जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
आन्द्रियानो वडी-वडी प्लेट में पित्जा लेकर हाजिर हई। किस्म-किसा की पित्जा! सभी ने पित्जा के प्रसंग में थोड़ी-थोड़ी जुवान खोली। मसलन पित्ज़ा बेहद लज़ीज़ बना है! इतनी सारी पित्ज़ा बनाई किसने?
मैंने पित्ज़ा के दो-एक निवाले काटकर कहा, “इसी सिसिली में माफिया की शुरुआत हुई! उन्नीसवीं सदी में! शुरू-शुरू में यह प्रचलन गाँवों में ही था। अब शहर में भी दाखिल हो गया है, है न?"
किसी ने भी 'हाँ' या 'ना' में सिर नहीं हिलाया।
"क्यों? पित्ज़ा खाते हुए मज़ा आ रहा है न?"
“हाँ, आ तो रहा है। मुझे जज फाल्कोने का ख्याल आ रहा है। सुना है, वे लंबे अर्से तक माफिया के खिलाफ जंग करते रहे। अंत में, फाल्कोने, उनकी बीवी और दो जन पुलिस, जो उनकी गाड़ी में सवार थे, माफिया लोगों ने मार ही डाला! फात्कोने की जान लेने के कछ ही महीनों बाद, एक और जज, हाँ तो क्या नाम था उनका, हाँ, वोरसेलीना, उन्हें भी मार डाला। उस वक्त, बोरसेलीना अपनी माँ से मिलने जा रही थीं। है न? अच्छा, मैंने सुना है कि बोरसेलीना ने माफिया पर एक किताव भी लिखी है? वह किताव पढ़ने का मेरा बेहद मन है। उसका कोई अंग्रेजी अनुवाद मिल सकता है?"
मैंने यह सवाल सीधे-सीधे आन्द्रियानो की आँखों में झाँककर पूछा। उसने पलकें झुकाकर दाहिने-बाएँ सिर हिला दिया।
उसने बिल्कुल अलग ही प्रसंग छेड़ दिया, “आज भयंकर गर्मी है न? तुम लोगों का देश तो काफी गर्म देश है। इस गर्मी में तुम्हें खास परेशानी नहीं हो रही होगी! क्यों?"
"नहीं, तो! कोई परेशानी नहीं है।"
फाल्कोने की किताब का कोई अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध है या नहीं, इस बारे में कोई कुछ बोला क्यों नहीं? मुझे बेहद उलझन होती रही। तो क्या मैंने जो राय बनाई है कि ये लोग माफिया के लोग ही हैं, यही सच है! और अगर यह सच है, तो आन्तोनेला मुझे इस घर में क्यों ले आई? सिसिलियन लोगों का ऐश्वर्य दिखाने? अरे, बुद्ध कहीं की! धन-दौलत और ऐश्वर्य मैंने ढेरों देखा है। इन सब चकाचौंध से मेरा मन नहीं भरता।
उस वक्त तक सबका खाना-पीना खत्म नहीं हुआ था।
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