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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


फ्रैंकफर्ट पुस्तक-मेला की तरफ से मुझे पुस्तक मेले के उद्घाटन के लिए या प्रधान-अतिथि या किसी और तौर पर आमंत्रित किया गया था। मुझे खास कोई जानकारी दिए विना ही गैवी ग्लेइसमैन वहाँ पहुँच गया। वहाँ मेरी गंध पाकर लोगों की खचाखच भीड़ उमड़ पड़ी थी। वहाँ 'ऑन माइ विहाफ' यानी मेरी तरफ से गैबी उपस्थित था। उसने कहा-तसलीमा काफी बीमार है, इसलिए वह नहीं आ पाई। वहाँ मेरे रक्षक के रूप में उसका नाम प्रचारित हुआ। उसे काफी सम्मानित भी किया गया।

इन सबकी जानकारी मुझे नहीं मिलती, लेकिन स्वीडन के ‘सुयेन्सका डॅगब्लाउट' नामक एक अखवार में यह खबर छप गई। इस अखबार का एक पत्रकार फ्रैंकफर्ट के कार्यक्रम में मौजूद था और मेरा इंतजार कर रहा था, लेकिन मेरे बजाय गैबी को वहाँ मौजूद देखकर और सीना तानकर उसके भाषण देने पर, वह बुरी तरह झुंझला गया और उसने गैवी की आलोचना करते हुए उस अखबार में एक कॉलम लिख मारा।

इस बारे में पहली बार किसी का गुस्सा जाहिर हुआ। हाँ, यह गुस्सा ही था, क्योंकि इस देश में एक अंतर्राष्ट्रीय तारिका का आगमन हुआ था और उसने सभी पत्रकारों से भी छिपा रखा था। गैबी और उसकी पसंद के पत्रकारों के अलावा और कोई उससे नहीं मिल सकता। क्यों? तसलीमा क्या उसकी निजी जायदाद है? गैबी तसलीमा को यथासंभव अपनी मुट्ठी में रखने की कोशिश कर रहा है। यह सब जब मुझे पता चला, तो मैंने गैबी को धर दबोचा।

"यह सब मैं क्या सुन रही हूँ? तुमने तो जर्मनी के आमंत्रण की जानकारी मझे नहीं दी थी।"

“दी थी, तुम्हें शायद याद नहीं। वैसे भी तुम्हारा जाना नहीं होता। उस वक्त तुम किसी और देश के सफर पर थीं।"

"मैं बीमार हूँ, तुमने यह क्यों कहा?"

"इसलिए कहा क्योंकि तुम्हारे न जाने की कोई तो वजह होनी चाहिए। कोई और वजह बताता, तो वह सही नहीं लगती। अगर उन लोगों को यह बताया जाता
कि तुम किसी और देश गई हो, जर्मनी के आमंत्रण को तुमने अहमियत नहीं दी, तो वे लोग क्या सोचते?"

"इसलिए तुमने झूठ बोल दिया?"

नहीं, इस घटना के बाद, एक लंबे अर्से तक गैवी से मेरी भेंट नहीं हुई। मैंने अपनी चावी-काठी उसके हाथ से वापस ले ली। पूरी-की-पूरी न सही, काफी हद तक अपने हाथों में ले ली। सुयेन्सका गब्लाउट की उस पत्रकार लड़की को भी मुझसे मिलने का मौका मिला।

उसने पूछा, "गैवी क्या तुम्हें अपने कंट्रोल में रखने की कोशिश करता था?"

"हाँ, बेशक, उसकी यही कोशिश थी।"

स्वीडन के साहित्य-जगत में मानो वम विस्फोट हुआ। उस वम से अपने बचाव के लिए गैवी को कुछ-न-कुछ तो करना ही था। गैवी ने वही किया। वह हर तरफ यह प्रचार करने लगा, खासकर यहूदी-बहुल जगहों में कि तसलीमा यहूदी-विरोधी है। गैवी यह बात वखूबी जानता था कि मैं किसी भी धर्म में विश्वास नहीं करती। मेरे लिए इंसान, सिर्फ इंसान है। मुस्लिम, ईसाई, हिंदू, यहूदी-ये सब मेरे लिए कोई परिचय नहीं है, लेकिन इस बम के खिलाफ जवाबी बम के तौर पर अगर उनके पश्चिम में ऐंटी-सेमेटिक यानी यहूदी-विरोधी होने का प्रचार किया जाए, तो जो तीखी निंदा होगी, उसने वही निंदा मेरी तरफ उछाल दी। यानी मैं नाजियों जैसी हूँ, हिटलर जैसी हूँ। बेर्नाआरिलेवी, जैक दारीदा, हेलेन सेस्क्रूस, एन्तोयानेत फुक, मेरीडिथ टैक्स-ये सभी लोग यहूदी हैं। सभी लोग यहूदी जरूर हैं, लेकिन उनमें से कोई धार्मिक नहीं है। यहूदी परिवार में जन्म हुआ है, लेकिन सब नास्तिक हैं, ऐसे लोगों की संख्या हैं। इनमें से बहुतेरे मेरे मित्र हैं।

गैवी द्वारा फैलाई गई बदनामी किसी काम नहीं आई। बाद में गैवी को पेन क्लब के सभापति के पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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