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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


अगले दिन सुबह बिशप के यहाँ नाश्ते की दावत थी। उस घर में अन्य कवि-साहित्यकारों को भी निमंत्रित किया गया था। किसी धर्मगुरु के घर? मैं असमंजस में पड़ गई। पहले दिन मंत्री और अगले ही दिन विशेप? विशप ने बुलाया है, इसलिए मुझे जाना ही होगा? क्यों जाना होगा? वांग्लादेश में बैतुल मुकर्रमा के खतीब अगर कवि-साहित्यकारों को बुलाते हैं, तो क्या झुंड-बाँधकर कोई ऐसे जाता है? इन सब धर्मगुरुओं को इतना सम्मान करने की आखिर क्या वजह है?

मैंने दरयाफ़्त किया, "अच्छा, हम लोग बिशप के घर क्यों जा रहे हैं?"

“यह तुम क्या कह रही हैं? अरे भई, चर्च ऑफ नॉर्वे के बिशप हैं।"

"तो क्या हुआ? ऐसे कौन-से बड़े आए हैं?"

“बेशक, बहुत बड़ी हस्ती हैं। इसीलिए तो उनके बुलाते ही हम चले आए। राजपरिवार और नॉर्वे की सरकार से भी ऊपर हैं वे! वास्तविक ताकत तो इन्हीं लोगों के हाथों में है।"

मैं अवाक् हो उठी। ऐसा खूबसूरत देश! ऐसी समता वाला देश! लेकिन यहाँ किसी धर्मगुरु की इतनी क्षमता?

“देखो, नॉर्वे एक सेकुलर राष्ट्र है! धर्मनिरपेक्ष देश! यहाँ किसी धार्मिक गुरु की इतनी क्षमता कैसे हो सकती है? कौन होता है यह विशप, जो उसके बुलाते ही, हमें जाना होगा?" मैंने कहा।

किसी ने जवाब दिया, “यह तुम कैसी बातें करती हो? विशेप ने आमंत्रित किया है! हम लोग जाए विना रह नहीं सकते! जाएँग ही जाएँगे और किसने कहा कि नॉर्वे संकलर है?"

मुझे अपने ही कानों को अपनी दवी-दवी आर्तनाद सुनाई दी, "यह तुम क्या कह रहे हो? नॉर्वे सेकुलर राष्ट्र नहीं है?"

“नहीं!" नॉर्वे के किसी लेखक ने जोर-जोर से सिर हिलाया।

हाँ, नॉर्वे धर्मनिरपेक्ष नहीं है। नॉर्वे के संविधान के धारा दो में लिखा हुआ है- "एवेन्जेलिकल लूथरन् नॉर्वे का राष्ट्रधर्म है। राजा है-गिरजा और देश का प्रधान ! मंत्रियों में जो लोग नॉर्वे के गिरजाघर के सदस्य हैं, वे लोग ही किसी भी अहम फैसले के लिए वोट दे सकते हैं।''

ईसाई परिवार में जो भी शिशु जन्म लेता है, वह अपने आप गिरजे का सदस्य मान लिया जाता है। अगर वह कभी खुद ही सदस्य-पद से नाम न कटा ले, वह जिंदगी भर सदस्य वना रहता है। नॉर्वे में सतासी प्रतिशत लोग गिरजाघर के सदस्य हैं। यह सुनने के बाद, मैं सोचती रही कि ऐसा वेदाग देश, औरत-मर्दो की समता का देश, मानवाधिकार का स्वर्ग, लेकिन इस देश में भी राष्ट्रधर्म मौजूद है। फिर वांग्लादेश के खिलाफ हम लोग इतना हल्ला क्यों मचा रहे हैं? राष्ट्रधर्म को कायम रखते हुए भी अगर देश को समता और साम्य का देश बनाया जा सकता है तो फिर परेशानी क्या है? नॉर्वे में मानववादी नास्तिक लोगों की एक संस्था मौजूद है, लगभग साठ हज़ार लोग इसके सदस्य हैं। वे लोग इस राष्ट्रधर्म को ख़ारिज करने की कोशिश किए जा रहे हैं। वे लोग वाकी लोगों को उकसाते हैं कि वे लोग गिरजे से अपना नाम कटा लें। अगर वे लोग अपना नाम नहीं कटाएँगे तो ज़िंदगी-भर गिरजे में चंदा भरते रहना होगा। तनखाह से चंदा के रुपए गिरजे के हिसाब में पहुँच जाएँगे। नास्तिकता की उदारता, महानुभावता; नास्तिकता का महत्त्व और जरूरत पर जोर देते हुए यह संगठन नॉर्वे के लोगों को इंसान बनाने की कोशिश किए जा रहा है।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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