जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
लेकिन मैंने देखा, अभी भी देख रही हूँ, मैं वाकई बुद्धू बन गई, आज भी बन रही हूँ कि जब भी मैं इस्लाम की आलोचना करती हूँ, पश्चिम के वर्णवाद-विरोधी, वामपंथी बुद्धिजीवी, जिनसे मुझे समर्थन मिलना चाहिए था, वे लोग ही मेरे प्रति मारमुखी हो उठते हैं। वैसे यह सच है कि मैं खुद वर्णवाद, पूँजीवाद, विपमता वगैरह के खिलाफ प्रतिवाद करती रही हूँ, फिर भी वे लोग मेरे ही खिलाफ़ अडिग खड़े हैं। जो काम ये लोग पश्चिम में कर रहे हैं, मैं वही काम पूर्व में कर रही हूँ। फिर विरोध कहाँ है? वे लोग धर्म नहीं मानते, मैं भी नहीं मानती। वे लोग पश्चिम के प्रमुख धर्म, ईसाई धर्म की समालोचना करते हैं, मैं सभी धर्मों की समालोचना करती हूँ। बांग्लादेश के सर्वोपरि धर्म, इस्लाम की आलोचना करती हूँ। समाज को धर्ममुक्त, कलुषमुक्त, झूटमुक्त करने के लिए ही न ! चूँकि पश्चिम में अल्पसंख्यक लोग वर्णवाद के शिकार हैं, इसलिए वे लोग अल्पसंख्यक तबके के साथ खड़े हुए हैं! इसी तरह मैं भी बांग्लादेश के अल्पसंख्यक के साथ खड़ी हुई, क्योंकि वे लोग बहुसंख्यक-कट्टरवाद के हमले के शिकार हैं। लेकिन, हम दोनों में फर्क यह है कि अल्पसंख्यक का समर्थन करते हुए, मैं अल्पसंख्यक धर्म का समर्थन नहीं करती। उस धर्म के विभिन्न कुसंस्कार और अनाचार का समर्थन मैं नहीं करती, बल्कि जिस भाषा में बहुसंख्यकों के धर्म की आलोचना या निंदा करती हूँ, बिल्कुल उसी भाषा में अल्पसंख्यकों के धर्म की भी करती हूँ! सुविधापरस्त राजनीतिज्ञ की तरह, असुविधा में पड़कर मैं अपनी जुबान पर ताला नहीं जड़ लेती। हालाँकि मैं उन लोगों की समानधर्मी हूँ, इसके बावजूद पश्चिम का बुद्धिजीवी वर्ग मेरे खिलाफ जहर उगलने में दुविधा नहीं करते। विरोध कहाँ है? खैर, विरोध तो है। उन लोगों का तर्क है, चूंकि बहुसंख्यक संप्रदाय के अधिकांश लोग वर्णवादी हैं, चूँकि ये लोग पूर्वी संस्कृति की तुलना में पश्चिमी संस्कृति को ज़्यादा बेहतर मानते हैं, इसलिए अल्पसंख्यक की आलोचना करने से सामूहिक मुसीबत हो सकती है। इस वजह से उग्र दक्षिणपंथी पार्टी को बढ़ावा मिलेगा, निओ नाज़ी पार्टी और अल्पसंख्यक लोगों को ख़त्म करके सिर्फ गोरों के लिए गोरों का राज्य बनाने का सलीव, अपने सिर पर उठाए नाचने लगेंगे। मैं यह समस्या समझती हूँ, लेकिन अल्पसंख्यक के पक्ष में खड़े होने के लिए अगर अल्पसंख्यक के धर्म का भी समर्थन करना पड़े तो समझो सर्वनाश! सर्वनाश वाम बुद्धिजीवी लोगों का नहीं, उन अल्पसंख्यक लोगों का ही है। गोत्र, धर्म से चिपके, जिस तरह जी रहे हैं, उसी तरह अशिक्षा और अँधेरे में जीते रहेंगे। वे लोग उजाले का मुँह कभी भी नहीं देख सकेंगे। कट्टरवाद फुफकारते हुए बढ़ता जाएगा और सिर्फ अपने ही संप्रदाय के लोगों को ही नहीं, समूचे समाज, समूचे देश को ध्वंस कर देगा। अपनी राजनीतिक सुविधा के लिए तुम कट्टरवाद का पालन-पोषण मत करो, बच्चे !
मैं जिस भी देश में जाती हूँ, उस देश की राजनीतिक, सामाजिक, नैतिक, लैंगिक समस्याओं की गहराई में आमंत्रित करके, मुझे खोल-खोलकर दिखाया जाता है, मुझे उनकी गंभीरता में लिप्त कर दिया जाता है और मुझे प्रतिवाद करने के लिए उकसाया जाता है। कनाडा में किडवेक अंचल अलग होना चाहता है। किइवेक के मंत्री समुदाय विच्छिन्नतावादी विदग्ध कलाकार, साहित्यकार और राजनैतिक हस्तियाँ सभी अलगाव चाहते हैं। मंत्री समूह ने अंग्रेज़ी भापियों के खिलाफ विस्तृत आक्षेप मढ़ते हुए मुझ यह समझाया कि कनाडा से फ्रेंचभाषी-बहुल किइवेक को अगर न हटाया गया तो किइवेक का अस्तित्व मुसीबत में पड़ जाएगा। अब मुझे इसके अस्तित्व के पक्ष में कम-से-कम कुछ कहना होगा। मुझे उनके आंदोलन में शामिल होना होगा। में ठहरी वाहरी इंसान, लेकिन मैंने गौर किया कि लोग दुनिया के हर आंदोलन, हर प्रतिवाद, हर संघर्ष में मुझे अपने करीव पाना चाहते हैं। यह मेरे लिए बहुत बड़ा प्राप्य है! बेशक, यह बहत वड़ा हासिल है! यह मुझे किसी-न-किसी तरीके से, उनके दल का अंतरंग बना देता है। फ्रांस में कुल तीन प्रतिशत औरतें, फ्रांसीसी संसद में शामिल हैं। इसलिए फ्रेंच औरतें आंदोलन कर रही हैं, ताकि इस तीन प्रतिशत को बढ़ाया जाए। अब यह प्रस्ताव दिया गया है कि चुनाव से पहले तमाम राजनैतिक दल अपने चुनावी घोषणा-पत्र में पचास प्रतिशत औरतों का ही चुनाव करें। इसे कानून बना दिया जाए। समूचे यूरोप में महिलाओं की तनखाह अपेक्षाकृत कम है। एक जैसे काम के लिए मर्दो को ज़्यादा तनखाह मिलती है। इस व्यवस्था के खिलाफ विरोध की आवाज़ उठाने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। मेरी आवाज़ को वे लोग प्रतिवाद का प्रतीक मान बैठे हैं। दुनिया की नारी समस्या से मुझे जोड़कर वे लोग अपने आंदोलन को और ज़्यादा शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। स्वीडन की तरह स्वर्ग में भी अविश्वसनीय कांड होता है। स्वीडन की संसद में पचास प्रतिशत महिलाएँ हैं, लेकिन इससे क्या होता है? प्रशासन, वाणिज्य में औरतों की संख्या नगण्य है। औरतों के हाथ में राजनैतिक क्षमता तो है, मगर धन नहीं है। अधिकांश औरतें कम्पनी की कर्मचारी हैं, मालकिन नहीं! वहाँ एक और शर्मनाक घटना भी आम है! इस स्वीडन में हर हफ्ते एक औरत की हत्या हो जाती है। हत्या अक्सर उनके पति ही करते हैं। यह सफ़ाई देने की कोशिश की जाती है कि पति दारू के नशे में था, इसलिए उससे खून हो गया, लेकिन नारी संगठनों ने यह साबित किया है कि इसके पीछे शराब कोई वजह नहीं होती। फिर क्या वजह है? कोई मनोवैज्ञानिक वजह? नहीं, समाजशास्त्रीय समस्या है।
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