लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान

   
वह लड़की मुझ पर थीसिस लिख रही है, यह क्या मुझे तंग करना हुआ? मैंने उसके खत का जवाब नहीं दिया था, शायद इसीलिए उसने सोचा होगा कि मैं तंग हुई हूँ। उस कॉन्फ्रेंस में मेयर भी आईं। मुझे कुछ कितावें भेंट करते हुए उन्होंने अनुरोध किया कि जाने से पहले एक वार उनके दफ्तर भी जाकर आऊँ। उस दिन राष्ट्रीय खवरों के लिए, दो-दो टी.वी. चैनलों ने मेरा इंटरव्यू लिया। कार्यक्रम खत्म होने के वाद, जब मैं मेयर के कमरे में पहुँची तो उस वक्त उनकी मीटिंग चल रही थी। काले-काले इंसान ! मेयर ने उनसे मेरा परिचय कराया। वे मोजाम्बि के प्रेसिडेंट थे। वहाँ से निकलकर एक 'तेहरास' (रस्तराँ या कैफे के बाहर कुर्सियाँ विछी जगह) में बैठकर कुछ खाया-पिया। अस्सी हजार लिरा देकर, एक जोड़ी जूते भी खरीदे। कैसे जूते? सफेद कपड़े के जूते! इटली की नौजवान औरतों में आजकल यह फैशन जोरों पर चल पड़ा है। मोजे बिना ही कपड़े के जूते पहनना, जैसे हमारे देश के भिखमंगे पहनते हैं! मेरे पास पचास हजार लिरा का जो नोट था, वह जाने कहाँ गुम हो गया था। एमनेस्टी के ही किसी लड़के ने मुझे पचास हजार लिरा उधार दिए। वहाँ से पादोवा का सबसे पुराना गिरजाघर, विभिन्न स्क्वायर, मूर्तियाँ, मूवमेंट देखते हुए मैं होटल लौट आई। यह सुंदर, स्निग्ध शहर मुझे बेहद आकर्षक लगा। रात को तरह-तरह की पित्ज़ा खाने का आयोजन ! हर बार एमनेस्टी के दस-बारह लोग तो साथ होते ही थ! उसके बाद किसी बड़े सांस्कृतिक केंद्र में फिर कॉन्फ्रेंस! पाँच सौ से भी अधिक दर्शक-श्रोता! वह कार्यक्रम भी काफी जमा! उसके बाद रात डेढ़ बजे तक, एक रेस्तराँ के विशाल तहरास में अड्डेबाजी होती रही।

उन लोगों में एक अधेड़ इतालवी महिला भी थीं। खासी खुशमिज़ाज महिला। सन् 67-68 में जब वे जेनेवा में थीं, तो तीन सालों तक वे किसी बंगाली सिविल सर्वेट की मुहब्बत में पड़ गई थीं। मेरे सामने, कुछ देर वे उसे याद करती रहीं। मजा लेने लायक उन्होंने कुछेक वांग्ला गीत सुनाए और टूटी-फूटी बांग्ला में कुछ बातें भी की।

सोमालिया की एक औरत, पिछले पच्चीस वर्षों से इटली में ही बस गई थी। पढ़ी-लिखी! वह भी मेरे पीछे लगी रही। बहरहाल वहाँ कितने-कितने लोगों ने आकर किताव पर दस्तखत कराए, मैं तो हैरान रह गई।

अगले दिन सुबह, सवीना, वह सुंदर लड़की आ पहुँची। वह थीसिस के मामले में मेरी कुछ मदद चाहती थी, लेकिन मैं कितनी आलसी और उदासीन जीव हूँ, असल में, मैं कुछ भी नहीं करूँगी, यह मैं जानती थी। मैंने मदद माँगने के लिए चंद लोगों के नाम दे दिए।

उसके बाद मैं गाड़ी से वेनिस रवाना हो गई। उस गाड़ी में सवीना भी कुछ दूर तक मेरे साथ आई। उसे यह उम्मीद थी कि रास्ते में शायद मैं उससे थोड़ी-बहुत वातचीत कर लूँ। वेनिस में पुलिस और एमनेस्टी के लोग मौजूद थे। वेनिस पहुंचकर मैं बेहद खुश हो गई। वेनिस शहर के बारे में कितना कुछ सुना था। होटल में सामान वगैरह रखकर मैं जल-टैक्सी लेकर निकल पड़ी। सबसे पहले सिटी हॉल! लोकल पार्लियामेंट ने मेरा सम्मान किया और वेनिस शहर की एक पेंटिंग उपहार में दी। वहाँ की पलिस भी इतनी गरु-गंभीर कि मैं जरा भी इधर-उधर पैर बढाती थी तो लोगों को धकियाकर, मेरे लिए जगह बना देती थी। सभी लोग बेहद भौंचक्की निगाहों से मुझे देखते रहे, लेकिन मुझे इस कदर शर्मिंदगी हो आई कि मैंने एमनेस्टी के ही एक लड़के, सिमॉन से कहा कि वह पुलिस को मना करे कि वह सैलानियों को धक्का देकर न हटाए। यहाँ कोई मेरी हत्या नहीं करेगा।

इसके बाद जल-टैक्सी से वेनिस-दर्शन! वेनिस का सौंदर्य देखना! यहाँ के घर-द्वार काफी दीन-हीन हालत में थे! कहीं, कोई रेस्टोरेशन नहीं हो रहा था। मैं शायद वेनिस की ओर ज्यादा खूबसूरती की आस लगा बैठी थी। बहरहाल, इन सबके बावजूद वेनिस अनोखा शहर है। पानी पर तैरते हुए घर-मकान! मैं चाहे जो भी कहूँ, उस शहर के प्रति मुग्ध होना ही पड़ता है। छोटे-छोटे कैनलों का पानी बेहद गंदा था। कभी-कभी सड़े हुए पानी की गंध भी हवा में तैर जाती है। खासकर गर्मी के मौसम में! ऐसा होता क्यों नहीं? उन सब जगहों का पानी बिल्कुल ठहरा हुआ होता है! राजमहल और जेलखाना, अगल-बगल में स्थित! राजमहल से फैसला होने के बाद, अंत में कैदियों को जेल में ले जाया जाता है। उन लोगों को सिर्फ एक पुल पार करना होता है। उस पुल का नाम है-'ब्रिज ऑफ शाइ!' यानी लंबी उसाँस की पुलिया! कैदी जेल जाने से पहले आखिरी बार समुद्र-तल को निहार लेते थे और लंबी-सी उसाँस भरते थे। मुझे बायरन की कविता याद हो आई-“आइ स्टुड इन वेनिस, ऑन द ब्रिज ऑफ शाइ, पैलेस एंड ए प्रिजन ऑन ईच हैंड : आइ सॉ फ्रॉम आउट द वेन हर स्ट्रक्चर्स राइज!"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book