जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
वर्ण
पश्चिम का उच्च वर्ग मुझे मीठे-मीठे मुस्कराना सिखा रहा है। अचीन्हा-अपरिचित भी हो तो बनावटी ही सही, उसकी तरफ मुस्कान उछाल देने का पाठ पढ़ा रहा है। बेवजह ही 'धन्यवाद' का फव्वारा बरसाकर, दूसरों को उसमें नहलाना सिखा रहा है। वे लोग-मुझे सभ्यता की तालीम दे रहे हैं। नहीं, मैं उनका सब कुछ किसी शर्त पर भी नहीं सीख सकती। दूसरों के प्रति जो-सो मंतव्य हरगिज जाहिर मत करो। दूसरों के प्रति अगर कोई शिकायत या नफरत जागे तो उसे मन-ही-मन पाले रहो, जाहिर हरगिज मत करो। यही है नीति! दक्षिणी देशों की इस हद तक न सही, मगर उत्तरी देशों की संस्कृति यही है। मेरे तन-बदन में उत्तर की हवा लग चुकी है, यह बात मैं जोर देकर नहीं कह सकती। लेकिन बिच्छू की तरह इस हवा ने मुझ पर दाँत गड़ा दिए हैं। हाँ, पश्चिम का जो कुछ अच्छा है, उसे ग्रहण करने में मुझे आपत्ति नहीं है, लेकिन जो बनावटी या नकली है, उसे मैं हरगिज कबूल नहीं कर सकती। सच तो यह है कि यह मेरे वश में नहीं है। मेरे बदन का मुखौटा या नकाब हमेशा खिसक जाता है। इसके बावजूद हठात्-हठात् जब अपने पर नज़र पड़ती है तो मुझे भयंकर दहशत होती है। मैंने गौर किया है, जब मुझे विरोध करना चाहिए, में नहीं करती। मैं खामोश रहती हूँ, सिर्फ सुनती रहती हूँ। सिर्फ दूसरों को सुनती रहती हूँ। अब अगर दूसरों की बात पसंद न आए, फिर भी चुप करके सुनते रहना होगा। इसे कहते हैं कि दूसरों के प्रति श्रद्धा-प्रदर्शन! कोई अगर कुछ कह रहा हो तो जब तक वह अपनी बात पूरी न करे, तुम्हें नहीं बोलना चाहिए। तुम उसकी पूरी बात सुनो कि वह क्या कहना चाहता है, उसके बाद अपनी राय जाहिर करो। यही है, अतिशीतल, अतिसमझौतावादी, अतिगणतंत्र देश का नियम! यह नियम मैंने अचानक किसी एक दिन, किसी एक घटना से नहीं सीखा। धीरे-धीरे कुनैन की गोली की तरह मझे निगलना पड़ा है। ममकिन है. इसे निगलना मझे अच्छा न लगा हो, लेकिन यह बात कभी मुझे तर्कसंगत लगी है। अगर विरोध करना हो तो गले की आवाज़ नरम करनी होगी। जी हाँ, लहजा बेहद नरम करना होगा। मैं किसी के खिलाफ आक्षेप कर रही हूँ, यह बात हरगिज वैसी न लगे। मालिन ने जरूर कहीं-कहीं फोन करके बिल बढ़ा दिया है, वरना तीन महीनों में छप्पन हजार रुपयों का बिल कैसे आ गया? मध्यवर्गीय स्विड लोगों का टेलीफोन बिल भी पाँच सौ के नीचे ही होता है। मैं खुद जो अपने देश फोन करती हूँ, उस वजह इतना बिल नहीं आना चाहिए था। पिछले महीनों का मेरा तजुर्बा ऐसा नहीं था। लिलियाना द्वीप के उस घर में एक महीने का फोन-बिल आठ हजार रुपए आया था। ना, मालिन से इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। तुम्हें तो पता नहीं, मालिन ने अपने निजी कामों से फोन किया था या नहीं। जरूर तुम्हारे काम-काज के अलावा, उसने और कहीं फोन नहीं किया। मुझे लंबी उसाँस भरकर खामोश रह जाना पड़ा। लिडिंगी की मकान-मालकिन ने जब अचानक मुझसे कहा कि मुझे घर छोड़ना पड़ेगा। मकान छोड़ने के लिए पहले एक नोटिस भी दी जाती है, उन जनाब ने ऐसी कोई नोटिस भी नहीं दी थी। उसने मुझसे वादा दिया था कि कम-से-कम साल-भर मैं निश्चित रह सकती हूँ। लेकिन मेरे मुँह पर ही उसने वह वादा तोड़ते हुए घर छोड़ने का हुक्म जारी कर दिया। अब, अचानक मैं कहाँ जाऊँगी? रहने के लिए मुझे घर कहाँ मिलेगा? यह मकान मालकिन का सिरदर्द नहीं था। अब क्या होगा? विरोध नहीं होगा? नहीं! नहीं होगा। जब मैंने सूयान्ते वेलर को यह खबर दी, अपनी सुरक्षा-फौज को सूचित किया और यह शिकायत की कि मकान-मालिकन ने शर्त तोड़ी है। मैंने देखा, सूयान्ते ने चूँ तक नहीं किया। मेरा यूं शिकायत करना, किसी को भी पसंद नहीं आया।
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