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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


दीवारों के करीव ही चेक प्वाइंट चार्ली खुल गए हैं। पूरब का समाजतंत्र किस ढंग से इंसानों को उत्पीड़ित करता था, इसी वारे में गप-शप जारी रहती है। कोई इस देश से सेंध लगाकर उस देश की तरफ भाग गया, कोई अपने को बक्से में बंद करके अपने को इस तरफ ले आया, कोई गाड़ी की पूँछ में घुसकर इधर चला आया। यानी उस पार के लोग नर्क से निकलकर स्वर्ग में आने के लिए किस कदर आकुल-व्याकुल थे। नर्क के दरवाजे पर खड़े दरबानों का झुंड, किसी के आने-जाने में किस क़दर सख्ती वरतता था, उसका भी वयान यहाँ कागजों में दर्ज है।

जिस दिन कैनेडी की मौत हुई, जिस इंसान ने पश्चिम में आकर इसी दीवार के करीब, टूटे-फूटे उच्चारण में कहा था-"इख विन आइन वर्लिनर", जिसने इस दीवार के विरुद्ध वक्तव्य दिया था, उसी कैनेडी की मौत पर, जैसे पश्चिम के घर-घर में मोमवत्तियाँ जलाई गई थीं, उधर पूरब की खिड़कियों पर भी मोमबत्तियाँ जल उठी थीं। हाँ, इंसान एक होना चाहता था। बाप-चाचा ने एक होने की कोशिश की थी, दो बहनों ने एक होने की चाह जतायी थी। एक होने के लिए, जैसे पश्चिम ने उछल-कूद मचाई थी, पूरब में भी उछल-कूद मची थी। उछलते-कूदते ही फावड़े-कुल्हाड़ी से दीवार तोड़कर चकनाचूर कर दिया गया यानी सारा कुछ मिलाकर एक कर दिया गया। अव बताओ, अब किस हाल में हो तुम लोग? पूरब और पश्चिम? जवाब है, हम लोगों में पटरी नहीं बैठ रही है। किस बारे में पटरी नहीं बैठ रही है? जवाब है, मन नहीं मिलता और तुम लोग? पूरब के लोगों की बेरोजगारी और बेवकूफी मिटाने के लिए, हम लोग टैक्स दिए जा रहे हैं। यह बात विल्कुल सच है। सचमुच, पूरब की तरक्की के लिए, पश्चिम के लोगों की तनखाह में से रुपए काटे जा रहे हैं। पश्चिम वालों को अगर इसका अंदाज़ा होता कि इसका यह नतीज़ा निकलेगा तो वे लोग उसी रात राजमिस्त्री लगाकर दबारा दीवार खडी कर देते और उसे दो बीघा और ऊँची कर देते। इस देश को जैसे और कोई काम नहीं है, राजी-खुशी दस-दस मन बोझ अपनी पीठ पर लादे फिरें। मैंने घूम-घूमकर पूरब की हालत देखी है, पूर्वी जर्मनी का अधिकांश हिस्सा देख चुकी हूँ। मुझे अचानक ही ऐसा लगा है कि मैं शायद तीसरी दुनिया के किसी देश में आ पहुँची हूँ। बदरंग घर-मकान झुर-झुराकर झर रहे हैं। सड़कों पर ट्राबन्ट नाम की कुख्यात गाड़ियों की भीड़! जो गाड़ी सन् पचास के दशक में आम जनता के लिए, सस्ते दामों में तैयार की गई थी। ट्रावन्ट का नाम सुनकर पश्चिमी यूरोप के लोग पहले पाँच मिनट हँस लेते हैं, उसके बाद वे उस बारे में बात करते हैं। ट्रावन्ट अव जादूघर में संरक्षित होने वाला है। बर्लिन के तमाम जादूघर भी मैं घूम-घूमकर देख चुकी हूँ। पैरिस की तरह बर्लिन भी जादूघरों का शहर है। छोटे-बड़े-मंझोले जादूघरों को मिलाकर अगर हिसाब लगाया जाए तो बर्लिन में लगभग दो सौ जादूघर मौजूद हैं। पश्चिम जर्मनी के जादूघर के इतिहास में जैसे लेनिन मौजूद है, वैसे ही हिटलर भी! पूर्व में पैरागामोन जादूघर! ऐसा लगता है कि पूर्व का समूचा का समूचा एक्रोपोलिस उठाकर वहाँ लाकर संरक्षित कर दिया गया है। बडे जादूघर, मिस्री, जादूघर, भारतीय जादूघर ! द्वितीय महायुद्ध का स्मृति-गृह! यहाँ तक कि यौन जादूघर भी स्थित है। यौन जादूघर तो अजूवा है! बिआटे ऊसे नामक एक जर्मन महिला के प्रयास से निर्मित यह जादूघर! यौन-कला इतनी खूबसूरत कला भी है, इस जादूघर में यही दर्शाया गया है। प्राचीन भारत, चीन, जापान और अन्य देशों की यौन-कला की प्रदर्शनी! निचले तल में यौन-सामग्रियों की दुकान और छोटे-छोटे कमरे, जहाँ पोर्नो फिल्म के वीडिओ चलते रहते हैं। फ़िल्में देखो, हस्तमैथुन करो या अपनी पसंद को साथ लेकर किसी कमरे में घुस जाओ! शरीर जो भी चाहे या माँगे, वही करो।

सिर्फ जादूघर ही नहीं, बर्लिन के इस छोर से उस छोर तक घूमते-फिरते मैं नहीं थकी। टियेरगारटेन में मैं बिल्कुल गुम ही हो गई; शहर से बाहर, पॅट्सडम राजप्रासाद, सां सूसी के आँगन में चाय-पान का गोल कमरा देखकर मैं उच्छ्वसित हो उठी! युद्ध के बाद दुनिया में क्या होगा या नहीं होगा, इस बारे में फैसले के लिए, ट्रमैन, चर्चिल और स्टालिन ने जहाँ मीटिंग की थी, पॅट्सडम के उस मीटिंग-हॉल के सामने आकर ठिठक गई।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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