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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


बहरहाल, सबको सूखा-सूखा-सा ‘ग्रात्से' कहकर, मैं निकल पड़ी। दोनों पुलिस उँगलियों में पिस्तौल घुमाते-घुमाते गाड़ी की तरफ बढ़ चले। पीछे-पीछे में और आन्तोनेला चलते रहे।

आन्तोनेला ने फुसफुसाकर पूछा, “तुम्हें क्या आन्द्रियानो पर शक है?"

"हाँ, है।" मेरा सीधा-सपाट जवाब था।

मेरा हाथ पकड़कर कसकर दबाते हुए आन्तोनेला ने कहा, "आन्द्रिमानो भलामानस है। वह माफिया नहीं है, लेकिन हाँ, तुम जिस होटल में ठहरी हो, सुना है. वह किसी माफिया का है।"

"यह तुम क्या कहती हो?" मैं लगभग चीख उठी।

“अब, क्या करूँ, बताओ? पहले तो हमें इसकी जानकारी नहीं थी।"

"भला कोई मतलब होता है इसका? किसी और होटल का इंतज़ाम करो! अभी ही!"

आन्तोनेला ने लंबी उसाँस भरकर कहा, “अब और कोई होटल क्या माफिया का नहीं है, यह कैसे पता चले? लेकिन मैं वादा करती हूँ कि कल ही होटल बदल दूँगी। बस, आज की रात किसी तरह गुज़ार लो।"

होटल पहुँचकर डर के मारे मेरे तन-बदन में झुरझुरी फैल गई। रिसेप्शनिस्ट की तरफ देखते हुए मेरा गला सूख आया। मैं खामोशी से अपने कमरे में चली आई। जो लोग इस होटल में ठहरे हैं, वे लोग क्या जानते हैं कि यह होटल माफिया लोगों का है? वे लोग क्या यह जानते हैं कि हर साल प्रायः दो सौ लोग का माफिया लोगों के हाथों खून होता है? क्या उन लोगों को जानकारी है कि ये लोग ड्रग का धंधा, औरतों का धंधा, हथियारों का धंधा, अपहरण-तमाम गैर-कानूनी काम कर रहे हैं? मुमकिन है, इसी होटल के किसी-किसी कमरे में इन लोगों की मीटिंगें होती हैं, इंसानों की हत्या का ब्लू-प्रिंट तैयार किया जाता है।

पूरी रात मुझे नींद नहीं आई। समूची रात भूमध्य सागर की लगातार रुलाई और सिसकियाँ सुनती रही।

सुबह-सुबह वे दोनों औरतें मुझे शहर दिखाने ले गईं। घनी-घनी जनसंकुल वस्तियाँ। प्लस्तर-भरे, टूटे-फूटे घर-मकान! इन कबूतरोंनुमा दरबों में भी इंसान बसते हैं। सबरीना ने होंठ विदोरकर बताया कि समूचे शहर में दो-दो चार-चार दिनों तक पाइप का पानी तक नहीं आता। यह भी यूरोप का ही कोई देश है, मुझे विश्वास नहीं होता। गंदी बस्तियों से गुजरकर हमारी गाड़ी शहर की बड़ी सड़क पर आ पड़ी। बैंकों के सामने पुलिस बंदूक ताने, पहरे पर तैनात! उनकी उँगलियाँ बंदूक की ट्रिगर पर! यूरोप के अन्य किसी देश में ऐसे भयावह दृश्य, मैंने नहीं देखे। अन्य किसी भी देश की सड़कों पर लोगों के हाथों में इतने-इतने कॉर्डलेस फोन और ब्रीफकेस भी नहीं देखे। फोन पर ये लोग किससे बातें करते हैं? और ब्रीफकेस लेकर कहाँ दौड़ते रहते हैं! ये माफिया तो नहीं हैं? 'पिसषो' कमाने के बाद, ये लोग किससे बतियाते हैं? पिसषो एक किस्म का चंदा है! चंदा देना, अनिवार्य नियम है। लगभग हर दुकान और रेस्तराँ मालिक को, माफिया लोगों को हर महीने चंदा देना पड़ता है। अगर न दें, तो किसी भी वक्त, बम मारकर, वे लोग दुकान उड़ा देते हैं।

हमारी गाड़ी एक खूबसूरत-से थियेटर के सामने आ रुकी।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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