रतिशत उनका विश्वास पक्का हो गया।"

“यह तुम क्या कह रही हो? हाथ या कन्धा पकड़ने से, क्या लेस्वियन समझ लेते हैं?"

“यहाँ ऐसा ही मानते हैं। यहाँ लड़कियाँ अगर लेस्बियन नहीं हैं तो उस ढंग से नहीं चलती-फिरतीं।"

"हैरत है!"

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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