जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
शाम को कॉन्फ्रेंस ! साहित्य-संस्कृति की बिल्डिंग! खासा आधुनिक! मेरे साथ सरकार में नारी-विषयक मंत्रालय की नेत्रियाँ बैठीं। मल वक्ता मल आकर्षण तसलीमा! अस्तु, वे लोग थोड़ा-थोड़ा बोली और उसके बाद उन लोगों ने फ्लोर मेरे लिए खाली कर दिया। मेरे भाषण के बाद वैचारिक आदान-प्रदान शुरू हुआ। दर्शक एक-एक करके मंच पर आते रहे और अपनी-अपनी राय जाहिर करते रहे। यह सिलसिला काफी देर तक जमा रहा। वाकई, दिलचस्प कार्यक्रम था! धर्म, समाज, राजनीति, नारी-स्वाधीनता वगैरह मुद्दों पर खुली राय। दर्शकों में एक इतालवी सज्जन भी थे। पंद्रह वर्षों तक वे बांग्लादेश मिशनरी में भी रह चुके थे। काफी लंबे अर्से तक विश्वविद्यालय के भाषा विभाग में प्रोफेसरी भी कर चुके थे। धाराप्रवाह बांग्ला बोलते थे। उनसे भी जान-पहचान हुई। कार्यक्रम खत्म होने के बाद ऑटोग्राफ लेने वालों की भीड़ लग गई। बहुत-से दर्शकों के हाथ में मेरी 'लज्जा' का इतालवी अनुवाद!
वहाँ से डिनर लेने जाने से पहले, एक बार फिर शहर का चक्कर लगाया गया! मेडीटेरिनियन सागर, रिपिकल मेडीटेरिनियन झाड़ियाँ, पहाड़ी क्षेत्र में गाड़ी से घूमने-फिरने का दौर भी चला! उस पर भूतपूर्व यूगोस्लाविया! एनकोना के लोग उस देश के लोगों के वारे में भी फिक्र करते हैं। उनके लिए दुःखी भी होते हैं! आखिर वे लोग समुंदरी-पड़ोसी जो ठहरे! एनकोना शहर, पालेरमो की तरह गरीव नहीं है। यह वंदरगाह क्षेत्र है। यहाँ भी पहाड़ और सागर का मिला-जुला अहाता है, लेकिन प्राकृतिक पालरमा, एनकोना से ज्यादा आकर्षक है। हम सब मछली की सबसे मशहूर दुकान में आ पहुँचे। वहाँ कितने-कितने किस्म की मछली खाने को मिली, उसका बयान करना मेरे हिसाब से बाहर है। एमनेस्टी के 25 लोगों ने मिलकर मेरे लिए इस मत्स्य-भोजन का इंतजाम किया था।
अगले दिन रोम होते हुए मैंने वेनिस की उड़ान भरी। वेनिस शहर की ओर न जाकर, मुझे 'पादोवा' की ओर ले जाया गया। वहाँ ‘ला रेसिडेंट' होटल में मुझे ठहराया गया। वह होटल अपनी आँखों से देखे विना भरोसा न आए। वेहद लंबा-चौड़ा इंतजाम! मानो मेरे लिए छोटा-मोटा पूरा एपार्टमेंट ही मौजूद हो। मुझे अचरज हुआ, एमनेस्टी इतना खर्च कैसे कर पाई। ब्रिटिश एमनेस्टी ने तो मेरे लिए, इसका एक प्रतिशत भी खर्च नहीं किया था। वहरहाल, पादोवा में क्रिस्टिना और रिकॉर्डो मुझे खाना खिलाने ले गईं। वहाँ एमनेस्टी के कई लोग इंतजार कर रहे थे। अगली सुबह, पादोवा के सिटी हॉल में प्रेस कॉन्फ्रेंस! टी.वी., रेडियो, अखबार के ढेरों पत्रकार वहाँ मौजूद थे। मुझे वेहद थकान महसूस होने लगी। मेरे पैर फूल गए थे। चलने में भी परेशानी हो रही थी। एक नारीवादी पत्रकार ने अपनी पत्रिका थमा दी। पत्रिका के कवर पर मेरी ही तस्वीर। पादोवा यूनिवर्सिटी में कोई लड़की मुझ पर थीसिस लिख रही है। यह खवर उसने मुझे पहले ही दी थी। उस कॉन्फ्रेंस में एक अतिशय खूबसूरत लड़की हाथ में फूलों का गुलदस्ता लेकर आई।
“मैं ही वह लड़की हूँ, जिसने तुम्हें स्टॉकहोम में तंग किया था। उसने कहा।
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