जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
यहाँ पानी उबालकर पीने की जरूरत नहीं पड़ती। मच्छर, मक्खी, चूहा या छोटे तिलचट्टे जैसे कीड़े-मकोड़े देखने के लिए जादूघर में जाना पड़ता है। वस, एक स्विच दवाते ही कपड़े-लत्ते धो-सूखकर वाहर निकल आते हैं। इसके बावजूद घर के लिए मेरा मन दुखता है। सड़कों के बैंक में बटन दबाकर रुपयों की माँग करते ही फरी-फर्र नोट निकल आते हैं। जन्म, चरित्र का नाड़ी-नक्षत्र भी पलक झपकते समझ में आ जाता है। दुकानदार भी बिठाए नहीं रखते। मशीन ही सामान पर लगे दाम पढ़कर बता देती है। अंदर दाखिल होने के लिए दुकान, अस्पताल, दफ्तर, अदालत, बस-ट्रेन के दरवाज़े अपने-आप खुल जाते हैं। संतरे मथकर रस निकालने की जरूरत नहीं पड़ती। रस पैकेटों में ही मिल जाता है। पैकेट में ही पकी-पकाई मांस-मछली मिल जाती है। पैकेट में ही उबली हुई सब्जियाँ मौजूद हैं। इसके बावजूद घर के लिए मन छटपटाता रहता है। रात-विरात सड़कों पर अकेले निकलने पर कोई गले की चेन खींचकर नहीं ले जाता, छुरा दिखाकर रुपए नहीं माँगता, औरत देखकर झुंड भर छोकरे पीछे नहीं पड़ते! न सीटी, न टिटकारी! जब मर्जी हो, घास पर लेटी रह सकती हूँ, हवा के प्रतिकूल पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा में दौड़ सकती हूँ। प्रेमी को कमर से लपेटे घूम-फिर सकती हूँ, गहरे-गहरे चुंबन ले सकती हूँ। इसके वावजूद देश के लिए मन आकुल-व्याकुल होता है।
इधर मालिन तोबो नामक एक लड़की को नरस्टेड ने मेरी सेक्रेटरी बनाकर भेजा है क्योंकि मेरे लिए इतने सब आमंत्रण-निमंत्रण सँभालना मुश्किल हो गया है। इन्हीं दिनों कई अच्छे-अच्छे आमंत्रण-पत्र मैंने कहीं यूँ ही फेंक रखे थे। आयोजकों ने टिकट तक भेजी थीं, लेकिन वे टिकटें जाने कहाँ किस कागज-पत्तर तले दबकर गुम हो गई थीं, कोई खोज नहीं मिली। सूयान्ते वेइलर ने मालिन को भेज दिया। मालिन मेरी सेक्रेटरी के तौर पर काम करने आई। उसकी तनखाह नरस्टेड देगा। बाईस-तेईस साल उम्र! ऐसे बहुतेरे लोग हैं, जो सचमुच की नौकरी शुरू करने से पहले कम पैसों वाली, इस किस्म की छोटी-मोटी नौकरी करते हैं। इस किस्म की मामूली नौकरी ही सही, थोड़ा-बहुत तजुर्वा तो होता है। इस किस्म के तजुर्वां का हवाला देने पर, अच्छी नौकरी मिल जाती है। मैंने मानिन का हिदायत दी कि मेरे तमाम कागज-पत्तरों को विषय मुताबिक, अलग-अलग फाइलों में जड़ दे। कामकाज करने के लिए मैंने उसे एक अलग कमरा भी दे दिया। में दोनों कमरों में ही मेंज-कुर्सी, दो टायर विस्तर वगैरह मौजूद हैं। अब एक कमर में में थी और दूसरे में मालिन! दोनों कमरों में फोन मौजूद हैं। मैन गौर किया, मालिन कागज-पत्तरों को फाइल करने के बजाय फोन पर बातें करने में ज्यादा दिलचस्पी लेती है। यहाँ तक कि जो लोग मुद्दो आमंत्रित करते हैं, उस वार में खाज-खबर लेन-दने की जिम्मंदारी, उन लोगों की है, लेकिन अव उन लोगों को अपनी जिम्मेदारी निभाने का मौका न देकर मालिन ने ये जिम्मेदारियाँ अपने ऊपर ले ली हैं। अब वह खुद फोन करके खोज-खबर लेती है। देख-रेख करती है। जहाज की टिकट आई या नहीं, उड़ान का समय क्या है, पहुँचने का समय क्या है, कार्यक्रम का विपय क्या है, कितनी देर का व्याख्यान है, होटल का नाम-धाम! अब मैं क्या कहूँ, गरज जैसे मेरी ही है। इस लड़की को क्या फोन-विल का अंदाज़ा है?
मेरे लिए आमंत्रणों की जैसे बाढ़ आ गई है। मैं उस बाढ़ में वही जा रही हूँ। स्वीडन में महीने में कुल हफ्ते-भर ही रहना होता है। ज्यादातर उड़ान में ही रहती हूँ। फिनलैंड से आमंत्रण! यह आमंत्रण फिनलैंड लेखक वर्ग उर्फ पेन क्लव से आया है। कुछेक दिनों के लिए मुझे वहाँ जाना ही होगा। मैं हवाई जहाज से हेलसिंकी पहुंच गई। अव मैं अकेली ही उड़ानें भरती हूँ। सुरक्षा-फौज से अनुरोध करके कम से कम जहाज में सुरक्षा के उपद्रव से नजात माँग ली है। मेरी रक्षा करके वे लोग काफी महानुभावता का परिचय दे चुके हैं।
हेलसिंकी पहुँचकर मैंने देखा कि नंवर वन सुरक्षा का वदस्तूर इंतज़ाम मौजूद है। जिस देश में मैं जा रही हूँ, स्वीडन की सुरक्षा-पुलिस खुद ही उस देश की सुरक्षा-फौज को मेरे वहाँ पहुँचने के बारे में सूचित कर देती है और उन लोगों को यह भी हिदायत दे देती थी कि मेरे लिए किस किस्म की सुरक्षा चाहिए। यानी एक, दो, तीन या चार नंबर की सुरक्षा ! समुद्री बंदरगाह पर विशाल ग्रँड मरीना होटल! किसी जमाने में यह गोदामघर था। स्थापत्य और कला की छुअन ने उसे होटल में बदल दिया है। प्रायः पाँच सौ कमरे! इस होटल में भी मेरे लिए बदस्तूर सूट वुक था। सोने का कमरा, लिखने-पढ़ने का कमरा, बैठने का कमरा वगैरह! हद से ज्यादा ऐशो-आराम, ऐश-विलास!
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