लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


उन्होंने कहा था, "इतने-इतने देशों का भ्रमण कर रही हो, इतना-इतना तजुर्बा हो रहा है, लेकिन लिख कुछ भी नहीं रही हो।"

"लिखने का मन नहीं करता-” मैंने निसंतप्त आवाज़ में जवाब दिया।

"लिखने की कोशिश करो। लिखने के लिए ही देश छोड़ना पड़ा। अब निर्वासन में जाकर अगर लिखना ही बंद कर दो तो जिंदा कैसे रहोगी? देखना, यह लिखना ही तुम्हें बचाएगा। तुम्हें लिखना तो पड़ेगा ही!"

"लिखना-विखना अब मुझसे नहीं होगा।"

"नहीं होगा, यह तुमने कैसे समझ लिया? इस बीच तुम कहीं गईं?"

“अभी-अभी सिसिली से लौटी हूँ।"

 
"तो सिसिली के बारे में ही क्यों नहीं लिखती?"

"इस बारे में लिखने को कुछ भी नहीं है! एमनेस्टी इंटरनेशनल का कार्यक्रम था, इसलिए गई थी। भापण दिया। घूमी-फिरी! यह-वह देखा और चली आई। इसमें लिखने को क्या है? इसके अलावा माफिया के देश को लेकर कविताई करने को कुछ है भी नहीं।"

"तो यही सब लिख डाली। इसी में अगर मामूली-सा भी कल्पना का रंग दे दो, तो मज़ेदार रचना वन सकती है! किसी कहानी की तरह!"

“मुझे कल्पना का रंग देना नहीं आता। मुझमें कल्पना-शक्ति कम है, इसीलिए मैं उपन्यास नहीं लिख पाती।"

"भई, माफिया पर ही, वास्तविकता में हल्की-सी कल्पना मिलाओ और अपनी सफर-कथा पर एक रचना कर डालो।" निखिल सरकार ने कहा।

मैंने लिख डाला! भेज भी दिया। उन्होंने कहा, “सारा कुछ तो सच लगता है! इसमें कल्पना कहाँ है?"

मैंने उदास लहजे में जवाब दिया, “आखिरी हिस्सा, उस किस्म का नहीं था। आन्तोनेला हवाई अड्डे पर आई थी।

मेरे गाल पर चुंबन लेते हुए उसने कहा, "तुम जा रही हो, मुझे बेहद बुरा लग रहा है! दुबारा आओगी न! कहीं भूल तो नहीं जाओगी?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book