जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
अगली सुबह मुझे थूरिनजन जाना है! मुझे ख़बर मिली है कि वहाँ के प्रधानमंत्री मेरा इंतज़ार कर रहे हैं! उनके साथ नाश्ता करके मुझे बाइमार के लिए रवाना होना है। वहाँ ग्वोटो हाउस में लंच और शाम को गपशप! लेकिन नोरबर्ट का जहाज थूरिनजन में उतर नहीं पाया। पम्प में अचानक कोई गड़बड़ी पैदा हो गई थी, हमें ड्रेसडेन लौट आना पड़ा। सुरक्षाकर्मी हर वक्त ही मेरे साथ रहते हैं। यह जर्मन पुलिस मुझे निहायत बद्ध-वद्ध लगती है। चोरी-छिपे क्लिक-क्लिक करके मेरी तस्वीरें लेती रहती है, लेकिन जब मैं कहती हूँ कि करीब आकर मेरी तस्वीरें लो तो वे खुशी से थरथरा उठते हैं। पार्लियामेंट के वाइस प्रेसीडेंट का हाथ भी मैंने देखा था कि अनगिनत फोटोग्राफरों के सामने मुझे इनाम देते हुए काँप रहा था। ऐसे ही, जब कुक्सहेवेन की प्रेस कान्फ्रेंस में वह दुभाषिया लड़की अंग्रेजी से जर्मन के अनुवाद के लिए आई थी, उसकी आवाज़ इस कदर काँप रही थी कि अंत में उससे अनुवाद तक करते नहीं वना। बाद में हान्स से काम चलाना पड़ा। नास्त शहर में भी दुभाषिए की स्नायु-दुर्बलता पर भी मेरी नज़र पड़ी थी और मैं? छोटे-से देश की, छोटी-सी हस्ती! मुझे युद्ध, सूखा, बाढ़, रक्तपात देखने की आदत है। दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे देखकर मेरी नसें कँपकँपा उठे या कमज़ोर पड़ जाएँ। ड्रेसडेन हवाई अड्डे से, लुफथान्सा में सवार होकर मैं स्टटगार्ड होते हुए स्टॉकहोम लौट आई। नोरबर्ट और बाकी लोग कुक्सहेवेन रवाना हो गए।
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