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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


इटली में इतना सब कांड होगा, मैंने नहीं सोचा था। 25 मई को मैंने पालेरमोते में लैंड किया। पालेरमोते सिसिली का सबसे ज्यादा खूबसूरत नगर है, लेकिन सिसिली माफिया लोगों का केंद्र है! मेरे ठहरने का इंतज़ाम, मंडेला ला टूर होटल में किया गया था, जो पहाड़ और समुदर के प्रायः बीचोबीच है। बेहद खूबसूरत होटल! बाल्कोनी में खड़े होते ही दिल खुश हो जाता है! खैर समुंदर ने मुझे हमेशा ही मुग्ध किया है। खासकर उसकी असीमता ने! बिस्तर पर करवट लेकर लेटते ही सामने समुंदर! हर पल समुंदर की आवाजें! मन उत्ताल जल की तरंगों में बहने लगता है। मुझे कॉक्सबाज़ार का समुद्र-तट याद आता रहा। अपनी उत्तर-किशोर उम्र में उस समुंदर में कितना हो-हुल्लड़, खुराफात मचाया करती थी। अब, मेरा कैशोर्य, यौवन कितना दूर हो चुका है। अब तो बॉल्कोनी में पड़ी आरामकुर्सी पर लेटे-लेटे, एक प्याली चाय सामने रखकर सिर्फ उदासी आती है। विभिन्न लोग आ-आकर पूछ जाते हैं कि मुझे किसी चीज की जरूरत तो नहीं, मुझे कोई असुविधा तो नहीं। कुछ लोग काफी जटिल-जटिल मुद्दों पर बातचीत करने-समझने आते हैं। अब मैं पहले वाली 'मैं' नहीं रही! मैं तो गोल्लाछूट खेलने वाली, नदी-समुद्र देखते ही छलांग लगा देने वाली लड़की हूँ! अब क्या मेरी उम्र बढ़ रही है? मुझे तो लगता है, मेरे मन की उम्र बिल्कुल ही नहीं बढ़ी है। बॉल्कोनी के ठीक नीचे चट्टान के किनारे, खिले हुए लाल-सुर्ख जवा फूल पर नजर पड़ते ही, मैं अचानक चौंक उठी। जवा फूल के साथ मेरा सिर्फ कैशोर्य और यौवन ही नहीं बाकायदा शैशव भी जुड़ा हुआ है।

एमनेस्टी की औरतें आ पहुँचीं। उन लोगों ने दो पोस्टर दिखाए। कॉन्फ्रेंस के लिए उन लोगों ने बेहद खूबसूरत पोस्टर छपवाए हैं। तसलीमा नसरीन पालेरमो सिटी हॉल में भाषण देंगी। हुंहः जाने कहाँ की तसलीमा! अभी उस दिन पनाह पाने के लिए लोगों के दरवाजे-दरवाज़े फिरती रही, धर्मांध मर्दो की खुली तलवार, उसकी गर्दन को खरोंच मारकर निकल गई थी। अब, वह बूढ़ी गंगा, ब्रह्मपुत्र को पीछे छोड़कर, बिल्कुल मेडीटेरीनियन समुंदर तक आ पड़ी है।

अब मैं बर्लिन में हूँ। यहाँ मैं मजे में हूँ! खूब मजे में! अकेली रहते हुए भी बुरा नहीं लग रहा है। अब मैं पहले की तरह बार-बार भात नहीं खाती, बार-बार फोन का डायल नहीं घुमाती। अब काफी कुछ सह लिया है! बर्गर, सैंडविच या पित्जा खाने में खास असुविधा नहीं होती। आज पुलिस, मुझे यहाँ के दर्शनीय स्थल दिखाने ले गई। इस शहर की जलघड़ी, पुराना जर्मन पार्लियामेंट, उसकी बगल के फुटपाथ पर लेनिन समेत रूसी सामान बिकते हुए, बर्लिन दीवार, युद्ध में खंडहर हुए गिरजाघर, पूर्वी बर्लिन का म्यूजियम, सिटी हॉल, थियेटर, मॉनूमेंट वगैरह देखकर मैं होटल लौट आई। वाकई बर्लिन बेहद खूबसूरत, हरा-भरा शहर है। चलो, यह किस्सा बाद में! पहले इटली का किस्सा हो जाए। वहाँ की सिक्योरिटी पुलिस बेहद उद्यत है। हाथ में पिस्तौल लिए घूमती है। सड़कों के बैंकों के सामने वर्दीधारी पुलिस पहरा देती है। ट्रिगर पर उँगली रखे, राहगीरों की तरफ बंदूक का निशाना लगाए रहती है! उफ! निहायत भयावह होता है! अगली सुबह मेरे जाने का वक्त! रोम से होती हुई मैं एनकोना की तरफ उड़ गई।

एनकोना हवाई अड्डे पर एमनेस्टी की औरतें मुझे लेने आई थीं। पुलिस समेत, वे लोग मुझे गाड़ी से शहर के बीचोबीच ग्रैंड होटल में ले आईं। थोड़ी देर आराम करने के बाद प्रेस वालों से बातचीत के लिए मुझे नीचे उतरना पड़ा। सच तो यह था कि पत्रकारों से बातचीत करना मुझे कतई पसंद नहीं है, लेकिन एमनेस्टी की वजह से मुझे राजी होना पड़ा। ये सब बिचारी प्रेस पर बेहद निर्भर करती हैं। चलो, मेरी वजह से अगर इन लोगों के बारे में कुछ प्रचार हो जाए। उन लोगों की मेहमाननवाजी में मैं समूची इटली घूम चुकी हूँ, उनके लिए इतना-सा कुछ करना मुझे संगत लगा। उसके बाद शहर की सैर की बारी! सच पूछे तो यही मेरा असली काम है। एक जगह दर्शक एक पुरानी-सी विशाल तैराकी नाव के सामने भीड़ लगाकर देख रहे थे। भीड़ को संयत रखने के लिए बंदरगाह पर पुलिस उतरी हुई थी। वहाँ से हम पहाड़ की तरफ चल पड़े। वहाँ जहाज की आकृति का एक चर्च! कहीं रोमन थियेटर पर ध्वंसावशेष भी कायम था। वहाँ खड़े-खड़े, आज भी मानो घोड़ों के खुरों की आवाजें कानों में गूँजती हुईं। 

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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