जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
उसने रोते-रोते ही कहा, “यहाँ मुझसे पल-भर भी खड़ा नहीं हुआ जा रहा है। तुम्हें मैं प्यार करती हूँ।'' इतना कहकर उसने मेरे गालों को चूमा और आँसू पोंछते-पोंछते, वहाँ से चली गई।
मैं भी ऐसे पलों में अपने आँसू नहीं रोक पाती। मेरे अंदर भी ज़रूर कुछ चोरी-छिपे उमड़ता-घुमड़ता रहता है। क्या बादल? हाँ, सिर्फ अहसास-भर से झरने लगती हूँ। शायद यही होता है! या मैं कोई नदी हूँ, पानी देखते ही उफन उठती हूँ।
फोकस कार्यालय से मुझे किसी बड़े रेस्तराँ में ले जाया गया। वहाँ भी मेरे सम्मान में लंबा-चौड़ा डिनर आयोजित किया गया था। मैंने एक किताव पर 'प्यार' लिखकर, नोरवर्ट को भेंट की। वह अत्यंत खुश हो गया। उसे क्या अंदाज़ा है कि मैं थोड़ा-थोड़ा करके उसे प्यार करने लगी हूँ? मेरा दिल वेतरह चाहता है कि वह आए और मेरे पास ही बैठे, लेकिन मेरी अगल-बगल 'फोकस' के संचालक वैठे रहते हैं। वे लोग मेरे 'होस्ट' हैं, मेरे आतिथ्य का दायित्व निभाते हैं। वे लोग भला यह आसन क्यों छोड़ने लगे? डिनर निबट जाने के बाद शेरटन की लॉबी में फिर आधी रात तक अड्डेबाज़ी! नोरबर्ट हर पल मेरे साथ! मुझसे सटकर बैठा हुआ!
तानिया प्रकाशन के बारे में मुझसे ज़रूरी बातचीत निबटाकर, हमबुर्ग लौट गई। सुबह-सवेरे मैं दुबारा नोरबर्ट के जहाज में! इस बार मेरी यात्रा पूर्वी जर्मनी की तरफ! विमान से उतरते ही मैंने देखा, हॉर्न समेत आठ-आठ गाड़ियाँ मेरे इंतज़ार में खड़ी हैं! गाड़ी से टीवी स्टेशन-जी.डी.एफ.! वहाँ से माइंज वहाँ तीन-तीन इंटरव्यू! उनमें कोई-कोई कार्यक्रम 'लाइव' था। वहाँ से गवर्नमेंट हाउस! वहाँ गृहमंत्री मेरे इंतजार! नाम हेन्ज एगारट। सेक्सोनियर के लोकप्रिय नेता, कभी गिरजाघर के पादरी थे। पादरियों ने ही कम्युनिस्ट के खिलाफ आंदोलन किया था। गृहमंत्री कोट-टाई में नहीं थे। उन्होंने प्रोटोकोल नहीं माना। मुमकिन है, कम्युनिस्ट ज़माने में वे आम जिंदगी के अभ्यस्त हो चुके थे और वह आदत अभी तक नहीं गई। जर्मनी की गद्दी पर आसीन 43 प्रतिशत क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक ने, 7 प्रतिशत लिबरल पार्टी से हाथ मिलाया और सोशल डेमोक्रेटिक को हटा दिया। जितने भी प्रभावशाली नेता हैं, वे सब क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं। हालाँकि क्लाउस किनकेल लिबरल पार्टी के हैं। सेक्सोनिया में 13 प्रतिशत कम्युनिस्ट मौजूद हैं। बाकी अधिकांश क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं। इन क्रिश्चियन लोगों से बातचीत करते हुए मुझे उलझन हो रही थी। गृहमंत्री ने क्रिश्चियन धर्म की काफी समालोचना भी की। वैसे इस धर्म में जो अच्छी-अच्छी बातें भी हैं, वह भी इशारे-इशारे में व्यक्त करने की कोशिश की। उन्होंने कम्युनिज्म, कट्टरवाद, तीसरी दुनिया वगैरह कई विषयों की चर्चा की। कुर्द लोगों के पक्ष में उन्होंने अब तक कौन-कौन से कार्य किए, उनकी क्या भूमिका रही है, यह बताने से वे नहीं चूके। कुर्यों का जिक्र छिड़ते ही, मैंने लेइला जाना का नाम लिया। वे तुका की संसद सदस्या हैं। चूंकि उन्होंने कुर्यों का समर्थन किया, इसलिए उन्हें पन्द्रह साल की सज़ा हो गई। अगर संभव हो तो उनकी मदद करें! सेक्सोनिया के लोगों ने अंग्रेजी नहीं सीखी, बल्कि रूसी भाषा सीखी है। अपनी मातृभापा के वाद. उनकी दूसरी भाषा रूसी है! हान्ज़ एगराट मुझसे बातचीत के लिए दुभापिए की मदद ले रहे थे। अच्छी अंग्रेज़ी जानने के बावजूद क्लाउस किनकेल ने भी दुभापिया नियुक्त किया था। सरकारी कामकाज, बातचीत, विचार-विमर्श, और वैचारिक आदान-प्रदान के लिए मातृभापा का ही प्रयोग चूँकि अनिवार्य है, इसलिए दुभाषिया लिया जाता है। सेक्सोनिया नामक देश में आखिर ऐसा क्या है? यहाँ 15 प्रतिशत लोग वरोजगार हैं! काँच की दुकानें तैयार की जा रही हैं। दुकानों में चमचमाती चीजें सजी हैं। प्लस्तर-झरे घर-मकानों में रंग-रोगन हो रहा है। हवाई अड्डे के सामने विशाल अहाते में रूसी फौज हुआ करती थी, अब विदा ले चुकी है। पश्चिमी जर्मनी के पहाड़ों पर भिन्न-भिन्न शक्तियाँ मौजूद थों और पूर्वी जर्मनी के पहाड़ों पर रूस! सेक्सानिया के लोगों ने बताया कि पाँच वर्ष पहले यहाँ शांतिपूर्ण आंदोलन हुआ! पीसफुल रिवाल्यूशन! दूसरे महायुद्ध में जो गिरजा टूट गया था, कम्युनिस्ट लोगों के चालीस वीय शासन में उस गिरजे का पुनर्निर्माण नहीं हुआ। अब समाजतंत्र के पतन के वाद गिरजे का निर्माण कार्य फिर शुरू हुआ है। यानी आंदोलन की परिणति यही है? गिरजा निर्माण! आजकल झुंड-के-झुंड पादरी क्षमता की दौड़ में आगे बढ़ गए हैं। यह आंदोलन शुरू कहाँ हुआ था? गिरजाघरों में! चरम धर्मपंथी ही इसके मूलसंवाहक थे। अत्याचार और दवाव के नाम पर क्या था? अपनी बात कहने की आज़ादी नहीं थी; देश के बाहर जाने की आजादी नहीं थी; कम्युनिस्टों का विरोध करने से पदोन्नति नहीं होती थी। स्कूलों में धर्मचर्चा निषिद्ध थी। और क्या? अतिशयता करने पर जेल में लूंस दिया जाता था। बेरोज़गारी की समस्या थी? नहीं, बेरोजगारी नहीं थी।
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