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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मुझे कब, कहाँ जाना होगा, क्या-क्या करना होगा, कहाँ कौन-सी मीटिंग है, कब इंटरव्यू है, दिन या रात को कव खाना है, यह सब पुलिस के पास लिखा होता है। समय के मुताबिक, पुलिस ही मुझे उन जगहों पर ले जाती है। मुझे खुद कुछ याद रखने या सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ती। काम या खाली वक्त में मुझे हक है कि मैं चाहे घूमँ-फिरूँ। हाँ, सिर्फ एक तसल्ली है, इस मेले में मेरी कोई किताब नहीं है। मेरी किताव अभी प्रकाशित नहीं हुई। मेले में अगर मेरी कोई किताब होती, तो मैं कीचड़ में फँस जाती। वहाँ रुको! हस्ताक्षर दो! हँसो! कैमरे के सामने खड़ी हो!

इस पुस्तक-मेले में, मेरी कोई किताब नहीं है। किताब अभी तक छपी ही नहीं! स्टावांगर का विलियम नेइगर आया है, मुझसे मिलने के लिए और यह बताने के लिए कि मेरी किताब छप रही है। किताब का जिक्र सुनते ही मैं दुःखी हो गयी।

मैंने दरयाफ्त किया, "किताब छापने से पहले, तुम लोगों ने वह किताब पढ़ ली थी?"

"बेशक पढ़ ली थी।"

"तब तुम छाप कैसे रहे हो, बताओ? क्यों छाप रहे हो?"

“पढ़ी है, इसीलिए तो छापने का फैसला किया है।"

"पत्र-पत्रिकाओं में अगर इस किताब की इतनी चर्चा न होती तो तुम जरूर इसे छापने को तैयार नहीं होते।"

"तुम भी न जाने क्या बात करती हो! ऐसी बात बिल्कुल नहीं है! वाकई, वहोत अच्छा लिखा है।"

"अच्छा नहीं, खाक है!"

अपने देश में रहते हुए विदेशी प्रकाशकों के प्रति मेरी जितनी श्रद्धा-भक्ति
थी, सच पूछे, तो अब काफी कुछ हवा हो चुकी थी। यहाँ का एक भी प्रकाशक अगर मुझसे कहता-देखू, तुम्हारी दूसरी किताव की पाण्डुलिपि दो तो, ज़रा देखू या यह कहता कि सुनना है तुम नारी अधिकार के बारे में लिखती हो। नारी अधिकार पर अगर तुम्हारा कोई उपन्यास या लेख हो तो जरा मुझे दिखाओ या यही कहता कि तुम तो कवि हो, अपनी कविताओं की एक पांडुलिपि तो दिखाओ-तो मेरी कम-से-कम यह तो समझ में आता कि ये लोग जुनून में आकर किताबें नहीं छापते।

मेरे लाख मना करने के बाद भी इन लोगों ने आँख-कान-नाक मूंदकर 'लज्जा' की माँग की है। इन्हें 'लज्जा' मिल गई। इसके बाद जब किताब छप जाएगी तो पाठकों को भी 'लज्जा' को झेलना होगा। सच तो यह है कि 'लज्जा' लज्जा के अलावा किसी को और कुछ नहीं देगी।

मैंने माइब्रिट से खुद ही पूछा, “रात को तुम कहाँ रहोगी?''

“अपने भूतपूर्व पति के घर में। हालाँकि हमारा तलाक हो चुका है। मैं जव भी गोथेनबर्ग आती हूँ, मैं उसी के यहाँ ठहरती हूँ। अब हम सीधे-सादे दोस्त जैसे हैं।"

“धत् ! ऐसा करो, आज रात तुम मेरे साथ रहो। होटल में मेरा कमरा काफी बड़ा है।"

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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