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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


उसके बाद, पत्र, जिसमें तसलीमा नसरीन को शाखारव पुरस्कार न दिए जाने का आकुल आवेदन किया गया था। उसके वाद एक और दो नंबर देकर यह लिखा गया था कि बांग्लादेश में हर नागरिक को मुक्त-विचार और राय जाहिर करने की आज़ादी बहाल तबीयत से जारी है, इसका विवरण था। बांग्लादेश में कोई धार्मिक कट्टरवादी नहीं है। औरतों पर कभी कोई निर्यातन नहीं हुआ। न्याय विभाग की आजादी शत-प्रतिशत बहाल है। तसलीमा, लेखिका के तौर पर भी काफी निम्न स्तर की लेखिका है। उसकी रचनाएँ 'पोर्नोग्राफी' यानी अश्लील साहित्य के अलावा कुछ भी नहीं है। धर्म के संदर्भ में वह अत्यंत आपत्तिजनक मंतव्य देती है। बांग्लादेश में हिंदू-मुसलमान बेहद सुख-चैन से निवास करते हैं। उसका मूल लक्ष्य है, रातोंरात रात नाम कमाना। दुनिया की निगाहों में बांग्लादेश का सम्मान नष्ट करने को वह कृतसंकल्प है। नारी आंदोलन में भी तसलीमा का कोई स्थान नहीं है। बांग्लादेश में अनगिनत नारी संगठन मौजूद हैं, लेकिन कोई भी संगठन तसलीमा को नारीवादी नहीं मानता। अस्तु, माननीय यूरोपीय पार्लियामेंट प्रेसीडेंट, यह पुरस्कार तसलीमा को प्रदान करके कृपया बांग्लादेश का अपमान न करें।

मैथ्यु नामक उस शख्स ने धातु जैसी आवाज़ में कहा, “कल पुरस्कार की रकम, एक सौ पचास हज़ार फ्रेंच फ्रां का एक चेक आपको प्रदान किया जाएगा। वह चेक क्या हम आपके बैंक में जमा करा दें या आप खुद ही जमा करा देंगी?"

मेरे दिमाग में चेक और रुपए-पैसों के बारे में हल्का-सा भी ख़याल नहीं आया। मझे अपने पर शर्म आने लगी। अपने लिए प्राप्त इस पुरस्कार पर भी मुझे शर्मिन्दगी

"अच्छा, ऐसा भी तो किया जा सकता है कि मुझे यह पुरस्कार न दिया जाए?"

"क्यों?"

"मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। यूरोपीय पार्लियामेंट को ज़रूर मुझ पर भयंकर गुस्सा आ रहा होगा।"

"आप यह सब क्या कह रही हैं?" मैथ्यु ने हँसकर जवाब दिया, "आप तो. काफी सारा सफ़र तय कर चुकी हैं। हज़ारों-हज़ार लोग आपको फांसी पर चढ़ा देने के लिए उतावले हो उठे थे। ऐसी सब निन्दा-बदनामी की तो आपको ज़रूर आदत पड़ चुकी होगी।"

"लेकिन, ये लोग बड़े-बड़े साहित्यकार हैं। ये लोग कट्टरवादी तो नहीं हैं।"

"यूरोपीय पार्लियामेंट ने काफी सोच-विचार के बाद ही आपको पुरस्कार देने का फैसला किया है। अरे. नोवेल परस्कार के मामले में भी लोग एतराज जताते हैं कि अमुक को क्यों दिया जा रहा है, अमुक को क्यों नहीं, इसलिए क्या पुरस्कार देना बंद हो जाता है? जिसे पुरस्कार देना तय हो जाता है, उसे ही दिया जाता है, आप इतनी नरमदिल इंसान हैं, इसका हमें कभी अंदाज़ा तक नहीं था। लोग-बाग तो आपके साहस की वजह से आपकी इतनी श्रद्धा करते हैं।"

मैथ्यु का धातु जैसा लहजा, अब धातवी नहीं रह गया। उस वक़्त क्रिश्चन की आवाज़ भी पादरियों जैसी सुनायी दी। बहरहाल, उस शख्स ने चाहे जितनी भी तसल्ली दी हो, मैं वहाँ के पंखों जैसे नरम-गुदगुदे विस्तर पर, सारी रात करवटें बदलती रही। रात-भर मैं सो नहीं पायी।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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