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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


कांग्रेस जारी था! पी ई एन नामक पेन क्लब, सबकी रिपोर्ट पेश करता रहा। अंतर्राष्ट्रीय पेन! दुनिया भर का लेखक संगठन ! ए वर्ल्ड ऑफ पी ई एन! पी फॉर पोएट यानी कवि के लिए, ई फॉर एसेइस्ट यानी निबंधकार के लिए, एन फॉर नोवेलिस्ट यानी उपन्यासकार के लिए! मेरिडिथ की पूरी-की-पूरी रिपोर्ट मुझे लेकर थी। मुझे मौत के मुँह से निकालने के लिए, वह किन-किन उपायों में जुटी हुई थी और उसमें सफल भी हुई। मेरिडिथ के हाथ में ढेरों कागज-पत्तर! उस कांग्रेस में कुछ देर मौजूद रहकर मैं बाहर निकल आई। मैं यहाँ मेहमान हूँ। कहीं किसी कार्यक्रम की वातचीत, विचार-विमर्श में मेरी उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। भापण और साक्षात्कार के निर्धारित समय में उपस्थित रहने के वाद, वाकी वक्त अड्डेवाजी, गप-शप! चारों तरफ नए-नए चेहरे! सबके चेहरों पर वार-वार कौतूहल झलकता हुआ! इस अनुभूति का अनुवाद मुझसे नहीं हो सकेगा। सुबह नाश्ते की मेज पर आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, घाना, जर्मनी, इटली, संयुक्त राष्ट्र के लेखकों से परिचय और जान-पहचान हुई। दोपहर और रात के खाने की मेज पर भी वही हुआ। फिलीपिन की लेखिका, निनचका रसका, मेक्सिको की लूसिना कैथमैन, नेपाल की ग्रेटा राना के साथ गप-शप हुई। वह सन् उन्नीस सौ चौरानवे के अक्टूवर-नवंवर का महीना था। उन दिनों ई-मेल, इंटरनेट काफी कम ही लोग इस्तेमाल करते थे। मैं भी वस सीख ही रही थी। ग्रेटा राना अंग्रेज है, लेकिन नेपाल के राजपरिवार के किसी व्यक्ति से विवाह करके अव उसने नेपाल पेन की प्रतिष्ठा की है। उसने अपना एक उपन्यास इंटरनेट पर दे दिया है, जिसका मन हा, पढ़ ले। ना, अपनी किताब प्रकाशित करने का उसका कोई इरादा नहीं। ग्रेटा दक्षिणी एशिया की तरफ से नेपाल लेखक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही है। उसके अलावा, एक और व्यक्ति भी प्रतिनिधित्व कर रहा है। उन्हें देखकर मैं तो आसमान से गिरी। वे थे-सैयद आली अहसान! दाढ़ी वाले नाटे कद के प्राणी! वांग्लादेश पेन की तरफ से वे ढाका से प्राग आए थे। बांग्लादेश में भी पेन नामक कोई संस्था है, यह बात मैं उस देश में इतने लंबे अर्से से साहित्य-जगत में रहकर भी, किसी दिन नहीं जान पाई। सैयद आली अहसान नामी-गिरामी कट्टरवादी साहित्यकार हैं। मेरी समझ में नहीं आया कि मैं हँसूँ या रोऊँ।

मैंने मेरिडिथ से ही कहा, “तुम लोग इस पेन संस्था में ऐसे आदमी को लायी हो, जो वाक्-स्वाधीनता में विश्वास नहीं करता। इन सैयद अहसान आली साहब न मरे खिलाफ काफा वार आवाज़ उठाया है। इन्हान कहा है कि इस्लाम के वारे में कोई भी गलत मंतव्य देने का अधिकार मुझे नहीं है। इन जनाब ने यह भी कहा था कि मेरे खिलाफ मामला टांकना एकदम युक्तिसंगत है और जिन लोगों ने मुझे फाँसी चढ़ाने का दावा किया है, वे लोग कोई अन्याय नहीं कर रहे हैं।"

मेरिडिथ ने यह खबर ऊंचे मुहाल तक पहुँचा दी। वह खुद भी बेहद उनजित हो उठी।

मैंने वहाँ साफ-सीधे लहजे में अपील की, “बाँग्लादेश में और भी बहुत सारे लेखक हैं, जो कट्टरवाद के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। बांग्लादेश पेन संगठन का दायित्व उन लोगों से लेने को कहें-''

लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय संगठन ऐसा है कि वह किसी और देश में जाकर खबरदारी नहीं कर सकता कि कौन सदस्य होगा, कौन नहीं! इस सम्मेलन में सभी लोग अपनी गाँठ के पैसे खर्च करके आते हैं। सिर्फ एशिया, अफ्रीका के चंद गरीब देशों के लेखकों की टिकट के लिए रुपए भेजे जाते हैं, क्योंकि सम्मेलन में चंद काले, वादामी लोग भी मौजूद हों, तो मंजर भला लगता है और छाती फुलाकर अंतर्राष्ट्रीय शब्द इस्तेमाल करना बिल्कुल उपयुक्त लगता है। यहाँ मैं किसी भी देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हूँ, क्योंकि मेरा कोई देश नहीं है। मैं बांग्लादेश के पेन क्लब की सदस्य भी नहीं हूँ। जब तक मैं बाँग्लादेश में थी तो मुझे इंगलिश पेन क्लव का सम्मानित सदस्य कार्ड भेजा गया था। मुझे पेन क्लव की कनाडा शाखा का सम्मानित सदस्य बनाया गया। स्विस जर्मन पेन क्लब ने भी मुझे अपना सदस्य बना लिया, लेकिन मैं उनमें से किसी भी देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हूँ। इस सम्मेलन में मुझे एक लेखिका के तौर पर आमंत्रित किया गया है। मुझे किसी भी सीमा में शामिल नहीं किया गया। देश-समाज-गोत्र वगैरह के परिचय से मैं ऊपर उठ चुकी हूँ।

बाहर घूमने जाने का प्रस्ताव देने पर सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र का वाल्टर मोसली उछल पड़ा। वाल्टर मोसलीन का पहला उपन्यास, 'डेविल इन ए ब्लू ड्रेस' सन् नब्बे में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास की कथा पर फिल्म भी बन चुकी है, लेकिन इसके बाद भी खास नाम-यश नहीं मिला। उसका नाम तो तब मशहूर हुआ, जब बिल क्लिंटन ने कहा कि उनके प्रिय रहस्य-उपन्यास लेखकों में वाल्टर मोसली भी शामिल हैं।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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