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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मैं माइब्रिट का हाथ पकड़कर, अपने साथ लिवा लाई। गोथेनबर्ग के सबसे महँगे होटल, गॉथिया टावर्स के कमरे में, काफी रात गए तक हम दोनों गपशप करते रहे। जिस दिन हमारी पहली मुलाकात हुई थी, माइव्रिट ने ही मुझे बताया था कि उस दिन वह काफी नर्वस थी। मारे घबराहट के उसके हाथ से शराब का गिलास छूटकर गिर पड़ा था और समूचा कालीन भीग गया था। उसके सारे कपड़े भी रंग गए थे।

"क्यों? नर्वस क्यों थीं?"

"तुम क्या बात करती हो? तुम ठहरी इतनी मशहूर हस्ती!"

“धत् ! कहाँ की मशहूर! ऐसी बात मत करो तो!"

हाँ, मशहूर तो मैं बांग्लादेश में थी। उसकी एक वजह थी। उन लोगों को मालूम था कि मैंने क्या लिखा है। जानने-समझने के बाद जो लोग श्रद्धा या प्यार प्रदर्शित करते हैं, उसका कोई मोल होता है। यहाँ तक कि जानने-समझने के बाद, जो नफरत उछाली जाती है, उस नफरत का भी मोल होता है।

ये लोग जो मुझे इतना ऊपर उठा रहे हैं, असल में मेरे लिए एक परिवेश तैयार कर रहे हैं, ताकि मैं उतनी ही हीनता झेलूँ। मुझे बेहद डर लगता है! जब कैमरे मुझे घेर लेते हैं, मैं झट से हट जाती हूँ। कैमरे मेरी अंग-भंगिमा अपने अंदर कैद कर लेना चाहते हैं। मैं दाहिने मुड़ती हूँ, तो खबर बन जाती है, अगर बाएँ झुकती हूँ तो भी ख़बर बन जाती है। ये पत्रकार मुझे मधुमक्खियों की तरह घेर लेते हैं। मैं झटपट निकल भागना चाहती हूँ। कहीं और! किसी और तरफ! मैं बाहर निकल पड़ती हूँ।

पूरा शहर घूमती फिरी! समुन्दर तक जा पहुंची। मछली बाजार, फूलों के बाजार के चक्कर लगाए। रात को माइब्रिट को उसके पूर्व-पति के घर से उठाया, "चलो, गोथेनवर्ग की सैर करें। सोने की कोई ज़रूरत नहीं! चलो, घूमें-फिरें।"

“यहाँ कोई पतिता-मुहाल है?" मैंन माइब्रिट से ही पूछा।

एमस्टरडम के वे दृश्य तो मेरी आँखों में थे ही, दिमाग में भी घुसकर बैठे थे। रात के वक्त मैंने गोथेनबर्ग देखा। वूट, मिनी-स्कर्ट और उन्मुक्त छातियों वाली शर्ट पहने, औरतें सड़क के किनारे-किनारे खड़ी थीं। गहरे मेकअप से पुते चेहरे । गाड़ी धीमी गति से चलती रही, ताकि उन औरतों को देखा जा सके। एमस्टरडम की तरह यहाँ नीलाभ रोशनी वाली दुकानें नहीं थीं। यहाँ औरतें फुटपाथ के खंभों से टिककर खड़ी रहती हैं।

अचानक माइब्रिट ने कहा, "यहाँ तुमने जिन लोगों को खड़े देखा, उनमें कोई भी औरत नहीं है।"

मैं अचकचा गई।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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