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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


बिशप के घर में मुझसे जान-पहचान करने के लिए आगे बढ़ आईं-सास्टिन एकमैन! स्वीडन की मशहूर लेखिका। आजकल वे जासूसी उपन्यास लिख रही हैं। आजकल जासूसी उपन्यास आगाथा क्रिस्टी की स्टाइल में नहीं लिखा जाता। पश्चिम के बडे-बडे साहित्यकारों ने जाससी उपन्यासों को भी ऊँचे स्तर के साहित्य की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है। सास्टिन एकमैन, स्वीडिश अकादमी की स्थायी सदस्या हैं। यह अकादमी साहित्य में नोबेल पुरस्कार देने के लिए साहित्यकारों का चुनाव करती है। रुशदी के खिलाफ जब फतवा जारी किया गया तो उन्होंने अकादमी से इसका विरोध करने का अनुरोध किया, लेकिन अकादमी राजी नहीं हुई। इस वजह से उन्होंने सन् उन्नीस सौ उन्यासी में अकादमी से त्यागपत्र दे दिया, लेकिन त्यागपत्र देने से ही अकादमी का स्थायी सदस्य पद चला नहीं जाता। जो लोग पदत्याग करते हैं या इस्तीफा देते हैं, उनकी कुर्सी बनी रहती है, लेकिन खाली रहती है। यानी कुर्सी हटाई नहीं जाती। हाँ, सिर्फ मौत के बाद ही स्थायी पद से नाम कटता है। किसी की मौत के बाद ही किसी नए आदमी को सदस्य बनाने के लिए चुनाव होता है।

अकादमी में कुल मिलाकर अट्ठारह सदस्य हैं। यह अट्ठारह लोग अपनी मौत से पहले तक सदस्य बने रहेंगे।

सास्टिन एकमैन और मैं एक ही मेज़ पर नाश्ता करने वैठे। नाश्ता करते-करते ही उन्होंने अकादमी छोड़ देने की कहानी सुनाई। सास्टिन एकमैन का सदस्य पद किसी दिन भी नहीं जाने वाला, इस ख़याल से मैं ताज्जुब में पड़ गई। यह कैसा नियम? फर्ज़ करें मैं उस अकादमी की सदस्य हूँ। अब अगर मैं इस्तीफा दे भी हूँ, तो भी मैं वहाँ बनी रहूँगी, मेरी नाम नहीं काटा जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि मुझे इस्तीफा देने की आज़ादी तो है, लेकिन नाम वापस लेने की आज़ादी मुझे नहीं है। अब, अगर अट्ठारह लोगों में से सत्रह लोग इस्तीफा दे देते हैं तो कुल एक ही आदमी को बैठकर यह चुनाव करना होगा कि साहित्य में नोवेल पुरस्कार किसे मिलेगा! हाँ, यह सच है!

सास्टिन एकमैन ने आईना निकालकर झटपट अपने चेहरे पर पाउडर पफ कर लिया! खैर, गोरी चमड़ी वाले इंसानों के गाल यूँ भी ज़रा लाल ही रहते हैं। उस लाल जगह को ज़रा और लाल करने की भला क्या ज़रूरत है? आजकल हम सब सौंदर्य की जो संज्ञा जानते हैं, वह यूरोपीय संज्ञा ही है। आज दुनिया भर के लोगों के दिमाग में बस यही संज्ञा जिंदा है! तन-बदन में कहीं कोई तेल-चर्वी नहीं रहेगी। चेहरा लंबोतरा होगा। गालों की हड्डियाँ ज़रा उभरी हुई हों तो बेहतर है। मैं जिस भी लड़की या औरत को देखती हूँ। लगभग सवकी एक जैसी सेहत! वहाँ कितनी ही औरतें आ-आकर, मुझसे जान-पहचान करती रहीं। किसी का नाम, किसी का भी चहरा मुझे याद नहीं रहता। सारा कुछ गड्डमड्ड हो जाता है। इसमें उन लोगों का दोष है या मेरा, मैं नहीं जानती।

स्टॉकहोम में उनका घर कहाँ है, मेरे यह पूछने पर सास्टिन एकमैन ने जवाब दिया, “स्वीडन के उत्तर में एक छोटा-सा गाँव है! कोई बड़ा लेखक/लेखिका हो, तो राजधानी में ही रहना होगा, यह बेतकी बात है।"

स्वीडन का मैनलैंड और रूस के बीचों-बीच, बाल्टिक सागर में तैरता हुआ गतलैंड नामक एक दूरद्वीप से भी आगे उत्तरी प्रांत में, ‘फोरे' नामक अंचल में! वहाँ इंगयार बर्गमैन भी रहती हैं। वे किसी से मिलती-जुलती नहीं, किसी से भेंट भी नहीं करतीं, बर्फ के देश के बाशिन्दों के स्वभाव-चरित्र में शायद निर्जनता के प्रति पक्षपात मौजूद है। वेहद दीर्घकाल के अभ्यास से उन लोगों का ऐसा चरित्र बन गया है। बर्फ का देश होने की वजह से इन लोगों का जन-संपर्क बहुत ज़्यादा नहीं था। एकाकीपन ही उन लोगों का सम्बल था। शायद इसीलिए इन लोगों के खून में, निभृत निर्जन में रहने-सहने की आकुलता समाई रहती है। अच्छा सच्ची? मैं सोचती रही। इंसान तो सामाजिक प्राणी होता है। वह बाघ जैसा असामाजिक नहीं होता। बाघ अपनी सीमा में अन्य किसी भी प्राणी की उपस्थिति पसंद नहीं करता। इंसान भला कैसे इंसान को छोड़कर जी सकता है, मेरी समझ में नहीं आता।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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