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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


घर के दरवाज़े पर पाटा बिछाकर बैठे-बैठे, आँगन में कौआ उड़ाते-उड़ाते, नमक-मिर्च मिलाकर पांता-भात (पानी मिला हुआ बासी भात) खाऊँगी और उसके वाद वर्क लगा हुआ पान खाऊँगी। धनेर वाली साड़ी पहने हुए, मेरी माँ कागजी नीबू, कामिनी फूल, माचा की लौकी, बक्ना बछड़ा, खलसे मछली, पंचफोरन के किस्से सुनाते-सुनाते, मेरे माथे पर पंखा झलेगी और उसके बदन के पसीने से निकलती हुई तीखी गंध मुझे अपने जन्म, शैशव, कैशोर्य की गोलछूट खुशबू का अहसास कराएगी। अब बहुत हुआ! महासागर में काफी तैर लिया, अब अपने गाँव के पोखर में, दिन-दुपहरिया डुबकी लगाने का मन होता है, निखिल'दा!

कुछेक दिनों बाद मैं पुर्तगाल सफर पर चल पड़ी। इस बार गैबी ग्लेइसमैन मेरे साथ रवाना हुआ! उसने अपने लिए भी एक आमंत्रण-पत्र जुटा लिया। आमंत्रण जुटाया था, मेरे बारे में एक व्याख्यान देने के लिए। हर पल वह यही रटता रहा कि उसे लिसबॉन में एक व्याख्यान देना है। किस विषय पर व्याख्यान देना है, हैरत है कि सफ़र के दौरान उसने इस बारे में एक बार भी जुवान नहीं खोली। बाद में, लिसबॉन के कार्यक्रम में उसका व्याख्यान सुनकर, मैं आसमान से गिर पड़ी। हवाई
जहाज के पहले दर्जे में बैठकर वह ऐसा रौब दिखा रहा था कि उसके बिना 'इंटरनेशनल पार्लियामेंट ऑफ राइटर्स' विल्कुल चल ही नहीं रहा है। वे जनाब कोई बहुत बड़े वुद्धिवादी के दुम हैं।

हवाई जहाज की टिकट पर यथारीति मेरा नाम-एभा कार्लसन है! यथारीति पुलिस का तामझाम भरे सर्कस की फौज! यथारीति मेरी झुंझलाहट और शर्म से झुका हुआ सिर! लिसवॉन में अनगिनत फ्रांसीसी दार्शनिक आए हैं। ज़्यादातर सभी 'पार्लियामेंट ऑफ राइटर्स' के सदस्य! यह संगठन सन् तिरानवे के आखिर में गठित हुआ। अल्जीरिया के लेखक और बुद्धिजीवी लोगों को सुनियोजित तरीके से कट्टरवादी गिरोह ने बलि दी थी, इसी वजह से बाकी लोगों को बचाने के लिए कोई इंतज़ाम करने के तकाज़े पर, कुछ लोगों ने इस किस्म के संगठन की ज़रूरत महसूस की। सन् चौरानबे में सलमान रुशदी इसके अध्यक्ष बने। यह संगठन स्ट्रैसबर्ग में शुरू किया गया। इस मामले में शहर की मेयर, कैथरीना ट्रॅटमैन ने काफी मदद की थी।

वे भी लिसवॉन आई हुई हैं। बाकी सदस्य हैं पियेर बदौ, एडोनिस, एडवर्ड ग्लीशां, क्रिश्चन सालमन, सलमान रुशदी। क्रिश्चन सालमन सेक्रेटरी हैं और सलमान रुशदी नए अध्यक्ष! सलमान रुशदी लिसबॉन नहीं आए। खैर, कौन आया है, कौन नहीं आया, यह मेरे जानने की बात नहीं है। मेरा किसी से भी परिचय नहीं है। परिचय करने के लिए इतने सारे लोग आते हैं, अपना नाम बताते हैं, मुझे कुछ याद नहीं रहता। फ्रांसीसी लेखक या तो अंग्रेजी जानते नहीं या जानते भी हैं तो इस भाषा में बातचीत करना पसंद नहीं करते। नापसंद होने के बावजूद अगर बोलते भी हैं तो उन्हें चैन नहीं मिलता। बहरहाल लिसबॉन के कार्यक्रम में भी पीछा नहीं छूटा। वहाँ भी पत्रकारों के झुंड ने मुझे घेर लिया। मानवाधिकार संगठन अपने-अपने कागज-पत्र, उपहार, फूलों के गुलदस्ते वगैरह लिए कतार लगाए खड़े थे। मेरा हाथ उन चीज़ों को छू सके, इससे पहले ही वह सब सामान सुरक्षा कर्मियों के हाथ में चला जाता है, क्योंकि वे लोग झपटा मारकर सारा सामान समेट लेते हैं। उन सबकी जाँच करने के बाद ही वे लोग मुझे सौंपेंगे। मैं यह जानकर अभिभूत हूँ कि यहाँ भी लोग-बाग मेरे बारे में जानते हैं। नारी-संगठन की नेत्रियों ने मुझे घेर लिया। टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में सव औरतें अपने-अपने कामकाज का हवाला देती रहीं। वे लोग औरतों के लिए क्या-क्या कर रही हैं। वे लोग मुझे यह समझाने की कोशिश करती रहीं कि यहाँ भी, इस देश में भी औरतें अत्याचार की शिकार हैं। उन लोगों ने बताया कि मुझसे मिलना उन लोगों का सपना था। सब मेरी तरफ यूँ देख रही थीं, जैसे मैं काफी विशाल हूँ, काफी विराट हूँ। पोर्तुगीज़ औरतों का यह उच्छ्वास, मेरे दिल को छ गया। इतनी दर का देश. इतने अचीन्हे लोग! लेकिन जब वे लोग बातें करती हैं, जब वे अपने को, अपने आस-पास को उजागर करती हैं, तब यह बिल्कुल नहीं लगता कि वे लोग मुझसे या मुझ जैसों से अलग हैं। जितना-जितना मैं इंसानों को देखती हूँ, उतना ही मुझे लगता है कि दुनिया के सभी लोग एक जैसे हैं। उन लोगों का रंग भले ही गोरा-काला-बादामी हो; उन लोगों का धर्म भले ही अलग-अलग हो, भले ही सबकी अर्थनीति, राजनीति, इतिहास, भूगोल अलग हो, लेकिन व्यक्तिगत
अनुभूतियाँ विल्कुल एक जैसी हैं, किसी भी देश के इंसानों की तरह! धनी-दरिद्र के अहसास, विख्यात-अख्यात अहसास सभी समाजों में ही एक जैसे हैं।

यह कार्यक्रम मुख्य रूप से वक्ताओं को लेकर है। दर्शक या श्रोता के नाम पर देश-विदेशों से आए हुए पत्रकार! जिल भी आया है! जिल गोन्जालेज फ्रास्टर! उसे उम्मीद थी कि मुझसे दुवारा मुलाकात ज़रूर होगी। इस कार्यक्रम में लिसवॉन शहर की मेयर, चंद राजनीतिज्ञ लोग, चंद पोर्तुगीज़ लेखक, पत्रकार! मैं किसी पोर्तुगीज़ लेखक का नाम तक नहीं जानती। हाँ, किन्हीं-किन्हीं फ्रांसीसी लेखकों के साथ जरूर परिचय हुआ है। उस अचीन्ही भीड़ में एक अपरिचित सज्जन एक दिन काफी देर से मुझसे वातें करने का मौका ढूँढ़ रहे थे।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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