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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


अंतोयानेत मेरे जवाब का इंतज़ार करते रहे, लेकिन मैं खामोश रही।

"ठीक है, अगर पूरा-का-पूरा पुरस्कार उन्हें नहीं देना चाहती तो वह पुरस्कार उसके साथ कम-से-कम आधा-आधा बाँट लो।"

मुझे यह कहने में संकोच हुआ कि वह पुरस्कार में लेइला जाना को नहीं दूंगी। अपने को क्या मैं बहुत लालची लग रही हूँ? हाँ-लग तो रही हूँ, लेकिन जिस इंसान को जानती-पहचानती नहीं, उसका किस्सा सुनकर ही, इतना बड़ा फैसला ले लूँ, यह भी निहायत बेतुका लगा। लेइला जाना से मेरा कोई परिचय तक नहीं है! आज पहली बार मैं उसका नाम सुन रही थी। मुझे एक वड़ा पुरस्कार मिलने वाला है, महज़ एक फोन पाकर उसे खारिज कर दूँ, यह भी मुझे निहायत अद्भुत लगा।

"ठीक है, मैं ज़रा सोच लूँ!" यह कहकर मैंने फोन रख दिया।

उसके बाद मैंने क्रिश्चन बेस को फोन किया।

"अंतोयानेत फुक का इसरार है कि यह पुरस्कार में लेइला जाना को दे दूं।"

यह सुनते ही क्रिश्चन एकदम से चीख उठी, “पागल हुई हो? वह कमबखत तो तुम्हें पागल बना देगी। अपना इनाम तुम दूसरों को क्यों देने लगीं? यह कैसी फर्माइश?"

"जब इतना कह रही है, तो इनाम कम-से-कम बाँट लूँ।"

"क्यों-क्यों वाँट लो? तम्हारा इनाम है, तम हिस्सा-बाँट क्यों करोगी? अगर आधा-आधा करना होता, तो यूरोपीय पार्लियामेंट खुद वाँट देता। अब इसका बँटवारा करना या अपना इनाम किसी और को दे देने का मतलब है, तुम पार्लियामेंट के फैसले का सम्मान नहीं कर रही हो। तुम फुक की बकवास छोड़ो तो, वह बेहद स्वार्थी महिला है। यह जो तुम्हारी किताब छापी उसने, तुम्हें कुछ रुपए-पैसे दिए?"

“वह बता रही थी कि पुरस्कार के लिए मेरे नाम का सुझाव, उन्होंने ही दिया था।"

“मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि अगर वह कोई सुझाव देती तो क्या नाम है उसका...? हाँ, लेइला जाना के नाम का सुझाव देती। अब चूँकि पुरस्कार तुम्हें मिल गया है, तो अब वह खुद इसका क्रेडिट लेना चाहती है। तुम्हें याद नहीं, बेर्नार्ड पीभो के कार्यक्रम में तुम्हारी बगल में बैठने के लिए, वह कैसी बेअदब की तरह लालची हो उठी थी?"

क्रिश्चन ने मुझे बार-बार आगाह कर दिया, "अभी भी वक्त है, इंसान को पहचानना सीखो, तसलीमा! अब, बुद्ध मत बनो।"

क्रिश्चन ने बेहद सख्त बात कह दी, लेकिन लेइला जाना के बारे में जब मुझे और भी कुछेक बातों का पता चला तो उस पर बेहद तरस आया। उन्हें मैंने अपना पुरस्कार प्रदान नहीं किया, आधा-आधा बँटवारा भी नहीं किया, लेकिन मैंने अपने वक्तव्य में उनके बारे में उल्लेख ज़रूर किया। उनके प्रति मैंने अपना आकंठ समर्थन जताया। कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद यथारीति पत्रकार सम्मेलन मेरे इंतज़ार में था। प्रेसीडेंट क्लाउस हान्स मुझे पत्रकार सम्मेलन में लिवा ले गए।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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