लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


लेखक संगठन का कार्यक्रम!

सभी लेखक मेरे लेखन, मेरे तजुर्गों के बारे में सुनना चाहते थे। जो-जो सवाल किए गए, मैं बेहद शांत लहजे में उनका जवाब देती रही। मुझे यह बिल्कुल नहीं लगा कि उनके सवाल मुश्किल हैं। यहाँ के लोग तथ्य या हकीकत नहीं सुनना चाहते, नितांत व्यक्तिगत और गहरे तजुर्वे सुनने को आतुर हैं।

कभी-कभी मुझे लगता है कि वर्षों से तथ्य और दर्शन की भारी वजनी बातें सुनते-सुनते ये लोग थक चुके हैं। युगों से तथाकथित सभ्यता और अर्थनीति की प्रसार-प्रगति बढ़ाने के लिए, जिस चीज की जरूरत थी, उसमें दिल गायब था। अब ये लोग उसमें दिल का स्पर्श भी पाना चाहते हैं।
किसी-किसी ने सवाल किया, “तुम इतनी ताकतवर हो, फिर भी तुम्हारी आवाज़ किस कदर नरम! यह क्योंकर संभव हुआ?"

नहीं, अचानक कुछ भी नहीं हुआ। असल में मैं ऐसी ही हूँ। बचपन से ही ऐसी हूँ। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि 'रेडिकल' होने के लिए ऊँची आवाज़ में अपनी बात कहने या तैश खाने की कोई जरूरत है। अपने अंदर की ताकत को वाहर प्रदर्शित करने की जरूरत नहीं पड़ती। अपनी भीतरी ताकत से मैं चारों तरफ आसानी से जीत का झंडा लहरा सकती हूँ।

फिनलैंड में अंग्रेजी भाषा सभी पढ़े-लिखे लोग जानते-समझते हैं। मैंने फिनिश भापा सुनी है और मुझे यह जाने कैसा तो लगा है। यह भापा नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड, डेनमार्क, रूसी किसी भी भापा से मेल नहीं खाती। अद्भुत बात यह है कि यह भापा, हंगरी की भाषा से मिलती-जुलती है। कहाँ हंगरी, कहाँ फिनलैंड! भाषा हमेशा से ही दुनिया भर में भ्रमण करती रही है। मुमकिन है, किसी जमाने में पूर्वी यूरोप से केल्टिक जाति के लोग, उत्तर में आकर रस-बस गए हों।

फिनलैंड छह वर्षों तक स्वीडन का हिस्सा बना रहा। इसके बाद, रूस ने जंग में स्वीडन को हरा दिया। फलस्वरूप साल भर के लिए फिनलैंड, रूस के हाथों में जा पडा। रूस क्रांति के बाद, फिनलैंड आजाद हो गया और एक सार्वभौम राष्ट्र के रूप में, अपने पैरों पर खड़ा हो गया। उसके बाद, विश्वयुद्ध के दौरान, फिर छीनाझपटी मच गई। युद्ध के बाद फिनलैंड, फिर फिनलैंड बन गया। बाहर से देखकर यही लगा कि देश बेतरह लड़खड़ा उठा है। लेकिन सच तो यह है कि अभी भी क्या मज़बूती से खड़ा है? अभी कुछ दिनों पहले तक, यह देश खास धनी नहीं था।

लेकिन, अब सिर्फ धनी ही नहीं, नीति-आदर्श भी खासा अच्छा है। दुर्नीति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का सबसे कम दुर्नीति भरा देश, फिनलैंड है और दुनिया का सबके ज्यादा दर्नीति भरा देश बांग्लादेश है। खैर नीति के मामले में बांग्लादेश से भले ही मुकाबला कर ले, लेकिन संस्कृति में हार जाएगा। फिनवासियों का गर्व, गौरव या जो कुछ भी है, वह एक 'कालेभाला' को लेकर है। यह पुरानी पोथियों का संकलन है, लेकिन वह कालेभाला क्या मयमनसिंह के किसी एक भी गीतकार के सामने टिक सकेगा?

'कालेभाला' को लेकर भयंकर व्यापार हो रहा है। उनमें दर्ज कविताओं के चरित्रों के गले की माला, सिर की टोपी के नक्शे की नकल करके बेची जाती हैं। मैं खुद कुछ खरीदने नहीं गई। वहाँ जो उपहार या जो कुछ भी सौगात में मिला, सारा कुछ कालेभाला की चीजें हैं। मुझे हेलसिंकी की सैर करनी थी! पुलिस तो मेरे साथ थी ही, यहाँ की सरकार ने एक नौजवान भी साथ कर दिया था। नाम था-माकुस! मार्कुस ने हाल ही में सिगरेट छोड़ दी थी। मुँह में निकोटिन की च्विंगम! इसी तरह वह च्विंगम चूस-चूसकर अपने खून में निकोटिन उतार रहा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book