जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
|
419 पाठक हैं |
औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
शहर के कई-कई अंचलों में उतरकर मैं पैदल घूमती फिरी। इस शहर में ट्रामें भी चलती हैं। पुरानी इमारतों-कोठियों की स्थापत्य कला असाधारण है। आँखों का विस्मय खत्म ही नहीं होता। पुलिस बड़े उत्साह से मुझे कई मील दूर, उत्तर-पश्चिम अंचल कं कार्लोवी वेरी नामक छोटे-से शहर में ले गई। 'कार्लोवी बेरी' पार होते ही, जर्मनी! कार्लोवी वेरी स्पा के लिए मशहूर है। हर तरफ पानी के नल लगे हुए! किसी नल का पानी पीने से पेट का रोग ठीक हो जाता है। किसी नल का पानी पीने से दिमागी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं यानी पानी के जरिए इलाज! लोग-बाग अपने-अपने वर्तनों में पानी भरते हुए! कार्लोवी वेरी नामक इस छोटे-से शहर में देश-विदेशों से अनगिनत सैलानी आते हैं। उस शहर का जर्मन नाम है-कार्ल्सवड! सन् तेरह सौ अट्ठावन में, वाहमिया अंचल के राजा पंचम कार्ल यहाँ शिकार करने आए थे और उन्हें एक झरना नजर आया। उन्नीसवीं शताब्दी में राजा-रजवाड़े यहाँ इलाज के लिए पहुँचने लगे। यहाँ गोएटे, शिलर, वेटोफेन, शपा, कार्ल मार्क्स-ये सभी लोग यहाँ आ चुके हैं। कोई भी रोग-बीमारी हो, समूचे यूरोप से लोग अपना इलाज कराने के लिए इसी शहर में आते हैं। यहाँ साठ झरने हैं, जिनमें से बारह झरनों के जल से इलाज होता है। मैं अविश्वास भरी आँखों से जल का यह कारोवार देखती रही। सैकड़ों लोग आते-जाते हुए! हैरत है! पश्चिम के शिक्षित, उच्च शिक्षित लोगों ने आखिर कैसे भरोसा कर लिया है कि यहाँ का पानी पीने से या यहाँ के पानी में नहाने से रोग-बीमारी दर हो जाती है। बांग्लादेश के गाँव-गंज-देहातों में इस किस्म के कुसंस्कार मौजूद हैं, यहाँ भी तो इसी किस्म का अंधविश्वास नजर आया। सिर्फ इंसानों का रंग अलग है, भापा अलग है, आर्थिक स्थिति अलग है। वैसे आँखें मूंदते ही सारा कुछ एकाकार हो जाता है। अज्ञानता और मूर्खता देश-काल-पात्र-भेद में बिल्कुल एक है। विल्कुल एकाकार ! कार्लोबी वेरी से प्राग जाते हुए, रास्ते में दरिद्रता साफ नजर आई। घर-मकानों में चना-सरखी. रेत झर झराकर झरती हई! रंगहीन! छाल-चमडीहीन! श्रीहीन! समाजतंत्र ने ही क्या इन्हें अंदर से इतना बदरंग कर रखा है? मैं आतंकित हो उठी। ऑटियम होटल में, रात के वक्त, वेहद कम-से कपड़े पहने सजी-धजी जवान औरतों का झंड अंदर लाउंज में और बाहर बैठा नजर आया। मेरा खयाल था प्राग की औरतें सूरत-शक्ल से खासी खूबसूरत होती हैं।
|
- जंजीर
- दूरदीपवासिनी
- खुली चिट्टी
- दुनिया के सफ़र पर
- भूमध्य सागर के तट पर
- दाह...
- देह-रक्षा
- एकाकी जीवन
- निर्वासित नारी की कविता
- मैं सकुशल नहीं हूँ