जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
मैं हिल्टन होटल में ठहरी थी। दोपहर को जब मैं लंच के लिए निकली तो देखा, गिरजाघर देखने वालों की भीड़ लगी हुई है। इक्कीसवीं सदी की लगभग शुरुआत तक आकर गिरजाघर खड़े किए जा रहे हैं। यानी सभ्यता का नमूना यही है। धर्म की इमारतें खड़ी करना । देश में बेकार लोगों को बेकार रखकर मुक्तिवादी लोग गिरजे बना रहे हैं। मैं अंदर-ही-अंदर दर्द से कसक उठी। मुझे इरीना की याद आ गई। रूसी औरत! चार वर्ष जेल में थी। वह कम्युनिस्ट के खिलाफ कविताएँ लिखती थी।
उससे सवाल किया गया, “तुम क्या नारीवादी हो?"
“नहीं, मैं क्रिश्चियन हूँ। मैं रूसी आर्थोडक्स चर्च की सदस्या हूँ।" इरीना ने जवाव दिया।
लंदन के नेशनल थियेटर में उसका यह जवाब सुनकर मैं आतंकित हो उठी थी। यही है कम्युनिस्ट विरोधी आंदोलन की नेता? वे इंसान नहीं, क्रिश्चियन हैं। बाद में लंच के समय इरीना के पति के साथ विश्वास के बारे में, इरीना के पति से बातचीत हुई। सोशलिज़्म या कैपिटलिज्म में विश्वास का ज़िक्र छिड़ गया।
उन्होंने काफी अहंकार-भरे लहजे में कहा, "मैं ईसा मसीह पर विश्वास करता हूँ, और किसी में नहीं।"
उस वक्त मेरे साथ ब्रिटिश पार्लियामेंट की लेबर पार्टी की नेता भी मौजूद थीं। हम दोनों ने जोरदार ठहाका लगाया। मुझे हँसी ज़रूर आ गई, लेकिन ईसा मसीह बनाम कम्युनिज्म का मुद्दा, मेरे दिमाग में कहीं घर कर गया। सेक्सोनिया राज्य मुझे फिर उसी सवाल की तरफ वापस लौटा ले गया।
सरकारी प्रोटोकोल अधिकारी सुबह से ही मेरे पीछे-पीछे चल रहे थे। वे मुझे ड्रेसडन दिखाते-दिखाते, नेशनल म्यूजियम ले गए। म्यूज़ियम के संचालक दरवाजे पर ही खड़े थे। वे घूम-घूमकर मुझे म्यूजियम के वेशक़ीती संग्रह दिखाते रहे मानो वहाँ हीरे-मोती-पन्ना-चुन्नियों का मेला लगा हो। एशिया-अफ्रीका से चारी-डकैती करके लाए हुए रत्न यूरोप के राजा-शाहंशाह अपने मुकुट में जड़ लेते थे या गले, वाँहों, उँगलियों पर पहना करते थे। राजाओं के हीरे-मोतियों के अलंकार देखते-देखते, मैं एक विशाल रत्नजड़ित दरवार देखकर ठिठक गई। विशाल राजदरवार! औरंगजेब के जन्म दिन का महोत्सव। सुनने में आया कि इसे तैयार करने में कारीगरों को दस वर्ष का समय लगा था। हाथी-घोड़ों पर सवार मेहमानों का आगमन! काले-कलूटे नेटिव भारतीय माल-सामान ढोते हुए! पंखे झलते हुए! स्वयं औरंगज़ेव सिंहासन पर आसीन! नज़राने पेश किए जा रहे हैं! आर्यों और अनार्यों की भीड़! मेरे मन में यह सवाल जाग उठा कि भारत का एक बुरे सम्राट, औरंगजेब के जन्मोत्सव को लेकर, इतनी दूर, इस ड्रेसडेन नामक छोटे-से शहर में इतनी धूम-धाम क्यों? मेरा ख़याल है, राजा-महाराजा-शासक शायद सभी देशों के शासकों का ख़ातिर-सम्मान करते हैं; धूम-धाम से उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। म्यूज़ियम के गोल्डेन बुक में दस्तखत करने के लिए संसद भवन जाना पड़ा। वहाँ गोल्डेन बुक में दस्तख़त करने के बाद संसद के वाइस प्रेसीडेंट ने मेरा अभिनंदन किया। जी हाँ, राष्ट्रीय अतिथियों का यहाँ संसद की तरफ से अभिनंदन किया जाता है। विशाल टेबल के सामने बैठकर राजनैतिक मुद्दों पर लंबी-चौड़ी बातचीत देर तक चली। जर्मनी की राजनीति को घोल-घोलकर, ज़ोर-ज़बर्दस्ती पिलाने का इंतज़ाम किया जा रहा है। मैं परम आग्रह से इस शिक्षा में अपना ध्यान केंद्रित किए रही। सेक्सोनिया के दरवाजे मेरे लिए खुले हुए हैं। मुझसे मिलकर उन लोगों को बेहद खुशी हुई है। वगैरह-वगैरह! वहाँ से आने के पहले, नोरबर्ट ने वाइस प्रेसीडेंट से जर्मन भाषा में कुछ कहा। बाद में मैंने जाना कि उसने वाइस प्रेसीडेंट से कहा- "इस तरह सिर्फ जुबानी सहयोग को सहयोग नहीं कहा जा सकता। तसलीमा के लिए ठोस कुछ करें।"
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