जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
ऐन उसी वक्त, दो शांत-गंभीर औरतें लगभग भागते हुए मेरे करीब आ पहुँची, "हम तुम्हें लेने आई हैं। मेरा नाम आन्तोनेला है और इसका...।"
"नाम-वाम वाद में बताना! दो बदमाश मेरे पीछे पड़े हैं। पहले उनसे छुटकारा दिलाओ। आखिर वे दोनों चाहते क्या हैं?" मैंने हाँफते-हाँफते कहा।
वे दोनों औरतें भी आतंकित हो उठीं। उन दोनों ने पीछे-पीछे चलते हुए, उन दोनों छोकरों से कुछ कहा। बस, अपनी कमर में खोंसी हुई पिस्तौल निकालकर वे दोनों छोकरे हवाई अड्डे में मौजूद भीड़ को चौंकाते हुए किसी का खून करने के लिए, इधर-उधर दौड़ पड़े। वह माज़रा कुछ मेरी समझ में नहीं आया।
उन दोनों लड़कियों को कसकर थामते हुए कहा, “देखो, देखो, उन दोनों के हाथ में पिस्तौल भी है। ये दोनों जाने कब से मेरे पीछे-पीछे...।"
वे दोनों औरतें हँस पड़ीं, “ये दोनों तो तुम्हारे पहरेदार...पुलिस हैं।"
“पुलिस? ये दोनों पुलिस हैं?''
मेरे विस्मय का टिकाना नहीं रहा। ये लोग पलिस कैसे हो सकते हैं? ये इक्कीस-वाईस वर्ष के छोकरे! फुक्-फुक् करके सिगरेट का धुंआँ छोड़ रहे हैं। हाथ में पिस्तौल ताने दौड़ लगा रहे हैं। यूरोप में पहरेदार पुलिस, मैं पिछले साल-भर से देखती आ रही हूँ, ऐसे लफंगे बालक तो मुझे कभी नज़र नहीं आए।।
"तो इन लोगों ने पिस्तौल क्यों निकाल लिया?" मेरा विस्मय अभी भी नहीं मिटा था।
"तुमने ही तो कहा कि दो बदमाश तुम्हारे पीछे लगे हैं? ये दोनों बदमाशों को खोज रहे हैं।"
अपने-अपने वक्से-पिटारे लेने के लिए वहाँ मछली-वाजार जैसी भीड़! भयानक आवाजें! हवाई अड्डे के फर्श पर सिगरेट के फिल्टर, मुड़े-तुड़े कागज, थूक वगैरह बिखरे हुए। शुक्र है कि इस देश में पान जैसी कोई चीज़ नहीं है, वरना यहाँ की दीवारें भी पान की पीक से लाल नज़र आतीं। धूम्रपान-निषेध के निशान और डस्टबिन जैसी चंद निरीह सामग्रियाँ लटकती हुई, लेकिन उनकी तरफ पलटकर भी नहीं देखते। करीब घंटे-भर इंतजार के बाद, मेरा सूटकेस आया। शुक्र है, आ तो गया। मैंने तो उम्मीद प्रायः छोड़ ही दी थी। मैंने देखा, श्रीलंका के कुछ लोग उस मछली बाजार में चीख-चिल्ला रहे हैं। मैंने सुना है, अनगिनत तमिल लोग भागकर इटली आ गए हैं। अब सिसिली की तरफ भी बढ़ रहे हैं। वे लोग कहीं माफिया दल से तो नहीं भिड़ रहे हैं? किसी-किसी का चेहरा देखकर बाकायदा आशंका जाग उठती है। अपना सूटकेस लेकर मैं बाहर निकल ही रही थी कि कस्टम का एक अधिकारी मेरी राह रोककर खड़ा हो गया, लेकिन उसी वक्त वे दोनों छोकरे पुलिस अचानक न जाने कहाँ से प्रकट हो गए और झपट्टा मारकर मुझे उठा ले गए। पीछे से वह कस्टम अधिकारी फिकरे कसने लगा। हर फिकरे का बिल्कुल अलग ही अर्थ होता है। बिल्कुल भिन्न भाषा में होने के बावजूद, सही-सही अंदाजा लग जाता है। दोनों पुलिस ने अपनी शर्ट उठाकर कमर की बेल्ट से झूलता हुआ आई डी कार्ड दूर से ही दिखाया, मानो वह लुंगी उठाकर, अपना गुप्तांग दिखा रहा हो। बचपन में मैंने देखा है कि बदमाश छोकरों से मार-पीटकर लग जाती थी, तो वे लोग यही करते थे। खासकर वे लफंगे छोकरे, जो बदन की ताकत के ज़ोर पर नहीं जीत पाते, उन लोगों के लिए गुप्तांग आसरा-भरोसा होता है। बहरहाल अब मुझे उन दोनों की गाड़ी में सवार होना था। पता नहीं, ये दोनों सच ही पुलिस के आदमी हैं या माफिया के!
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