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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


नरस्टेड वहुत बड़े प्रकाशक हैं! लेकिन स्वीडन के सबसे बड़े प्रकाशन का नाम नरस्टेड नहीं, बनियर है। वनियेर की एक शानदार पार्टी में मुझे भी आमंत्रित किया गया था। गैवी ने मुझे बार-बार आगाह कर दिया था कि मैं उन लोगों के किसी प्रस्ताव पर हरगिज राजी न होऊँ। बनियर मेरी किताब प्रकाशित करना चाहता था, लेकिन मैं राजी नहीं हुई और अपनी किताब मैंने नरस्टेड को सौंप दी। नरस्टेड का प्रधान है-सूयान्ते वेलर! उसके साथ गैबी का अच्छा संपर्क है। गेबी एक दिन मुझे उसके घर खाना खिलान भी ले गया था। बनियेर की पार्टी में स्वीडन का समूचा साहित्यकार जगत जमा हुआ था। तालाब के किनारे, महलनुमा इमरत में पार्टी दी गई थी। सुनहरे बाल और नीलाभ आँखों वाले मर्द-औरतों की भीड़। अधिकांश औरतों की ड्रेस, काले रंग की! यहाँ के उत्सव-कार्यक्रम में काले रंग की पोशाक का ही नियम है। हम लोग रंगीन कपड़ों के अभ्यस्त हैं, गहरे-गहरे रंग इस्तेमाल करते हैं। इन लोगों की पसंद सफेद और काला रंग या फिर कोई हल्का रंग! हमारे मुल्क के साहित्य-जगत में धुले हुए चुस्त-दुरुस्त कपड़ों का चलन नहीं है। इस देश में यही चलन है। यह देश भी तो आखिर विदेश है। यहाँ सभी सजे-धजे रहते हैं। चाहे वे कारोवारी हों या लेखक। सभी आमंत्रण-निमंत्रण में शामिल होते हैं। यहाँ भी दो-एक बोहेमियन भी नज़र नहीं आते, ऐसी बात नहीं है। यहाँ एकाध बोहेमियन नजर आ जाते हैं। जैसे माइब्रिट! माइब्रिट के पहनावे-ओढ़ावे में कोई चमक-दमक नहीं है। सभी सस्ते पहनावे। सेकण्ड की दुकानों से खरीदे हुए! माइब्रिट बिल्कुल ही मामूली लड़की है। उसकी किताब बनियेर प्रकाशन से छपी है। किताब तीन खंड में है। पहले खंड में बाप-बेटी के बीच यौन-संपर्क की दास्तान है। उस किताब की बिक्री भी काफी अच्छी थी। इधर चंद वर्षों से उसकी कोई किताब नहीं निकली. लेकिन वह एक के बाद एक उपन्यास लिखती जा रही है। माइब्रिट विग मझसे ग्यारह वर्ष बड़ी है। सन् साठ की दशक की यानी हिप्पी युग की तरुणी है वह! चरम उच्छृखलता में उसने जिंदगी गुजारी है। उस उम्र के लोगों के तजुर्षों में सन् साठ के दशक के हिप्पी-जीवन की अविश्वसनीय कहानियाँ भी शामिल हैं। मैंने गौर किया है, माइब्रिट की हमउम्र अधिकांश लड़कियाँ अकेली ही रहती थीं। शादी-ब्याह नहीं करतीं। हद-से-हद अब किसी पुरुष-मित्र के साथ रहती-सहती हैं। कहना चाहिए, बच्चे-कच्चों का उत्पात नहीं है। माइब्रिट ने अपने बारे में मुझे कुछ-कुछ बातें बताई हैं। वह सड़कों पर अँगूठा दिखाकर, आती-जाती गाड़ियाँ रोकती थी और उनमें सवार हो जाती थी। इस तरह वह समूचे यूरोप की सैर कर चुकी है। इस गाड़ी से उस गाड़ी के जरिए, एक शहर से दूसरे शहर तक उसने अपरिचित लोगों को परिचित बना 

लिया। उन दिनों 'हिचहाइकिंग' का रिवाज था। जेव में फूटी कौड़ी नहीं होती थी, हिचहाइकर इसी तरीके से देश-देश घूम आते थे। दिन-भर दारू-गाँजा-ड्रग्स ! रात-भर जिस-तिस के साथ सेक्स! हिप्पी युग के अधिकांश नौजवान लड़के-लड़कियों के लिए जिन लोगों ने सामाजिक नियम-कानून तोड़-फोड़कर, चकनाचूर कर दिया था, उस युग की अतिशयता के बाद पुरान नियम-कानून मानकर चलना या प्रचलित घर-गृहस्थी के ढाँचे में लौटना संभव नहीं हो पाया।

बनियेर की भीड़ से वचती-बचाती में तालाव की तरफ उतर गई। तालाव के किनारे-किनारे चलती गई! आकाश मुझे आवाजें देता रहा।

अब, नरस्टेड पर दबाव! फोन, फैक्स, खत! तसलीमा को यह देश चाहता है, वह देश चाहता है। सूयान्ते वेलर से यह सव सँभाले नहीं सँभल रहा है। सारा कुछ उसका सेक्रेटरी सँभाल रहा है। खैर, यह सव तो है ही, इसके अलावा दैनिक जीवन के छुटपुट तकाजे तो लगे ही रहते हैं। लगभग हर राज़ ही यूरोप के विभिन्न देशों से मेरा इंटरव्यू लेने या तस्वीरें लेने के लिए, कोई न कोई पहुँचा ही रहता है। टेलीविजन, डॉक्यूमेंटरी, पत्रिका, समाचार, फोटो एजेंसी, न्यूज एजेंसी आती ही रहती हैं। 'धत्' कहकर अगर मैं कतरा जाने की कोशिश करती हूँ तो सूयान्ते का अनुरोध जारी हो जाता है-इन लोगों को लौटा देना सही नहीं है। मेरा जो निजी वक्तव्य या आदर्श है, प्रचार माध्यमों की मदद से मैं प्रचारित कर सकती हूँ। प्रचार अगर जारी रहा, तो पाठक, मेरी कितावें भी पढ़ना चाहेंगे। कितावें विकेंगी। मेरा अपना कोई सोच-विचार, कोई ध्यान-धारणा है। विपमता के खिलाफ, अनाचार-अत्याचार के खिलाफ मेरे निजी खयाल हैं उन्हें फैलाने में. इतने वडे मौके का फायदा क्यों नहीं उठा रही हैं? इंसान को तो ऐसे मौके, माँगने से भी नहीं मिलते। नोवेल पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को भी नहीं मिलता और मैं हूँ कि पत्रकारों को ठेंगा दिखाकर विदा कर देती हूँ। प्रचार-माध्यम बेहद जरूरी है। इसकी अवज्ञा करके यहाँ की दुनिया में कुछ अर्जित करना संभव ही नहीं है, खासकर तब, जब मैं आम जनता में जागरूकता फैलाना चाहती हूँ। प्रचार माध्यम बेहद बुरा है, साथ ही वेहद उत्तम है। भले के लिए मेरे दरवाजे पर ये माध्यम मत्था टेकते हैं। इस बात में जरा अहंकार की गंध जरूर है मगर यह मेरी समूह-क्षति है। सूयान्ते यह सब सीख मुझे तब तक देता रहता है, जब तक मैं अपना फैसला वदल नहीं देती। खैर, मने उससे कह दिया है कि किसका आमत्रण मुझे कबूल करना चाहिए, किसका नहीं, इसका खयाल वह खद रखे। उसकी भी यही राय है। उसने भी महीन-महीन छेदवाली चलनी हाथ में ले रखी है और काफी छानकर ही, किसी कार्यक्रम के लिए राजी होता है। मेरा पता-ठिकाना या फोन नंबर, किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए। इस मामले की जिम्मेदारी नरस्टेड पर है। उसके दफ्तर का ही एक कमरा इंटरव्यू के लिए खाली कर दिया गया है। सच पूछे, तो सूयान्ते मेरे सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सँभालता है। नरस्टेड प्रकाशन की इमारत, स्टॉकहोम के पुराने शहर, गमलास्तान में है। दूर से देखें तो 'म्यलारन' नामक जो विशाल तालाब, शहर के बीचोंबीच स्थित है, ऐसा लगता है, जैसे वह इमारत उसी तालाब के जल पर खड़ी है। इमारत के शिखर पर ताँब की ऊँची छत! हाथ बढ़ाते ही सीटी हॉल करीव आ जाता है! सीटी हॉल ! वह लाल मकान, जहाँ रात के वक्त, नोवेल पुरस्कार का जश्न चलता है। वैसे नोवेल पुरस्कार शहर के लगभग दरवाजा-खिड़कीहीन गोदामघर जैसे एक विकट, विशाल इमारत के अंदर प्रदान किया जाता है। वह इमारत, खचाखच भीड़ भरे बाजार में स्थित है। वहीं उसका कन्सर्ट हॉल भी है। वैसे भी, पूरे साल-भर तक यहाँ गाना-वजाना चलता रहता है। हर साल, यहीं एक दिन नावल पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है। वैसे मैं नोवेल पुरस्कार के देश में निवास करती हूँ। कभी-कभी यह वात भूल ही जाती हूँ। नोवेल पुरस्कार पहले जितना विराट लगता था, अब उतना नहीं लगता।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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