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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


स्टॉक हाउस में मेरा व्याख्यान था और अंत में प्रश्नोत्तर सत्र! व्याख्यान सुनने के लिए ढेरों लोग जमा थे, लेकिन किसी के भी हाथ में मेरी किताब नहीं थी। फिनलैंड में बहुत जल्दी ही किताव छपने वाली थी। यहाँ लिके नामक कोई प्रकाशन संस्थान मेरी किताब छापने जा रहा था। प्रकाशक मुझे अपने प्रकाशन-संस्थान में भी ले गया। 'लज्जा' किताब को नाम दिया गया है-हप्पा! स्वीडिश-नॉर्वेजियन भाषा में 'लज्जा' को 'स्कॉम' नाम दिया गया है, जो अंग्रेजी के 'शेम' शब्द से मिलता-जुलता है। पड़ोसी देशों की भाषाएँ, जर्मनी से उद्भूत हुई हैं, इसलिए उनमें एंग्लो-सेक्शन का कुछ-कुछ मेल तो है ही, क्योंकि सेक्शन से जर्मनी का रिश्ता जुड़ा हुआ है। उन लोगों ने जिसे 'स्कॉम' नाम दिया है, फिनवासी के लिए वह 'हप्पा' है, क्योंकि उनकी भाषा उत्तरांचल की भाषा नहीं है। उनकी भाषा में हंगरी की गंध है।

फिनलैंड में मुझे और भी कई दायित्व निभाने थे। उनमें संसद-भ्रमण भी शामिल था। मैं वहाँ भी पहुँची । मंत्रिगण बारी-बारी से मुझसे मिले। सबने मुझसे हाथ मिलाया। सबने मेरे साथ तस्वीर खिंचवाई। कौन मंत्री मुझे लेकर सबसे पहले सैर-तफरीह को चलें या खाना खिलाने ले जाएँ, इस बात को भी लेकर कुछ देर रस्साकशी होती रही।

हेलसिंकी विश्वविद्यालय में मुझे भाषण देना था। इसी तरह की तैयारी भी की गई थी। मुझे क्या-क्या करना है, मुझे खास याद नहीं रहता। सारा कुछ कागज पर विस्तार से लिखा है, हमेशा ही लिखा होता है, चाहे मैं जहाँ भी जाऊँ। वह कागज पढ़ने का मेरा मन नहीं करता। नया देश आविष्कार करने के लिए मेरा मन अंदर से छटपटाता रहता है। मुझे भाषण देने की बिल्कुल आदत नहीं है। मैंने बेहद संक्षेप में अपनी बात कहकर खत्म कर दी और कहा कि अब जिसे जो सवाल करना हो, करे। इतने पर भी कोई तृप्त नहीं होता। दो-एक सवालों का जवाब देकर मैं बाहर निकल आई। मुझे लगता है, लोग यह समझ बैठे हैं कि मैं अपने भाषण से श्रोताओं को बिल्कुल विस्मय-विमुग्ध कर दूँगी।

बहरहाल, इतना बढ़ावा देकर सिर पर बिठाओगे तो सिर पर बैठकर जो-जो करना चाहिए, उतना भले कुछ न करूँ, फिर भी कुछ तो करना ही था। मैं कर रही थी। ग्रैंड मरीना होटल में बैठे-बैठे दूर से तैरकर आते हुए विशाल जहाज को देखकर, एकदम से मेरा मन हुआ कि मैं उस जहाज में सवार हो जाऊँ। सिर्फ सवार ही नहीं होऊँ, उस जहाज से ही स्वीडन पहँच जाऊँ। जैसे ही मैंने अपनी इच्छा जबान से जाहिर की, मेरे लिए फौरन जहाज का फर्स्ट क्लास सूट बुक कर दिया गया। अब हवाई जहाज के फर्स्ट क्लास की टिकट है, उसका क्या होगा? उसका कुछ नहीं होगा। वह खारिज! फाड़कर फेंक दो।

अचानक मैंने माइब्रिट विग के प्रति उत्साह जाहिर किया। इस वक्त माइब्रिट को फिनलैंड में होना चाहिए। अगर वह स्वीडन जाना चाहे तो मेरे साथ जहाज से चल सकती है। यह ठहरा कंप्यूटर का देश! पुलिस महज बटन दबाकर पता लगा सकती है कि कौन, कहाँ है। माइब्रिट किसी और शहर में थी। इतने-से वक्त में ही पुलिस उस शहर में पहुंच गई और उसे खबर कर दी। किसी जादू की तरह माइब्रिट ग्रंड मरीना होटल में हाजिर हो गई।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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