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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मैंने मिसाल देकर कहा-“देखो, मैने अपनी बहन की बेटी का नाम रखा है-'स्रोतस्विनी भालावाशा'। इसका मतलब है, प्रवाहमय प्यार! कितना सुन्दर है, वताओ! मेरी एक सहेली की बेटी का नाम है-अथाह नीलिमा! तुम लोग इस तरह का नाम नहीं रख सकते?"

उन लोगों ने सिर हिलाकर कहा-"ना-"

"क्यों?"

"नियम नहीं है।"

"यह नियम-वियम क्या होता है? वदल दो नियम!"

"ऐसा नाम रखा, जिसका कोई मतलब हो।"

"क्यों, नाम का कोई मतलव हो, यह क्यों?"

"अर्थ हो. तो अर्थहीन नहीं होग-"

"मैं क्या काम करता हूँ, वही तो असली वात है! नाम से क्या आता-जाता है?"

“अब, फर्ज़ करो, तुम्हारा नाम आकाश है..."

"चलो, मान लिया, मेरा नाम आकाश है, इससे क्या फर्क पड़ता है? मैं क्या आकाश जितना विराट हूँ या उदार! मुमकिन है, इंसान के तौर पर मैं भयंकर टुच्चा और संकीर्ण हूँ। असल में आकाश जैसा कुछ नहीं होता।"

"तो बाइविल के नामों का ही क्या अर्थ होता है भला?"

"नहीं, अर्थ तो कुछ भी नहीं होता..."

“पीटर, जॉन, मैथ्यू, मेरी-सभी नाम तो धर्म से ही जुड़े हुए हैं। तुम लोग धर्म-कर्म न मानने के बावजूद, उन धर्मगुरुओं का नाम धारण किए बैठे हो? यह सिर्फ अर्थहीन ही नहीं, अन्याय भी है।"

मेरी बात सुनकर, पुलिस वाले मंद-मंद मुस्करा उठे। उनमें सबसे कम उम्र है-इयर्गन! वह बड़ी सतर्कता से हँसता है। उसका ऊपरी होंठ जो फूला रहता है। इवर्गन सिगरेट नहीं पीता, लेकिन ऊपरी दंत-पंक्तियों के ऊपर का होंठ उठाकर वह
मसूड़ों में कुछ ऎस लेता है। चूंकि ,सनं वाली वह चीज़ दुकान में डिब्बे में मिलती है। वह चीज़ वह दुकान से ही खरीदता है। चूंकि वह चीज़ वह ऊपरी होंठ में से रहता है, इसलिए, ऊपरी होंठ फूला रहता है। इस वजह से उसका चेहरा कितना बदला हुआ लगता है। मैंने गौर किया है, यह तम्बाकू अनगिनत लोग इस्तेमाल करते हैं।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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