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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


पूरे दो घंटे बाद वे लड़कियाँ आ पहुँची। आन्तोनेला और सबरीना! सिसिली कैसा शहर है और यहाँ दर्शनीय क्या है, लोग-बाग कैसे हैं, संस्कृति क्या है-इन सव विषयों पर लंबी गपशप हुई!

"भूमध्य सागर में जितने सारे द्वीप हैं, सिसिली उनमें सबसे बड़ा है।"

"अच्छा?''

"हाँ! चूँकि यह देखने में त्रिकोण है, इसलिए ग्रीक लोगों के जमाने में इसे ट्राइनेकरिया कहते थे।''

“आग्नेयगिरि से भरपूर होने की वजह से इस द्वीप ने भूकंप भी कम नहीं झेले। इसी सदी में ही दो-दो वार काफी धंस गया।" एक ने बताया।

“दुःख तो इस द्वीप ने विदेशी के शासनकाल में झेला है। पहले ग्रीक, सैरासेन्स, रोमन, वाइजेन्टाइन, नॉर्मन और उसके वाद, स्पेनिश।" दूसरी ने बताया।

“स्पैनिश लोग कितने साल रहे?"

"तुम्हें शायद यकीन न आए, तीन सौ साल से भी ज्यादा!" एक ने जवाब दिया।

"इस नजरिए से हम थोड़ा-बहुत खुशनसीब थे। ब्रिटिश लोग हमें दो सौ साल जलाते रहे। सुनो, सिसिलियन वेस्पर्स-एक मशहूर घटना हुई थी न? वह कौन-सी घटना थी। जरा बताओ न!" बाकायदा उत्तेजित होकर मैंने ईव साँ लॅरों के दिल में आग भड़काई।

ऑन्तोनेला हँस पड़ी। सवरीना भी!

दोनों ने धाराप्रवाह बोलना शुरू किया।

“यह घटना तेरहवीं सदी की है। सेंट लुई के भाई सार्लस वन, उन दिनों पोप का बढ़ावा पाकर, सिसिली पर राज करने आया, लेकिन सिसिलियन लोगों को वह फूटी आँखों नहीं सुहाता था। उन फ्रेंच लोगों को, जो सिसिली भाषा बोलने में हकलाते थे, सिसिलियन लोग उन लोगों को 'तार्ताग्लिओनी' यानी 'हकला' बुलाते थे। ईस्टर के बाद एक सोमवार को अचानक गिरजाघर की घंटी बज उठी। चंद फ्रेंच लोगों ने सांतो स्पिरितो गिरजाघर में किसी लड़की की वेइज्जती की थी। सिसिलियन लोग आग बबूला हो उठे और उस दिन फ्रेंच लोगों पर कत्लेआम मचा दिया। गवर्नर की कोठी का भी घेराव किया गया।"

"वा-ह! सिसिलियन लोग तो वाकई काफी साहसी हैं।"

"बेशक! बेशक!" आन्तोनेला ने ठुड्डी ऊँची करके कहा।

आन्तोनेला और सबरीना ने बिस्तर पर बैठे-बैठे. कभी अधलेटे. कभी परी तरह लेटे-लेटे अच्छे-बुरे की व्याख्या दे डाली। उन दोनों की आँखों की पुतलियों में सिसिली नामक इस द्वीप के लिए गज़ब का प्यार झलक उठा। दरअसल सिसिली इटली का सगा होते हुए भी जैसे कोई न हो। जैसे वह अकेला दुःखी देश हो। मैं आन्तोनेला की शांत-उजली आँखों की तरफ मुग्ध भाव से देखती रही।

सबरीना ने हड़बड़ी मचाई, 'चल! चल!"

हाँ, रात की दावत पर जाने का वक्त हो चुका था। हालाँकि मुझे खास भूख नहीं लगी थी, लेकिन सिसिलियन लोगों के घर-द्वार कैसे होते हैं, आँगन में कैसे-कैसे फूल खिलते हैं। यह देखने की चाह लिए मैं रवाना हो गई। ला मॅनडेला में सैलानियों की भीड़! फुटपाथों पर तरह-तरह की चीजें लेकर गरीब सिसिलियन लोग बैठे हुए! सुनहरे बालों वाले औरत-मर्द, एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले 'चलते-चलते' उन चीज़ों पर क्या ख़ास नज़र भी डालते थे या ठिठक जाते थे? मुझे तो ऐसा नहीं लगा। दरअसल, वे लोग रंग बदलने आते हैं। आजकल एक फैशन चल पड़ा है। गर्मी के मौसम में अपने बदन का रंग ताँबे जैसा बनाना। एक जमाना था, जब यूरोपीय लोग अपने बदन का गोरा रंग टिकाए रखने के लिए बेचैन रहते थे, क्योंकि गरीब मल्लाहों या किसानों का रंग ताम्रवर्णी होता था, जो धूप में जलते हुए काम-काज करते थे। लेकिन इन दिनों गर्मी में बदन का रंग ताम्रवर्णी बनाने का मतलब है बेहद पैसेवालों में गिना जाना। जिन लोगों के पास दौलत होती है, वे लोग छुट्टियों में विदेश-सफर पर जाते हैं, समुंदर-किनारे सूर्य स्नान करके, अपना रंग ताम्रवर्णी बनाते हैं। आजकल यूरोप में गर्मी के मौसम में अपना रंग ताम्रवर्णी दिखाने का अजब फैशन चल पड़ा है।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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