जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
सुरक्षा-अधिकारी हर वक्त मेरे साथ होते थे! मैं तारिका जो हूँ, लेकिन युक्त राज्य के दूतावास के क्लर्क-परिवार के अधिकांश मुझे तारिका के तौर पर पहचानते ही नहीं। अगर पहचानते भी हों, तो वे लोग विदेश-नीति में सख्त और मुस्तैद रहते हैं। मैं वीसा माँगने आई हूँ, मेरा स्वागत करने की, उन लोगों की कोई मंशा नहीं होती। अपने लिए वीसा की माँग करते हुए, जैसे ही मैं अपना आवेदन उन लोगों के हाथ में सौंपती हूँ, तो उनका नारा शुरू हो जाता है-यह चाहिए-वह चाहिए, यहाँ यह चिपकाएँ, रुपए लगेंगे, रुपए देने के बाद भी यह-वह जरूरी है। अंत में मैं क्यों जाना चाहती हूँ, उसकी वजह बताएँ।
एक बार मैंने कह भी दिया, “घूमने-फिरने जा रही हूँ।''
"घूमने-फिरने?" उस महिला ने मुझे फटी-फटी आँखों से देखा।
"जी-हाँ, घूमने-फिरने!"
"नहीं-नहीं, घूमने-फिरने के लिए जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
"क्यों? उस देश में घूमने जाने की अनुमति आप लोग नहीं देते?"
"यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास किस देश का पासपोर्ट है।"
"मेरे देश के पासपोर्टधारियों को घूमने जाने का अधिकार नहीं है?"
"नहीं!"
युक्त राज्य की तरफ से किसी का निमंत्रण पत्र चाहिए। मैं कहाँ जा रही हँ, कहाँ ठहरूँगी, क्यों आमंत्रित किया गया है, किसने आमंत्रित किया है। उन लोगों को कारण बताते हुए दूतावास को पत्र लिखना होगा। वहाँ मेरा खर्च कौन उठा रहा है। मेरे पास कितने रुपए-पैसे हैं, मैं कितनी राशि ले रही हूँ, कब लौटूंगी। उसकी टिकट दिखानी होगी। उन लोगों को सारी जानकारी चाहिए। सब कुछ के बारे में कागज-पत्र दिखाना होगा। मैं जो इस देश में हूँ, यहाँ मेरा स्टेटस क्या है, उन लोगों को यह भी देखना होगा। इतना सब देखने-समझने के बाद अगर उन्हें लगेगा कि मुझे वीसा दिया जाना चाहिए। तभी मुझे वीसा मिलेगा, अन्यथा नहीं!
"अगर किसी स्वीडिश पासपोर्ट के लिए वीसा की जरूरत पड़े?"
"ना।"
"नॉर्वे के पासपोर्ट के लिए?"
"ना।"
"बेल्जियम के लिए?"
"ना।"
"स्विट्जरलैंड के लिए?"
"ना।"
"हॉलैंड?"
"ना।"
"अमेरिका?"
"ना।"
"किसी फ्रेंच पासपोर्ट के लिए?"
"ना।"
“उन लोगों के पासपोर्ट में वीसा क्यों जरूरी नहीं है, बता सकती हैं?"
"यही नियम है।"
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