जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
पुरस्कार-कार्यक्रम के दिन मुझे संड-मसंड अंगरक्षकों से लैस होकर स्ट्रसबर्ग के यूरोपीय पार्लियामेंट के अंदर दाखिल होना पड़ा। पोलिन ग्रीन दरवाजे पर ही मेरा इंतज़ार कर रहे थे। वे सोशलिस्ट पार्टी के प्रेसीडेंट हैं। खुद गोरे अंग्रेज हैं। उधर वे ब्रिटिश पार्लियामेंट के भी सदस्य हैं। मैं चलती गयी और मेरी अगल-बगल, कंधे पर भारी-भरकम कैमरे भी चलते रहे। रह-रहकर वे लोग सामने की तरफ दौड़ते रहे मानो मेरी चाल बेहद भयंकर हो। मानो मेरा इस तरफ मुड़ना, उस तरफ देखना, अगर वे लोग अपने कैमरे में कैद न कर पाए, कोई भी मुद्रा 'मिस' कर दी तो उन लोगों की गर्दन उतार ली जाएगी। पोलिन ग्रीन ने बताया कि सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से मेरा नाम प्रस्तावित किया जा चुका है। किसी ऑस्ट्रियन संसद-सदस्य ने प्रस्ताव किया है। वे मुझे पार्टी के सभा-गृह में ले गए। वहाँ पार्टी की तरफ से मेरा सम्मान किया गया। असल में, मुझे ठीक-ठीक समझ में नहीं आता कि कहाँ, क्या करना होगा। कौन-सा कमरा, किस काम आता है, मेरे पल्ले नहीं पड़ता। उन लोगों ने मुझे वहाँ ले जाकर खड़ा कर दिया। यहाँ यह सब क्या हो रहा है, मुझे क्या करना है, मझे कानों ही कानों में पछ लेना पडा। मेरा खयाल है. जो लोग मझे आमंत्रित करते हैं, वे लोग यह समझते हैं कि यहाँ के नियम-कानून, मानो मेरी उँगलियों की पोरों पर हैं। असल में किसी नियम-कानून की परवाह नहीं करती। जब कभी दम घुटने लगता है, मैं सारा कुछ धकियाकर, निकल पड़ती हूँ, लेकिन उस दिन पोलिन ग्रीन और सोशलिस्ट पार्टी की अंतरंगता ने मुझे हिलाकर रख दिया। उस दिन उन लोगों के आलिंगन ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया। उस दिन उनकी तालियों की आवाज़ भी काफी मधुर लगी। शायद उसी दिन मेरे पुरस्कार-प्राप्ति के खिलाफ़ एक पत्रकार सम्मेलन भी आयोजित किया गया था।
इसके बाद, मुझे सबसे बड़े हॉलघर, जहाँ मूल संसद की सभाएँ होती हैं, वहाँ ले जाया गया। तमाम संसद सदस्य दर्शक के आसन पर विराजमान! गैलरी में दाहिनी तरफ दक्षिण पंथी और बायीं तरफ वामपंथी! अज दक्षिण पंथियों की उपस्थिति कम थी। यूरोप में उग्र दक्षिणपंथी लोग आर्य खून चाहते हैं, गोरा और सुनहरा रंग चाहते हैं। वे लोग बादामी और काले रंग को खदेड़कर यूरोप को शुद्ध-पवित्र करना चाहते हैं। इन लोगों की अनुपस्थिति का मतलब था, मेरी विजय! इतने लंबे अर्से से मानवता के पक्ष में, मेरे संघर्ष की जीत थी। परंपरागत तरीके से मुझे पुरस्कृत किया गया। सम्मान-पत्र में लिखा हुआ था-European Parliament. The Shakharov Prize for Freedom of Thought is awarded for the year 1994 to Taslima Nasrin in recognition of her work to further the advancement of women's right, of her stand against intolerance and of her contribution to the promotion of freedom of expression. पुरस्कार हाथ में थामे हुए, मुझे भाषण देना था, मैंने दिया। मैंने जो कुछ कहा, वह स्पेनिश, डेनिश, जर्मन, ग्रीक, अंग्रेजी, फ्रेंच, इटालियन, डच, पुर्तगाली, फिनिश और स्वीडिश भाषा में अनुवाद होता गया। सभी लोगों की मेज़ पर सुनने वाला यंत्र मौजूद था। कान पर लगाकर एक-दो नंबर घुमाते ही अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद! अपने भाषण में मैंने लेइला जाना के प्रति अपनी श्रद्धा और संवेदना जतायी। अंतोयानेत फुक से मैंने वादा किया था कि उन्हें मैं श्रद्धा अर्पित करूँगी। शाखारॅव पुरस्कार मुझे मिलने वाला है, यह ख़बर सुनते ही फुक बार-बार यही रट लगाते रहे कि मैं अपना यह पुरस्कार लेइला जाना को दे हूँ।
“मतलब?” मैं स्तंभित हो गयी।
"तुम घोषणा कर दो कि शाखारव पुरस्कार तुम नहीं लोगी। वह पुरस्कार लेइला जाना को प्रदान किया जाए।" अंतोयानेत ने बहुत बड़े शुभाकांक्षी की तरह मुझे
सलाह दी।
मैंने ज़रा सोचते हुए कहा, "मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे यह काम करना चाहिए या नहीं।"
लेइला जाना जाति से कुर्द हैं। पिछले साल वे तुर्की की संसद-सदस्य चुनी गयी हैं। लेइला ने अमेरिका जाकर कुर्द लोगों पर तुर्की के अत्याचार के बारे में भाषण दिया और बस, तुर्की सरकार ने गद्दार, देशद्रोही घोषित कर दिया। काफी लंबे अर्से तक कैद में रखने के बाद, उन्हें पंद्रह वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया है। इसी मार्च के महीने में दो तारीख को उन्हें जेल भेज दिया गया है। ऐसे में तुम अपना परस्कार लेइला जाना को दे दो, तो उनका मामला सभी लोग जान जाएँगे। वैसे तुम जानती तो हो, शाखारव पुरस्कार के लिए तुम्हारा नाम यूरोपियन पार्लियामेंट में मैंने ही प्रस्तावित किया था।
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